कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज आज भी असंभव ही माना जाता है. कोई ना कोई आज भी इस खतरनाक बीमारी का सामना कर रहा है. अगर समय पर इसका इलाज हो तो मरीज के बचने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है और अगर लास्ट फेज तक भी इस बीमारी का पता न चले तो मरीज के जान को खतरा रहता है. बढ़ती महंगाई के दौर में इसका इलाज करा पाना भी किसी से संभव नहीं हो पाता है. चुकी उसकी थेरेपी इतनी महंगी होती है कि अच्छे-अच्छों की हालत खराब हो जाती है. ऐसे में इससे निपटने को लेकर हालिया शोध में कई सारी संभावित रणनीतियों को देखा जा रहा है, इसमें एक तरीका है उपवास.
स्टडी से पता चलता है कि भूखे पेट रहने से एनके सेल्स को एनर्जी के लिए शुगर के बजाय फैट पर निर्भर करने के लिए रि प्रोग्राम करता है. इस मेटाबॉलिक शिफ्ट से उन्हें कैंसर सेल्स को टारगेट करने और खत्म करने की प्रभावी क्षमता मिलती है. उपवास के कारण एनके सेल्स ट्यूमर के वातावरण में भी पनप सकती है और जिससे कैंसर से लड़ने की क्षमताओं में सुधार आता है.
इस नई स्टडी में पाया गया है कि उपवास में कैंसर की रोकथाम क्षमता ज्यादा होती है. साल 2016 में भी चूहों पर एक अध्ययन किया गया था. जिसमें कीमोथेरेपी एडमिनिस्ट्रेशन से पहले शॉर्ट-टर्म फास्टिंग टॉक्सिसिटी को कम कर सकती है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉक्टरों का मानना है कि उपवास कैंसर के खतरे को कम करने में सही है कि नहीं, यह बात इंसुलिन के स्तर और सेलुलर प्रक्रियाओं पर इसके संभावित प्रभाव से आती है. हाई इन्सुलिन लेवल को कैंसर सेल्स की बढ़ोतरी को बढ़ावा देने से जोड़ा गया है. उपवास इंसुलिन के स्तर को कम करके, कैंसर सेल्स को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण बना सकता है. इसके अलावा, उपवास उन प्रक्रियाओं को एक्टिव कर सकता है जो प्री-कैंसर सेल्स को बढ़ने पहले ही हटा सकती है.
माना जाता है कि उपवास करने से शरीर में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट बढ़ता है जो कोशिकाओं को कैंसर का कारण बनने वाले से बचाता है लेकिन हर किसी मरीज की शारीरिक परिस्थितियों पर विचार करना महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह रिसर्च चूहों पर हुई है. जब तक यह स्टडी मानव शरीर पर नहीं हो जाती तब तक उपवास वाले रिसर्च पर कुछ भी बोलना असंभव है.