इन 10 कारणों से हरियाणा में BJP को मिली ऐतिहासिक जीत

Haryana Assembly Election Result: हरियाणा में तीसरी बार ऐतिहासिक जीत दर्ज कर बीजेपी को वह प्रोत्साहन मिला जिसकी उसे ज़रूरत थी. लोकसभा चुनावों में बहुमत से कम सीटें हासिल करने के बाद यह जीत पार्टी के लिए अहम साबित हो रही है. आइये उन कारणों का जानने की कोशिश करें जिनके कारण BJP ने हरियाणा में तीसरी बार बाउंस बैक किया है.

India Daily Live
Shyam Datt Chaturvedi

Haryana Assembly Election Result: हरियाणा में बीजेपी ने भारी सत्ता विरोधी लहर, किसानों और पहलवानों के विरोध और अग्निवीर योजना के प्रति असंतोष के प्रचार के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली है. यानी यहां BJP तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. ये एक रिकॉर्ड है. क्योंकि, प्रदेश में लगातार किसी एक दल को तीसरी बार सरकार बनाने का मौका पहली बार मिल रहा है. इसके पीछे भाजपा की गहरी रणनीति है. आइये जानने की कोशिश करें आखिर किन कारणों ने बीजेपी को हरियाणा में बाउंस बैक करा दिया.

इस बार BJP ने अपने दांव बिखेर दिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कम रैलियां की है. 2019 में जहां 10 रैलियां हुई थीं, इस बार सिर्फ 4 रैलियों में शिरकत की.  इसके साथ ही, बीजेपी ने स्थानीय नेताओं और गैर-जाट वोटरों को संगठित करने पर ध्यान केंद्रित किया. आइये जानें जीत के संभावित कारण

जाट वोटों पर कांग्रेस का जोर

कांग्रेस ने इस बार जाट वोटों पर जोर दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि अन्य समुदाय उसके खिलाफ लामबंद हो गए. दलित वोट, जिस पर कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के बाद उम्मीद जताई थी, काफी हद तक वापस बीजेपी के पाले में चला गया.

नायब सिंह सैनी पर चुनावी रणनीति

बीजेपी ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को केंद्र में रखते हुए अपनी चुनावी रणनीति बनाई. पार्टी ने सैनी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर चुनाव में उतारा. सैनी के केवल छह महीने के कार्यकाल ने पार्टी को 10 साल की सत्ता विरोधी भावना से बचा लिया.

नए चेहरों पर भरोसा

बीजेपी ने अपने कई वरिष्ठ नेताओं को हटाकर नए चेहरों को मौका दिया जो कांग्रेस की मौजूदा विधायकों को दोबारा टिकट देने की रणनीति के मुकाबले कारगर साबित हुई. पार्टी ने सैनी सरकार की नौकरियों और पिछड़ा वर्ग से जुड़े कदमों, विशेष रूप से ओबीसी वर्ग के लिए क्रीमी लेयर की आय सीमा को 6 लाख से 8 लाख तक बढ़ाने को प्रमुखता दी.

ओबीसी पर फोकस

बीजेपी ने 40% आबादी वाले ओबीसी समुदाय पर विशेष ध्यान दिया. राज्य के मुख्यमंत्री आमतौर पर जाट समुदाय से होते हैं. इनकी कुल जनसंख्या 25% है. ऐसे में बीजेपी ने 2014 में खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर बड़ा संदेश दिया था.

दलितों को साधा

दलित वोटरों तक पहुंचने के लिए गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से प्रचार किया गया. ‘लखपति ड्रोन दीदी’ योजना, जिसमें दलित महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया था.प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से कई महिलाओं को आमंत्रित किया.

‘बिना पर्ची, बिना खर्ची’ नौकरी का वादा

बीजेपी के चुनावी अभियान में “बिना पर्ची, बिना खर्ची” नौकरी का वादा एक अहम मुद्दा रहा. कांग्रेस शासनकाल के दौरान नौकरियों में सिफारिश और रिश्वतखोरी के आरोपों का बीजेपी ने भरपूर फायदा उठाया.

'मोदी की गारंटी' से बदला चुनावी नैरेटिव

बीजेपी ने कांग्रेस को चुनावी नैरेटिव में भी मात दी. जनवरी से ही बीजेपी ने “मोदी की गारंटी” नामक वैन के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में प्रचार शुरू कर दिया था. जीटी रोड की सीटों पर विकास कार्यों को भी प्रमुखता दी गई, खासकर अंबाला से दिल्ली तक फैले क्षेत्रों में.

बीजेपी के कोर ग्रुप की रणनीति

बीजेपी के कोर ग्रुप ने सुनिश्चित किया कि जमीनी स्तर के सभी महत्वपूर्ण नेताओं की चिंताओं का समाधान किया जाए. पार्टी ने लोकसभा चुनावों में अपेक्षित प्रदर्शन न होने के बाद वरिष्ठ नेताओं के असंतोष को गंभीरता से लिया.

हरियाणा के लिए बीजेपी के कोर ग्रुप में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, हरियाणा चुनाव प्रभारी बिप्लब कुमार देब, प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया, मुख्यमंत्री सैनी, पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, हरियाणा पार्टी अध्यक्ष मोहन लाल बडोली, और संगठन प्रभारी फणीन्द्र नाथ मिश्रा शामिल थे.

RSS से जुड़ी अफवाहों पर विराम

हरियाणा में बीजेपी की निर्णायक जीत ने उन अफवाहों को भी खारिज कर दिया, जिसमें पार्टी और आरएसएस के बीच दरार की बात की जा रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने 150 से ज्यादा रैलियों में हिस्सा लिया, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 70 रैलियों का आयोजन किया.

विपक्षी मतों का बंटवारा

विपक्षी दलों के विभाजित होने से भी बीजेपी को लाभ मिला. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलग-अलग चुनाव लड़ने से विपक्षी मतों का विभाजन हुआ. इसके साथ ही इंडियन नेशनल लोकदल, बीएसपी, जननायक जनता पार्टी, आजाद समाज पार्टी और अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस की कई सीटों पर हार में योगदान दिया.