Bihar News: मुजफ्फरपुर के चैनपुर में 30 बेड वाला अस्पताल है, जिसके बारे में स्वास्थ्य विभाग को ही पता नहीं है. 30 बेड वाले इस अस्पताल का निर्माण 15 साल पहले किया गया था. उद्घाटन के इंतजार में ये अस्पताल अब खंडहर में तब्दील हो गया है. अस्पताल के चारों और झाड़ियां निकल आईं हैं. पड़ताल में जानकारी सामने आई कि इस अस्पताल का निर्माण बिहार हेल्थ कमिटी के तत्कालीन एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर उदय सिंह के कुमावत के निर्देश पर किया गया था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बिहार में 30 बेड वाले ऐसे कुल 200 अस्पतालों को बनाया जाना था. इनमें से अकेले मुजफ्फरपुर में पांच अस्पताल बनने थे. इसे लेकर 2007-08 में आदेश जारी हुआ था. कुल प्रोजेक्ट की लागत तब एक अरब 6 लाख 30 हजार रुपये थी. अब तक कुल ऐसे कितने अस्पताल का निर्माण बिहार में हुआ है, इसकी सटीक जानकारी सामने नहीं आ पाई है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चैनपुर के अलावा, पिलखी, सीहो, शंकरपट्टी और बरैठा में इस तरह के अस्पताल का निर्माण किया जाना था. सोशल मीडिया पर स्टेट हेल्थ कमिटी के तत्कालीन एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर के आदेश की कॉपी वायरल है. आदेश की कॉपी में उदय सिंह कुमावत ने भवन निर्माण विभाग के सचिव को लिखा था कि फाइनेंशियल ईयर 2007-08 में बिहार में 200 एपीएसची का 53 लाख 12 हजार की दर से निर्माण किया जाना है.
अब इस मामले में मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा ने रिपोर्ट तलब की है. इसके बाद मुजफ्फरपुर के डीएम ने सिविल सर्जन और भवन निर्माण निगम लिमिटेड के डिप्टी जनरल मैनेजर से रिपोर्ट मांगी. कहा जा रहा है कि सिविल सर्जन और भवन निर्माण निगम के डीजीएम ने पड़ताल के बाद डीएम को रिपोर्ट भी भेज दी.
जानकारी के मुताबिक, इस अस्पताल का निर्माण 6 एकड़ जमीन पर किया गया है. जब इस अस्पताल का निर्माण किया गया था, तब इसमें आधुनिक उपकरण लगे थे. अस्पताल बनने के बाद से अब तक हेल्थ डिपार्टमेंट ने इसे टेक ओवर ही नहीं किया. कहा जा रहा है कि खंडहर बन चुके इस अस्पताल के खिड़की, दरवाजे चोर ले जा चुके हैं. 6 एकड़ जमीन पर अस्पताल के अलावा कर्मचारियों के लिए घर और जांच केंद्र का भी निर्माण किया गया था.
इससे पहले, बिहार के अररिया जिले में एक पुल निर्माण की खबर चर्चा में थी. मामला जिले के परमानंदपुर गांव का था, जहां खुले मैदान में पुल बना दिया गया था. जहां पुल बनाया गया है, वहां न तो कोई सड़क थी, न ही कोई नदी. मामले की जानकारी के बाद जिला प्रशासन ने रिपोर्ट मांगी थी. दावा किया गया था कि पुल का निर्माण तीन करोड़ रुपये से किया गया था.
रिपोर्ट में सामने आया था कि मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 2.5 किलोमीटर लंबी सड़क पर काम शुरू हुआ था, लेकिन स्थानीय किसानों से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी. पुल इसी परियोजना का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य सड़क बनने के बाद भी खेत के एक तरफ से दूसरी तरफ पानी का रास्ता बनाना था.