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कभी 100 रु के नोट पर छपी इमारत को ध्यान से देखा है? जानें क्यों है खास और इसकी सबसे अहम बातें

100 Rs Note Monument: नोटबंदी के बाद भारतीय रुपए के नोटों में काफी बदलाव देखने को मिला जिसमें 100 रु के नोट ने काफी सुर्खियां बटोरी, अपने रंग के अलावा 100 रु के नोट के पीछे छपी इमारत क्या है और उसे यहां जगह क्यों मिली है इस पर एक नजर डालते हैं-

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Edited By: India Daily Live
100 rs Note
Courtesy: RBI

100 Rs Note Monument: कभी आपने 100 रुपये के नोट को गौर से देखा है? अगर देखा है, तो आपने पीछे की तरफ एक बेहद खूबसूरत स्मारक जरूर देखा होगा. यह स्मारक गुजरात के पाटन में स्थित रानी की वाव है, जो सीढ़ियों वाली बावली है. यह प्राचीन भारतीय वास्तुकला और इंजीनियरिंग का एक बेहतरीन उदाहरण है, और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है. आइए, इस अद्भुत संरचना के इतिहास, विशेषताओं और महत्व को जानने का प्रयास करें.

'रानी का वाव' का मतलब क्या है?

रानी की वाव, जिसका अर्थ गुजराती में "रानी की बावड़ी" होता है, पाटन, गुजरात में स्थित एक प्राचीन बावड़ी है. बावड़ी एक तरह की जल संग्रहण संरचना है जिसमें सीढ़ियों की एक श्रृंखला नीचे पानी के कुंड तक जाती है. बावड़ियां भारत में, खासकर गुजरात और राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में आम थीं. ये पानी के स्रोत, लोगों के इकट्ठा होने के स्थान और धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व के स्थल हुआ करती थीं.

11वीं सदी में बना था इंजीनियरिंग और वास्तुकला का यह मिश्रण

रानी की वाव का निर्माण 11वीं शताब्दी में रानी उदयामति द्वारा करवाया गया था. रानी उदयामति, सोलांकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी थीं. यह बावड़ी रानी उदयामति द्वारा अपने पति की याद में बनवाई गई थी. रानी की वाव भारत की सबसे बड़ी और सबसे सुंदर बावड़ियों में से एक है. इसकी लंबाई लगभग 64 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और गहराई 27 मीटर है. इसमें सात मंजिलों पर सीढ़ियां हैं और 500 से अधिक मूर्तियां हैं जिनमें हिंदू देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं के दृश्यों और फूलों के चित्रण हैं.

इस वजह से इतिहास में रखता है खास जगह

रानी की वाव कई कारणों से महत्वपूर्ण है. पहला, यह सोलांकी शासनकाल की स्थापत्य और कलात्मक उत्कृष्टता का एक उल्लेखनीय उदाहरण है. सोलांकी शासनकाल को गुजरात का स्वर्ण युग माना जाता है. यह बावड़ी उस समय के शिल्पकारों के जटिल और विस्तृत नक्काशी कौशल को प्रदर्शित करती है, जिन्होंने बलुआ पत्थर का उपयोग करके इतनी खूबसूरत मूर्तियां बनाईं. ये मूर्तियां नागर, द्रविड़ और मारू-गुर्जर जैसी विभिन्न शैलियों के प्रभाव को दर्शाती हैं, साथ ही इसमें बौद्ध धर्म और जैन धर्म के तत्व भी शामिल हैं.

दूसरा, रानी की वाव रानी उदयामति की भक्ति और समर्पण का प्रमाण है. रानी उदयामति ने अपने पति के सम्मान में और अपने प्यार के प्रतीक के रूप में इस बावड़ी का निर्माण करवाया था. यह बावड़ी सोलांकी समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शाती है, क्योंकि वे कला, संस्कृति और धर्म की संरक्षक थीं.

तीसरा, रानी की वाव 11वीं शताब्दी में गुजरात के लोगों के इतिहास, संस्कृति और उनके विश्वासों के बारे में जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत है. बावड़ी में संस्कृत और प्राकृत भाषा के शिलालेख हैं, जो इसके निर्माण, रखरखाव और दान के बारे में विवरण प्रदान करते हैं. मूर्तियां हिंदू धर्म पौराणिक कथाओं के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं, जैसे दशावतार (विष्णु के दस अवतार), सप्त मातृका (सात मातृ देवी), और अष्ट दिग्पाल (दिशाओं के आठ संरक्षक). रानी की वाव नाग (सांप देवता) की ब्रह्मांड संबंधी अवधारणा को भी दर्शाती है, जिन्हें माता माना जाता है और जल स्रोतों को नियंत्रित करने वाली मानी जाती हैं.

13वीं सदी में डूब गई थी इमारत

रानी की वाव लगभग दो शताब्दियों तक उपयोग में रही, जब तक कि 13वीं शताब्दी में पास की सरस्वती नदी में आई बाढ़ के कारण यह जलमग्न होकर दब नहीं गई. इसके बाद सदियों तक रानी की वाव छिपी रही और इतिहास के पन्नों में भुला दी गई, जब तक कि 1980 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसे फिर से खोज नहीं लिया गया. एएसआई ने बावली की खोई हुई महिमा को वापस लाने के लिए व्यापक उत्खनन और जीर्णोद्धार कार्य किया. आज, रानी की वाव एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है.

जानें कितनी है यहां की एंट्री फीस

रानी की वाव पाटन में स्थित है, जो गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से लगभग 125 किलोमीटर दूर है. पाटन तक अहमदाबाद या गुजरात के अन्य प्रमुख शहरों से सड़क, रेल या हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है. यह बावली हर दिन सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक राष्ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर दर्शकों के लिए खुली रहती है. भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क 40 रुपये और विदेशी नागरिकों के लिए 600 रुपये है. बावली के पास एक संग्रहालय भी है, जो खुदाई के दौरान मिली कुछ मूर्तियों और कलाकृतियों को प्रदर्शित करता है.

वो रोचक बातें जो नहीं जानते होंगे आप

  • रानी की वाव भारत की एकमात्र ऐसी बावली है जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है. इसे 2014 में सांस्कृतिक महत्व और उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के मानदंडों के तहत शामिल किया गया था. 
  • रानी की वाव को 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए नए 100 रुपये के नोट पर भी चित्रित किया गया है. नोट में स्वच्छ भारत लोगो और "सत्यमेव जयते" नारे के साथ, उत्तर दिशा से देखी गई बावली का दृश्य दर्शाया गया है.
  • रानी की वाव को भारत में भूमिगत वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है. बावली का एक अद्वितीय डिजाइन है जो एक उल्टे मंदिर जैसा दिखता है, जिसमें मुख्य कुआँ नीचे और उसके ऊपर सीढ़ियां और मूर्तियां हैं.
  • रानी की वाव यहां आने वाली आवाज के लिए भी मशहू है. कुएं से टपकते पानी की आवाज पूरे बावली में सुनी जा सकती है, जो एक सुखदायक और शांत वातावरण बनाती है. बावली का एक प्राकृतिक शीतलन प्रभाव भी है, क्योंकि अंदर का तापमान बाहर के तापमान से कम होता है.

तो, अगली बार जब आप 100 रुपये का नोट देखें, तो रानी की वाव के इतिहास और भव्यता को याद करें. यह शानदार स्मारक न केवल अतीत की शिल्प कौशल का प्रमाण है, बल्कि यह उस समय के समाज, संस्कृति और मान्यताओं की भी एक झलक प्रदान करता है.