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क्या ब्राह्मणों ने तुड़वाया था नालंदा विश्वविद्यालय? जान लीजिए इस दावे की सच्चाई

पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में हर कोई जानना चाहता कि इस धरोहर को किसने तबाह किया था. ज्यादातर इतिहासकार और लोगों का कहना है कि 1190 के आसपास, तुर्क-अफगानी लड़ाके बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय को जला दिया था. कुछ इतिहासकार दावा करते हैं कि इसे दो ब्राह्मणों ने जलाया था.

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India Daily Live
Nalanda University
Courtesy: SOCIAL MEDIA

प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का केंद्रबिंदु था. दुनियाभर से विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे. यह दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालों में से एक था. इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने की थी लेकिन 1193 ई. में खिलजी ने इस विश्वविद्यालय पर हमला किया और फिर इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया. 

इस विश्वविद्यालय के तबाह होने के बारे में अलग-अलग दावे किए जाते हैं. सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेनसांग अपनी किताब में लिखते हैं, 'पूरा विहार ईंटों की एक दीवार से घिरा था. इसका एक दरवाजा सीधे शिक्षा केंद्र में खुलता था. जहां आठ बड़े हॉल में पढ़ाई होती थी. यहां गगनचुंबी नौ-मंजिला पुस्तकालय भी था, जहां 90 लाख से ज्यादा किताबें मौजूद थीं.

दो ब्राह्मणों ने जलाया नालंदा विश्वविद्यालय?

इतिहासकारों का मानना है कि नालंदा इतना विशाल था कि हमलावरों के आग लगाने के बाद तीन महीने तक पूरा परिसर सुलगता रहा था. ऐसे में सवाल उठता है कि दुनिया के सबसे बड़े शिक्षा केंद्र को किसने जलाया? 19 जून 2024 को PM मोदी ने नालंदा यूनिवर्सिटी की नई इमारत का उद्घाटन किया, तो ये डिबेट फिर शुरू हो गई है.

हर कोई जानना चाहता है कि इस धरोहर को सिर्फ खिलजी ने जलाया या किसी और ने. ज्यादातर इतिहासकार और लोगों का कहना है कि 1190 के दशक में, तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था.

कुछ इतिहासकार दावा करते हैं कि इसे दो ब्राह्मणों ने जलाया था. पिछले दिनों जब नालंदा यूनिवर्सिटी की नई इमारत के उद्घाटन के लिए बिहार गए तो यह सवाल और ज्यादा हाईलाइट हो गया. पिछले दिनों इससे जुड़े 1 लाख से ज्यादा पोस्ट सोशल मीडिया 'X' पर किए गए.

नालंदा महाविहार 

नालंदा यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, 427 ई. में सम्राट कुमार गुप्त ने नालंदा की स्थापना की. यह पहला विश्वविद्यालय था, जिसमें हॉस्टल सुविधा दी गई. इसका नाम नालंदा महाविहार रखा गया. गुप्त काल के अन्य शासकों को जैसे बालादित्य, गुप्त इत्यादि ने भी नालंदा का निर्माण कराया. गुप्त वंश के शासक धर्मनिष्ठ हिंदू थे. 

छठी शताब्दी तक नालंदा एक बड़े शिक्षा केंद्र के तौर पर विकसित हुआ. 8वीं और 9वीं शताब्दी में पालवंश के संरक्षण से नालंदा को दुनिया भर में पहचान मिली. 12 शताब्दी के अंत तक यानी लगभग 800 साल नालंदा महाविहार फला फूला. भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि वे छठी शताब्दी की शुरूआत में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे. 

प्रवेश परीक्षा नालंदा महाविहार के द्वारपाल लेते थे

नालंदा में सिर्फ बौद्ध छात्र ही नहीं बल्की कठिन मौखिक परीक्षा पास करने वाले अन्य धर्मों के उम्मीदवारों को भी प्रवेश दिया जाता था. यहां चीन, कोरिया जापान, तिब्बत, मंगोलिया श्रीलंका और दक्षिणी पूर्व एशिया से विद्धान आते थे. सातवीं शताब्दी में जब चीनी यात्री हेनसांग भारत आए थे. तब उन्होंने लिखा नालंदा में आवेदन करने के लिए सिर्फ 20% छात्रों को ही प्रवेश मिलता है. इसके लिए पहली प्रवेश परीक्षा नालंदा महाविहार के द्वारपाल लेते थे. वे धर्म और दर्शन से जुड़े मुश्किल सवाल पूछते थे इसके बाद दो स्तर पर और परीक्षा होती थी. विश्वविद्यालय के संचालन के लिए गुप्त वंश के राजाओं ने अनुदान दिया और 100 गांव विश्वविद्यालय को सौंप दिए. इस गांवों के 200 परिवार बारी-बारी से विश्वविद्यालय  की जिम्मेदारी उठाते थे. 

13वीं शताब्दी तक नालंदा नष्ट हो चुका था

13वीं शताब्दी तक नालंदा नष्ट हो चुका था. इसके पीछे इतिहासकारों दो तरह के तर्क देते हैं. इस्लाम को चुनौती देने की वजह से तुर्की सेनापति बख्तियार खिलजी ने नालंदा को नष्ट करवाया. 12वीं सदी के इतिहासकार मिन्हाज अपनी किताब तबकात-ए-नासिरी में लिखते हैं. साल 1192 में तुर्की सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी ने 200 घुड़सवारों के साथ बिहार में एक किले पर आक्रमण किया. उस दौरान किले में बहुत से ब्राह्मण थे, जो अपना सिर मुंडाए हुए थे. उन सभी को खिलजी ने मार डाला.

किले से खिलजी को कई किताबें मिलीं, जिन्हें पढ़कर पता चला कि असल में ये किला नहीं, एक विद्यालय था और इसे विहार कहा जाता था.  तिब्बती भिक्षु धर्मस्वामिन ने 1236 ई. में नालंदा की यात्रा की. उनके मुताबिक, तुर्की हमलावरों ने बिहार के बौद्ध मठों और विहार को तोड़ा और लूटा. मठों के पत्थरों को गंगा में फेंक दिया. किताबों और ग्रंथों का भी यही हाल किया. 1235 ई. तक नालंदा पूरी तरह से उजड़ गया था. 

दो ब्राह्मण साधुओं और बौद्ध भिक्षुओं के बीच विवाद हुआ

तिब्बती लामा तारानाथ के मुताबिक, दो ब्राह्मण साधुओं और बौद्ध भिक्षुओं के बीच विवाद हुआ. बाद में ब्राह्मण भिक्षुओं ने तंत्र सिद्धि हासिल कर नालंदा की लाइब्रेरी को जला दिया. सुम्पा खान पो की किताब 'पग सम जोन जैंग' में भी लिखी है. 1234 ई. में भारत आए तिब्बत भिक्षू धर्मस्वामिन अपने यात्रा वृत्तांत में मठों पर खिलजी के हमले का जिक्र करते हैं लेकिन स्पेसिफिक नालंदा का जिक्र नहीं करते. हालांकि धर्मस्वामिन एक अटेम्पटेड अटैक का जिक्र करते हैं, जो तुरूष्का ने 1234 ईस्वी में किया था. तब बख्तियार खिलजी को मरे हुए 28 साल हो गए थे. नालंदा विश्वविद्यालय के उद्घाटन के बाद मध्यकालीन इतिहास की जनकार रूचिका शर्मा के मुताबिक इन तमाम चीजों के बीच एक कामन बात यह है कि नालंदा को खिलजी, तुर्कों और तुरूष्कों ने नहीं जलाया तो किसने जलाया?. 

'नालंदा की खुदाई के दौरान यह पता चला कि...'

रूचिका शर्मा डीआर पाटिल के हवाले से बताती है कि एक दिन अचानक आग लगने के बाद नालंदा नष्ट हुई. नालंदा की खुदाई के दौरान यह पता चला कि वहां बंद कमरों में खाना बनता था. बौद्ध भिक्षु खुले लैंप का प्रयोग करते थे जिसकी वजह से आग लग जाती थी. दूसरी ओर नालंदा से जुड़ी एक फेमस थ्योरी यह है कि खिलजी और उसके सैनिकों को लगा कि बौद्ध विश्वविद्यालय की शिक्षाएं इस्लाम से प्रतिस्पर्धा करती है. इसलिए उन्हें नष्ट कर दिया. 

नालंदा पर 3 बार हमला हुआ था.

नालंदा के आनसाइड म्यूजियम के डायरेक्टर शंकर शर्मा के मुताबिक नालंदा पर हमला क्यों हुआ. इसका निश्चित और सही कारण बता पाना मुश्किल है लेकिन एक बात पक्की है कि नालंदा पर 3 बार हमला हुआ था.

हुणों का हमला.

5वीं शताब्दी में मिहिरकुल के शासनकाल में हुणों ने किया था. हूण का मकसद नालंदा में लूटपाट करना हो सकता है.

गौड़ का हमला

7वीं शताब्दी के दौरान बंगाल के गौंड़ राजा ने शैव हिंदू संप्रदाय और उसके समय बौद्धों के बीच बढ़ते विरोध के चलते किया था. 

खिलजी का हमला

सबसे बड़ा हमला 1193 में बख्तियार खिलजी ने किया था. इसके बाद नालंदा तबाह हो गया. बौद्ध शिक्षा के प्रति उत्साह कम हो गया था. किसी भी शासक ने नालंदा को फिर से स्थापित करने की कोशिश नहीं की. तब से नालंदा अपने खंडहरों में ही पड़ा रहा.

'ब्राह्मणों ने तुड़वाया, इसका कहीं कोई प्रमाण नहीं...'

नालंदा विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलपति प्रो. अभय सिंह कहते हैं, ‘प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को ब्राह्मणों ने तुड़वाया, इसका कहीं कोई प्रमाण नहीं है. जबकि बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा यूनिवर्सिटी को जलाए जाने का एक प्रमाण मौजूद है. इस कॉन्ट्रोवर्सी में ज्यादा जाने से कोई लाभ नहीं है.

इतना बड़ा इंस्टीट्यूशन जब अनसेफ हो गया और उस पर कई हमले हुए, आग लगा दी गई तब लोग उसे छोड़ कर चले गए. 3-4 आक्रमण रिकॉर्ड हैं. ऐसी संस्था का विनाश तो एकदम से नहीं हुआ, धीरे-धीरे लोग छोड़ कर चले गए, जिसके कारण विनाश हुआ. कुछ लोग मानते हैं कि दो ब्राह्मणों द्वारा आग लगा दी गई, लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है.