Lok Sabha Elections 2024: हाजीपुर सीट पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच क्यों बनी 'नाक की लड़ाई'
Lok Sabha Elections 2024: मोदी के हनुमान ने बिहार में चाचा पशुपति नाथ पारस की सियासी लंका लगा दी. इसके बाद चाचा पशुपति नाथ ने कैबिनेट मंत्री का पद और एनडीए दोनों ही छोड़ दिया है. अब उनके इंडिया गठबंधन में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं.
Lok Sabha Elections 2024: बिहार में एनडीए में सीट बंटवारे की डील फाइनल हो गई. यहां पर एनडीए शामिल 5 दल दोनों में बीजेपी 17, जेडीयू 16, चिराग की पार्टी 5, उपेंद्र कुशवाहा 1 और जीतन राम मांझी को 1 सीट को सीट दी गई. लेकिन इस बीच बिहार की हाजीपुर सीट लेकर जिद में अड़े पशुपति नाथ पारस को बीजेपी भाव नहीं दिया. बिहार में पांच सीटें चिराग पासवान को दी गईं, जिनमें वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया और जमुई शामिल हैं.
अभी ये सभी सीटें लोजपा के पास हैं जिसके मुखिया पशुपति पारस हैं. भाजपा से भाव न मिलता देखकर पशुपति पारस ने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और एनडीए से अलग हो गए हैं.
दो गुटों में बंट गई थी लोजपा
मामले को समझने के पहले लोजपा और पासवान परिवार पर एक सरसरी नजर डालते चलते हैं. दरअसल रामविलास पासवान की मौत के बाद लोजपा में फूट पड़ी और पार्टी दो गुटों में बंट गई, जिनमें एक गुट के मुखिया पशुपति पारस हैं और दूसरे गुट के मुखिया चिराग पासवान हैं. फिलहाल चिराग पासवान जमुई से सांसद हैं. वहीं लोजपा के अन्य सांसदों की बात करें तो हाजीपुर सीट से पशुपति पारस, खगड़िया से महबूब अली कैसर, वैशाली से वीना देवी और समस्तीपुर से प्रिंस राज राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद हैं. अब समझते हैं कि पशुपति पारस हाजीपुर सीट को लेकर जिद करके क्यों बैठे थे.
हाजीपुर सीट इतनी खास क्यों है
बिहार की हाजीपुर लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीट इसलिए मानी जाती है क्योंकि चिराग पासवान के पिता रामविलास यहां से 9 बार सांसद रहे हैं. रामविलास पासवान दलितों के हित की राजनीति करते थे. इसी बलबूते पर उन्होंने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी का गठन कियास था. हाजीपुर सीट से रामविलास पासवान की पहचान जुड़ी है. ऐसे में चिराग पासवान का इस सीट पर दावा करना स्वाभाविक है. अभी चिराग पासवान जमुई से और हाजीपुर सीट से पशुपति पारस सांसद हैं.
'नाक का सवाल' क्यों बनी हाजीपुर सीट
ऐसे में पशुपित पारस इस सीट पर बने रहना चाहते हैं इसलिए यहां से दावा ठोंक रहे थे. चिराग पासवान अपने पिता की विरासत को पाना चाहते हैं इसलिए हाजीपुर सीट पर दावा ठोंक रहे थे. चूकि सिटिंग एमपी होने के चलते पशुपति पारस हाजीपुर सीट नहीं छोड़ना चाहते थे और पिता की सीट होने के चलते चिराग हाजीपुर सीट को नहीं छोड़ना चाहते इसलिए दोनों के बीच यह सीट 'नाक का सवाल' बन गई थी.
चाचा से ज्यादा भतीजे को अहमियत क्यों?
साल 2021 में एलजेपी में फूड पड़ी तो चिराग अलग-थलग पड़ गए थे. तब चाचा पशुपति को दलितों से आस थी लेकिन तभी चिराग ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली. यात्रा को जनसमर्थन मिला. चिराग ने खुद को अपने पिता उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. वहीं पार्टी में फूल डालने वालों को विरोधी बताया. तब चिराग एनडीए में नहीं थे, लेकिन उन्होंने कभी बीजेपी पर बड़े हमले नहीं किए. उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'हनुमान' भी बताया था. जुलाई, 2023 में चिराग पासवान दोबारा एनडीए में शामिल हुए तो आते ही हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोक दिया.
क्या है हाजीपुर का गणित?
बिहार में रामविलास पासवान दलितों के बड़े नेता थे. चिराग को जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान जिस तरह का समर्थन मिला था, उससे साफ था कि एलजेपी का कोर वोटर उनके साथ है. बिहार की जातिगत जनगणना के मुताबिक, राज्य में दलितों की आबादी 20 फीसदी के करीब है. पासवान 5.5 फीसदी के करीब हैं. पासवान वोटर्स ही एलजेपी का कोर वोटर रहा है. दलितों की उपजातियों का बहुत ज्यादा समर्थन रामविलास पासवान को कभी नहीं मिला. इसलिए चिराग को इनका समर्थन मिलने की बहुत उम्मीद नहीं है. लेकिन चिराग के आने से एनडीए को 5 से 6 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है, जो उसके लिए 'बूस्टर डोज' की तरह काम करेगा.
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