Manoj Tiwary on MS Dhoni: टीम इंडिया में खेलने हर बच्चे का सपना होता है. हर किसी का सपना पूरा नहीं होता, जिसका होता है वे किस्मत वाले होते हैं. हमेशा से भारतीय टीम का चयन टेढ़ी खीर रही है. इतने सारे खिलाड़ियों के बीच 11 का सलेक्शन करना हर कप्तान-कोच के लिए मुश्किल काम है. हालांकि किसी-किसी खिलाड़ी पर कप्तान कोच की विषेश नजर रहती है. फेवरेटिज्म का आरोप भारत में नया नहीं है. हर कप्तान को इससे दो-चार होना पड़ा है.
सोमवार को प्रथम श्रेणी के दिग्गज खिलाड़ी मनोज तिवारी ने मौजूदा रणजी ट्रॉफी सीजन के अपने अंतिम लीग चरण के मैच के बम फोड़ा है. उन्होंने अपने करियर का सबसे बड़ा अफसोस साझा किया. इसके साथ ही उन्होंने पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के रवैये प्रति अपनी निराशा जाहिर की.
मीडिया से बात करते हुए तिवारी ने कहा कि पूर्व कप्तान धोनी से यह जानना चाहते हैं कि शतक लगाने और प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार जीतने के बाद भी उन्हें लगातार 14 मैचों तक क्यों बाहर रखा गया. उन्हें ऑस्ट्रेलिया के 2012 के टूर पर क्यों नजरअंदाज किया गया? जबकि उस समय टीम के मेन बल्लेबाद रोहित शर्मा, विराट कोहली और सुरेश रैना के रन भी नहीं बन रहे थे. उन्होंने कहा कि जब भी मुझे मौका मिलेगा मैं उनसे सुनना चाहता हूं. मैं यह सवाल जरूर पूछूंगा. मैं धोनी से पूछना चाहता हूं कि शतक बनाने के बाद मुझे टीम से बाहर क्यों कर दिया गया, खासकर ऑस्ट्रेलिया के उस दौरे पर जहां कोई भी रन नहीं बना रहा था.
मनोज तिवारी ने कहा कि जब मैंने 65 प्रथम श्रेणी मैच खेले थे, तब मेरी बल्लेबाजी औसत 65 के आसपास थी. ऑस्ट्रेलिया टीम ने तब भारत का दौरा किया था और मैंने एक दोस्ताना मैच में 130 रन बनाए थे, फिर मैंने इंग्लैंड के खिलाफ एक दोस्ताना मैच में 93 रन बनाए. मैं टेस्ट कैप हासिल करने के बहुत नजदीक था, लेकिन तब उन्होंने युवराज सिंह को चुन लिया. इसलिए टेस्ट कैप हासिल न कर पाना और सेंचुरी बनाने के बाद अगले 14 मैचों के लिए ड्रॉप कर देने का मुझे अफसोस रहेगा.
तिवारी ने 2008 में भारत के लिए पदार्पण किया और सात वर्षों और आठ अलग-अलग सीरीज में 12 वनडे और तीन टी20 मैच खेले. दिसंबर 2011 में, उन्होंने चेन्नई में वेस्टइंडीज के खिलाफ नाबाद 104 रन बनाकर अपना पहला अंतरराष्ट्रीय शतक बनाया. हालांकि, उन्हें अगला अवसर पाने के लिए सात महीने और इंतज़ार करना पड़ा. 38 वर्षीय मनोज तिवारी जो बंगाल के खेल मंत्री भी हैं, ने 2004 में अपने पदार्पण के बाद से 147 मैचों में 10,000 से अधिक रन बनाकर अपने प्रथम श्रेणी करियर का अंत किया.