पेरिस ओलंपिक में सपना टूटने के बाद विनेश फोगाट ने दी पहली प्रतिक्रिया, तीन पन्नों के लेटर में बयां किया अपना दर्द

मात्र 100 ग्राम वजन बढ़ने के कारण विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक में अयोग्य करार दे दी गई थीं. कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स ने भी उनकी सिल्वर मेडल की अपील ठुकरा दी थी. अब विनेश फोगाट ने सोशल मीडिया पर तीन पन्नों का पोस्ट लिखकर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है.

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Vinesh Phogat News: पेरिस ओलंपिक में मात्र 100 ग्राम वजन बढ़ने के कारण अयोग्य घोषित होने और फिर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) द्वारा सिल्वर मेडल की अपील खारिज किए जाने के बाद रेसलर विनेश फोगाट ने सोशल मीडिया पर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है. इस पोस्ट में उन्होंने ओलंपिक तक के अपने सफर और इस सफर में उनका साथ देने वाले अपने कोच और परिवारजनों का जिक्र किया है. 

मैं नहीं जानती थी ओलंपिक क्या होता है रिंग्स क्या होते हैं

विनेश ने  लिखा एक छोटे से गांव की लड़की होने के नाते में बिल्कुल नहीं जानती थी कि ओलंपिक क्या होता है और रिंग्स का मतलब क्या होता है. एक छोटी बच्ची की तरह मेरे भी लंबे बाल करने के सपने थे, मैं भी चाहती थी कि हाथ में मोबाइल लेकर घूमूं और वो सभी चीजें करूं जो आम तौर पर एक  युवा लड़की करना चाहती है.

मेरे पिता एक साधारण ड्राइवर थे

मेरे पिता जो एक साधारण ड्राइवर थे, वो कहते थे कि उनकी बेटी एक दिन जहाज में उड़ेगी. मैं अपने पिता के सपने को साकार करना चाहती थी. मैं  यह बात कहना नहीं चाहती थी लेकिन मैं सोचती हूं कि मैं तीनों बहनों में सबसे छोटी होने के नाते उनकी सबसे ज्यादा लाडली थी. जब वो मुझसे ऐसा कहते थे तो मैं जोर से हंस देती थी क्योंकि यह सब उस समय मेरे समझ में नहीं आता था. मेरी मां ने अपने जीवन में कठिन परिश्रम किया, इसलिए क्योंकि वह चाहती थीं कि उनके सभी बच्चे एक अच्छा जीवन जीएं. उनके सपने मेरे पिता के सपनों से कहीं ज्यादा साधारण थे.

एक दिन पिता हमें छोड़कर चले गए

विनेश ने आगे लिखा,  'एक दिन मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए लेकिन उनके शब्द मेरे कानों में रह गए कि उनकी बेटी एक दिन जहाज में उड़ेगी. मैं अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ ही रही थी कि तभी मेरी मां को थर्ड स्टेज का कैंसर हो गया और फिर हम तीन बच्चों ने अपने बचपन को मारकर अपनी मां का सहारा बनने का फैसला किया. जैसे ही मैंने जिंदगी की सच्चाई को जाना और संघर्ष की दुनिया में कदम रखा वैसे ही मेरे लंबे बाल रखने और मोबाइल फोन के सपने धूमिल हो गए.'

संघर्ष ने बहुत कुछ सिखाया

संघर्ष ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, अपनी मां को कठिन परिश्रम करते देखा.  उनका कभी ना हार मानने वाला रवैया और चुनौतियों से लड़ने वाले जुनून का ही नतीजा है जिसकी वजह से आज में एक मुकाम हासिल कर सकी. उन्होंने मुझे उस चीज के लिए लड़ना सिखाया जो मेरे लिए जरूरी है. जब मैं साहस के बारे में सोचती हूं तो मुझे उनकी याद आती है. यह उनका ही दिया हुआ साहस था जिसके दम पर मैंने परिणाम कि चिंता किए बैगर हर लड़ाई को लड़ा.