Harvinder Singh: जब उम्र महज 1.5 साल थी, जब उसके पैर खराब हो गए. वजह थी एक लोकल डॉक्टर द्वारा डेंगू को ठीक करने लगाया गया इंजेक्शन. बीमारी तो ठीक नहीं हुई उल्टा पैरों ने काम करना बंद कर दिया, क्योंकि इंजेक्शन का बेहद बुरा साइड इफेक्ट हुआ. बचपन में ही पैरों की गतिशीलता चला जाना किसी के लिए भी यह बड़ा सदमा था. इसके बाद भी तमाम मुश्किलों से वो आगे बढ़ा और आज देश के लिए गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया. हम बात कर रहे गोल्ड मेडलिस्ट हरविंदर सिंह सिंह की, जिनकी कहानी संघर्ष, जुनून और साहस से भरी हुई है. आज पूरा देश उन्हें सलाम कर रहा है.
His arrow has hit GOLD!
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) September 4, 2024
Harvinder Singh has unleashed the true power of precision with his golden triumph in the Para Archery Men’s Individual Recurve Open at #Paralympics2024!
With every shot, he’s demonstrated that extraordinary skill & relentless determination can conquer… pic.twitter.com/B6jHYMpDK3
कैसे रचा इतिहास?
पेरिस में हरविंदर ने दुनिया के 35वें नंबर के खिलाड़ी और छठे वरीय सिजेक को फाइनल में 28-24, 28-27, 29-25 से मात देकर इतिहास रचा है. वो पहले ऐसे पैरा तीरंदाज बने हैं, जिन्होंने भारत को गोल्ड दिलाया है. आइए जानते हैं इस एथलीट के बारे में...
🇮🇳🔥 𝗛𝗔𝗥𝗩𝗜𝗡𝗗𝗘𝗥 𝗛𝗜𝗧𝗦 𝗚𝗢𝗟𝗗! Absolutely brilliant from Harvinder Singh as he claims the gold medal following a victory over 🇵🇱's Lukasz Ciszek in the final of the men's individual recurve open event. This is India's first Paralympic gold medal in archery and also… pic.twitter.com/XxtIuPZoxc
— Sportwalk Media (@sportwalkmedia) September 4, 2024
कौन हैं हरविंदर सिंह
हरविंदर सिंह हरियाणा में आने वाले कैथल के सुदूर गांव के किसान परिवार में जन्मे थे. जब वो 1.5 साल के थे तभी उन्हें डेंगू ने जकड़ लिया था. इलाज के लिए लगाए गए इंजेक्शन ने फायदे की जगह नुकसान पहुंचाया और उनके पैरों की गतिशीलता चली गई.
हरविंदर सिंह का तीरंदाजी से परिचय 2010 में पंजाबी यूनिवर्सिटी में हुआ था, उन्होंने एक साथ कई तीरंदाजों को ग्रुप ट्रेनिंग करते देखा था. 2 साल बाद इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट की पढ़ाई करते हुए, उन्होंने लंदन पैरालंपिक में तीरंदाजी में एथलीटों को देखा, जिसने उनमें एक प्रोफेशनल तीरंदाज बनने की इच्छा जगा दी. यहीं से हरविंदर सिंह के तीरंदाज बनने की कहानी शुरू हुई.
Tears up just a bit, nice big gulp at the end - emotions for Harvinder Singh as the national anthem plays for the first time in Paralympic archery
— Lavanya 🎙️🎥👩🏻💻 (@lav_narayanan) September 4, 2024
Crowd shouts Bharat Mata ki....
Harvinder finishes the chant - "....jaaai"
What a moment for Harvinder. What a moment for India!… pic.twitter.com/H7FSVbZ1m7
पिता ने खेत में बनवाया दिया था तीरंदाजी रेंज
बेटे के सपने को पूरा करने में पिता का अहम रोल रहा. हरविंदर के पिता ने अपने खेत को तीरंदाजी रेंज में बदल दिया. ताकि बेटा आसानी से प्रैक्टिस कर सके. कड़ी मेहनत के बाद साल 2018 में हरविंदर ने जकार्ता में एशियाई पैरा खेलों में पुरुषों के व्यक्तिगत रिकर्व ओपन इवेंट में गोल्ड जीतकर बड़ा कमाल किया था.
20 दिन पहले मां को खोया
हरविंदर की कहानी इसलिए भी भावुक करती है क्योंकि पेरिस में गोल्ड जीतने से ठीक 20 दिन पहले ही उन्होंने अपनी मां को खोया है. वो इस दुनिया को अलविदा कह गई थीं, जिससे हरविंदर टूट गए थे. मेडल जीतने के बाद मां को याद करते हुए वे भावुक भी हो गए.
यह सब मां के आशीर्वाद से ही हो पाया है
हरविंदर सिंह ने कहा 'मैंने इवेंट से ठीक 20 दिन पहले अपनी मां को खो दिया था. इसलिए मैं मानसिक रूप से बहुत दबाव महसूस कर रहा था. मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ खोया है, यहां तक कि अपनी मां को भी, इसलिए मुझे वहां से मेडल लेना था और सौभाग्य से मैं जीत गया. यह सब मेरी कड़ी मेहनत और मेरी मां के आशीर्वाद के कारण है.