Snake Bite Epidemic In Bihar: कोरोना महामारी से हम अभी ठीक तरह से निपटे नहीं है कि बिहार में एक और महामारी की चर्चा होने लगी है. सबसे बड़ी बात ये की ये कोई कोरोना के दौर के बाद नहीं आई है. ये राज्य में लंबे समय से है और लगातार बढ़ती ही जा रही है. इससे इंसान ही नहीं जानवर और फसलें भी प्रभावित हो रहे हैं. ये महामारी है सर्पदंश की महामारी जो जलवायु में हो रही अनियमित परिवर्तन के कारण पैदा हो रही है. इससे बिहार के एक बड़ा हिस्सा प्रभावित है और लगातार मौतें हो रही हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्पदंश से होने वाली मौतों के मामले में बिहार देश में तीसरे स्थान पर है. आंकड़े बताते हैं की यहां हर साल करीब 4,500 मौतें सर्पदंश के करण होती है. इसके साथ ही इससे कई गुना लोगों में इस कारण स्थायी विकलांगता हो रही है.
उत्तरी बिहार में जलवायु परिवर्तन के कारण लू, बाढ़ और लंबे समय तक शुष्क मौसम की समस्या आई है. इस कारण से सर्पदंश की घटनाओं में वृद्धि हुई है. ये राज्य के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है.
सर्पदंश की बढ़ती घटनाओं और मौसम के पैटर्न के बीच गहरा संबंध है. गर्मी, अनियमित वर्षा से बाढ़ और सूखा बढ़ा है. जो सांपों के मूवमेंट को बढ़ा देता है. जलवायु परिवर्तन के कारण बिहार में मौसम तेज परिवर्तन हुआ है. इससे इंसान और जानवर दोनों ही अनुकूल ढलने ने की कोशिश करते हैं. इंसान तो कैसे भी मैनेज कर लेता है लेकिन इन स्थितियों में जानवर असामान्य व्यवहार करते हैं.
सांपों के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान अनुकूल है. इससे कम ज्यादा होने पर ये ठंडे और गरम इलाकों की खोज में निकल जाते हैं. यही कारण है कि वो इंसानों के संपर्क में आने लगते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं.
खराब मौसम के कारण खेती की जमीन बड़े मैदान में तब्दील हो रही है. यहां सांपों के लिए चूहों की आपूर्ति सुनिश्चित हो जाती है. सरयू, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला-बलान, कोसी, महानंदा जैसी नदियां बाढ़ के कारण अपने किनारों को तोड़ रिहायशी इलाकों में सांपों और कीटों को पहुंचा देती है.
इंसानों ने भी खेतों में कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाया है. इससे सांपों के आवास को नष्ट हुए हैं. वहीं चूहों और केंचुओं की मौत बढ़ी है. इससे सांप अपने शिकार तलाश में इंसानी आवासों तक पहुंचे हैं.
सांपों के कारण आ रही इस महामारी से गांव, गरीब और किसान ज्यादा प्रभावित होते हैं. कई सर्पदंश पीड़ित खेती में लगे होते हैं, फर्श पर सोते हैं, खेलते हैं, घर का काम करते हैं, या खेतों में शौच करते हैं, जब उन्हें सांप काट लेते हैं.
सर्पदंश की समस्या केवल मनुष्यों को ही प्रभावित नहीं करता. इसका असर पशुधन पर भी पड़ता है, जो क्षेत्र में आजीविका के लिए आवश्यक है. अत्यधिक गर्म दिनों के दौरान सांप ठंडे, छायादार क्षेत्रों की तलाश में अपने बिलों से बाहर निकलते हैं और इंसानी आबादी के बीच पहुंचने लगते हैं. सबसे पहले वो घरों के बाहरी हिस्सों में पहुंचते हैं जो आमतौर पर गौशाला होती हैं यहां वो गायों को अपना निशाना बना लेते हैं.
बिहार बाढ़ संवेदनशील मामला है. यहां 76 फीसदी आबादी को लगातार इस खतरे का सामना करती है. देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% हिस्सा और इससे प्रभावित आबादी 22.1% हिस्सा बिहार ही है.
भारत में 310 से ज्यादा सांप प्रजातियां हैं. हालांकि, इसमें 66 ही विष वाली हैं. इसमें रसेल वाइपर, स्पेक्टेक्ल्स कोबरा, कॉमन क्रेट और सॉ-स्केल्ड वाइपर का नाम है जो सर्पदंश के लिए जिम्मेदार हैं.
सांप के काटने के प्रबंधन में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं संसाधनों की अव्यवस्था, स्वास्थ्य कर्मियों के अपर्याप्त प्रशिक्षण महामारी के बढ़ने का एक बड़ा कारण हैं. इसके लिए मानव, वन्यजीव और पशु कल्याण को एक साथ रखकर काम करने से ही सरकारें और लोग इस समस्या से निजात पा सकते हैं. हम मौसम से तो नहीं लड़ सकते हैं लेकिन जो अतिक्रमण इंसानों द्वारा हुआ है इसे कम कर सकते हैं. साथ ही सरकारी प्रयास दो इलाज को बढ़ावा दें.
WHO के अमुसार जलवायु परिवर्तन के कारण सर्पदंश का संकट बढ़ा है. इससे लगभग 5.4 मिलियन मामले सांप काटने के आते हैं. इसमें से करीब करीब 1.8 से 2.7 मिलियन लोगों को जहरीले सांप काटते हैं. इन घटनाओं के परिणाम के रूप में 8000-1,30,000 लाख लोगों की मौत और इससे तीन गुना लोगों को स्थाई विकलांगता हो जाती है.
एक रिसर्च में सामने आया है कि सांप के काटने के दस में से सात मामले दक्षिण एशिया में होते हैं. दुनिया में सर्पदंश से होने वाली मौतों की तुलना में भारत में मृत्यु दर 70%, है. जलवायु परिवर्तन के कारण सर्पदंश के मामलों में वृद्धि हुई है. 2017 में सांप के काटने को एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी माना गया था.