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शतरंज के बाजीगर हैं प्रज्ञानानंद, विश्वकप चूके पर दिल जीत गये

नई दिल्ली: जब भी कोई जंगली जीव लंबी छलांग लगाने वाला होता है तो उससे पहले वो दो कदम पीछे खींचता है और फिर ऐसी छलांग लगाता है जिस पर आंखों को शायद ही विश्वास हो सके.

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Edited By: Vineet Kumar
शतरंज के बाजीगर हैं प्रज्ञानानंद, विश्वकप चूके पर दिल जीत गये

नई दिल्ली: जब भी कोई जंगली जीव लंबी छलांग लगाने वाला होता है तो उससे पहले वो दो कदम पीछे खींचता है और फिर ऐसी छलांग लगाता है जिस पर आंखों को शायद ही विश्वास हो सके. ऐसा ही एक नजारा गुरुवार को बाकू के अजरबैजान में देखने को मिला जहां पर चेस विश्वकप के 10वें एडिशन का फाइनल मैच खेला जा रहा था. 

चेस बोर्ड की एकतरफ बैठे थे 5 बार के वर्ल्ड चैम्पियन और मौजूदा समय में दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन तो वहीं उनके दूसरी तरफ बैठा था एक 18 साल का युवा भारतीय खिलाड़ी, रमेशबाबू प्रज्ञानानंद जिसने दांव-पेंच के मामले में इस विश्व चैम्पियन के दांत खट्टे कर दिए थे.

विश्वकप में अपनी छाप छोड़ गये प्रज्ञानानंद

गुरुवार को खेला जा रहा यह फाइनल मैच विश्व चैम्पियन की तलाश करने के लिए आयोजित किया जा रहा तीसरा प्रयास था. मतलब दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी को पहले ही ये युवा दो बार उस स्थिति में ला चुका था जहां उन्हें उसकी प्रतिभा का लोहा मानना ही था. टाई ब्रेकर मैच से पहले फाइनल के दो राउंड हो चुके थे जो कि ड्रॉ पर समाप्त हुए थे. पहले राउंड में जहां दोनों ने 35 चाल तक एक-दूसरे को मानसिक कसरत कराई तो वहीं दूसरे राउंड में 30 चाल के बाद ही ड्रॉ के लिए हाथ मिला लिया.

इतिहास रचने से चूके प्रज्ञानानंद

हालांकि जब टाई ब्रेकर खेला गया तो कार्लसन ने पहले राउंड में जीत हासिल कर 1-0 की बढ़त बना ली तो वहीं पर दूसरा राउंड ड्रॉ हो जाने के चलते कार्लसन को विजेता घोषित कर दिया गया. इस फाइनल मैच में जीत हासिल कर प्रज्ञानानंद के पास शतरंज के इतिहास का वो पहला खिलाड़ी बनने का मौका था जिसने नंबर 3, नंबर 2 और नंबर 1 के खिलाड़ी को एक ही टूर्नामेंट के दौरान हराकर खिताब जीता हो, लेकिन हार के साथ वो इतिहास बनाने से चूक गये. इस हार ने भले ही प्रज्ञादानंद को वर्ल्ड चैम्पियन की ट्रॉफी से दूर रखा हो लेकिन टूर्नामेंट में उनके प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि आने वाला समय उन्हीं का है.

विश्वनाथन जैसा कारनामा कर सकते थे प्रज्ञानानंद

1987 से पहले तक शतरंज की दुनिया भारत में एक भी ग्रैंडमास्टर का नाम नहीं था लेकिन विश्वनाथन आनंद के आने के बाद से अब तक 73 भारतीय खिलाड़ियों ने अपना नाम इसमें शुमार कर लिया है. विश्वनाथन आनंद ने विश्वकप जीता तो ही इस खेल को भारत में नये आयाम मिले और यही वजह थी कि 2023 के विश्वकप में एक दो नहीं बल्कि 4 भारतीय खिलाड़ी क्वार्टरफाइनल में पहुंचे थे. ऐसे में अगर प्रज्ञानानंद भी विजय हासिल करने में कामयाब हो जाते तो वो विश्वनाथन आनंद के बाद ऐसा करने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी बन जाते.

दिल की बाजी जीते हैं प्रज्ञा

भले ही प्रज्ञादानंद फाइनल की बाजी हारे हैं लेकिन करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया है. उनका फैन बनने वालों में वर्ल्ड चैम्पियन मैग्नस कार्लसन भी शामिल हैं जिन्होंने कई मौकों पर इस भारतीय खिलाड़ी की तारीफ करते हुए कहा है कि वो भविष्य का किंग है. प्रज्ञानानंद की बात करें तो वो पिछले दो दशक में चेस विश्वकप के फाइनल में पहुंचने वाले इकलौते भारतीय खिलाड़ी हैं. इस फाइनल मैच से पहले कार्लसन और प्रज्ञादानंद के बीच 19 बार भिड़ंत हो चुकी थी जिसमें से क्लासिक चेस में एक बार (कार्लसन जीते), रैपिड और प्रदर्शनी मैच में 12 बार (कार्लसन-7, प्रज्ञादानंद-5) और 6 मैच स्लेटमेट के चलते ड्रॉ हो गये थे.

बचपन से ही करते रहे हैं जादूगरी

प्रज्ञानानंद के सफर की बात करें तो तमिलनाडु से आने वाले इस लड़के ने महज 4 साल की उम्र से ही चेस खेलना शुरू कर दिया था. प्रज्ञानानंद की तरह उनकी बहन भी चेस ग्रैंडमास्टर हैं और शतरंज के दांव-पेंच उन्होंने उन्हीं से सीखे हैं. दोनों का खेल ऐसा था कि घर में ट्रॉफी और स्पॉन्सर्स दोनों की कमी नहीं रही लेकिन पोलियोग्रस्त पिता के साथ बच्चों के पालने के लिए मां को लोन लेना पड़ा. पहली बार प्रज्ञादानंद ने साल 2008 में अंडर-8 वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीती और दो साल बाद अंडर-15 और इसके दो साल बाद ही ग्रैंड मास्टर का खिताब जीत लिया.

इस खास लिस्ट में शुमार हैं प्रज्ञानानंद

इस जीत के साथ ही प्रज्ञादानंद शतरंज के इतिहास में सबसे कम उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीतने वाले दूसरे सबसे युवा और पहले सबसे भारतीय युवा बन गये. प्रज्ञादानंद ने यह कारनामा महज 12 साल 10 महीने की उम्र में कर के दिखाया तो वहीं पर यूक्रेन के सर्जेई (2002) ने 12 साल 7 महीने की उम्र में यह कीर्तिमान अपने नाम किया था. इसके बाद प्रज्ञादानंद रुके नहीं और आये दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शतरंज की नई-नई चालों से विपक्षियों को चित करते नजर आये.

कार्लसन को हराकर भी खुश नहीं थे प्रज्ञानानंद

प्रज्ञानानंद ने कार्लसन को जिन मैचों में हराया वो रैपिड मैच थे और उनकी समय सीमा 15 मिनट की थी. पिछले साल (फरवरी 2022) जब उन्होंने कार्लसन को 39वीं बाजी में हराया तो वो खुश नहीं थे. उन्होंने जीत के बाद कहा कि मुझे ऐसी जीत नहीं चाहिए क्योंकि कार्लसन इस मैच को अपनी गलती से गंवा बैठे थे. मैच स्लेटमेट की दिशा में बढ़ रहा था और साफ नजर आ रहा था कि ये ड्रॉ होने वाला है लेकिन कार्लसन ने अपने घोड़े को लेकर जो चाल चली उसने उन्हें चेकमेट की पोजिशन में ला दिया और प्रज्ञानानंद जीत गये.

भारत के भविष्य की नींव रखेंगे प्रज्ञानानंद

प्रज्ञानानंद की बात करें तो भले ही वो आज के मैच में हार गये हों लेकिन उनकी प्रतिभा और कैलकुलेटिंग दिमाग यह बताता है कि वो आने वाले समय में कितना कुछ हासिल कर सकते हैं. वह भारत का भविष्य हैं और आने वाली पीढ़ियों के सपनों की नींव, उन्हें भारत के चंद्रयान मिशन से सीखना है जिसने 2019 की क्रैश लैंडिंग के बाद 2023 में जबरदस्त वापसी की और इतिहास रच दिया. फैन्स को अब उनसे कुछ इसी प्रकार की उम्मीद है, भले ही 2023 में वो इतिहास रचने से एक कदम दूर रह गये लेकिन आने वाले समय में वो ये कारनामा कर दिखाएंगे इसका हमें विश्वास है.

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