'जाट, दलित और मुस्लिम पर भरोसा, घर से मिला धोखा', हरियाणा में किसने कांग्रेस को डुबोया?
शुरुआती रुझानों के मुताबिक कांग्रेस उम्मीदों और पूर्वानुमानों से काफी कम और खराब प्रदर्शन करती नजर आ रही है. अब एक बार रुझानों से पता चला है कि हरियाणा में मुकाबला अनुमान से कहीं अधिक करीब है, जहां दोनों राज्यों में 25% मतों की गणना हो चुकी है.
हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों पर वोटों की गिनती जारी है. ऐसे में यहां के शुरुआती रुझानों के मुताबिक कांग्रेस उम्मीदों और पूर्वानुमानों से काफी कम और खराब प्रदर्शन करती नजर आ रही है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सुबह 11 बजे तक 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 47 सीटों पर आगे चल रही थी, जबकि कांग्रेस 36 सीटों पर आगे चल रही थी. हालांकि, कांग्रेस का वोट शेयर 40.57% था, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 38.80% था. राज्य में बहुमत का आंकड़ा 46 सीटों का है.
अब एक बार रुझानों से पता चला है कि हरियाणा में मुकाबला अनुमान से कहीं अधिक करीब है, जहां दोनों राज्यों में 25% मतों की गणना हो चुकी है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर बहुत ज्यादा निर्भर थी और यह अति निर्भरता कांग्रेस को कोई फायदा नहीं पहुंचा पाई. कांग्रेस को लगता था कि जाट, दलित और मुस्लिम वोट मिलकर राज्य में उसकी जीत सुनिश्चित करेंगे लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है.
हरियाणा में कांग्रेस के हार का जिम्मेदार कौन?
भाजपा के खिलाफ कथित सत्ता विरोधी लहर के बावजूद, कांग्रेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच अंदरूनी कलह को रोकने में सक्षम नहीं रही है, तनाव ने भी पार्टी की संभावनाओं को कुंद कर दिया है. जमीनी स्तर पर, कांग्रेस ने भाजपा की तरह एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ा, कई बागी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े. भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुख्यमंत्री के रूप में संभावित वापसी, हालांकि पार्टी ने इस पद के लिए उनके नाम की घोषणा नहीं की, भी पार्टी के खिलाफ गई.
क्या थी हरियाणा में बीजेपी की स्ट्रेटजी?
वहीं बीजेपी को लेकर एक अनुमान यह है कि उन्होंने गैर-जाट और गैर-मुस्लिम वोटों के बीच अपने वोटरों को बेहतर तरीके से एकजुट किया है. इसके अलावा, गैर-जाट अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटरों को एकजुट करने की पार्टी की योजना उसके लिए कारगर साबित हुई.अब तक के रुझानों को देख कर ऐसा लगता है कि भाजपा ने पूर्वी और दक्षिणी हरियाणा में उसने अदभूत प्रदर्शन किया है. जहां गैर-जाट वोट बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में एकजुट हुए हैं.
कांग्रेस से जनता खफा?
बता दें कि हरियाणा में गैर-जाट मतदाताओं के बीच, 2004 से 2014 के बीच हुड्डा सरकार की इमेज सही नहीं मानी जाती थी और शासन के मानकों पर उसका प्रदर्शन खराब रहा था. उनके शासन के दौरान, राज्य में कानून और व्यवस्था भी बिगड़ गई थी और इस बार ऐसा लग रहा है कि जब कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया तो जनता खफा हो गई.
'भाजपा का फैसला कारगर'
एक राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सत्ता में रहने के एक दशक में भाजपा ने इन मोर्चों पर बेहतर प्रदर्शन किया है. एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, 'इन 10 वर्षों में किसी भी भाजपा नेता पर भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं लगा.' अगर हरियाणा में रुझान जारी रहे, तो इस मार्च में मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह ओबीसी नेता नायब सिंह सैनी को लाने का भाजपा का फैसला कारगर साबित होता दिख रहा है.