Lifestyle: अक्सर यह माना जाता है कि शादी इंसान के मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है. लेकिन हाल ही में द जर्नल ऑफ द अल्जाइमर एसोसिएशन में प्रकाशित एक नई स्टडी ने इस धारणा को चुनौती दी है. फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह पाया गया है कि जो लोग कभी शादीशुदा नहीं हुए या जो तलाकशुदा हैं, उनमें डिमेंशिया (संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट) होने का खतरा विवाहित लोगों की तुलना में कम हो सकता है.
पहले क्या कहा गया था?
2019 में आई एक पुरानी रिसर्च में यह कहा गया था कि अविवाहित लोगों में डिमेंशिया का खतरा शादीशुदा लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है. लेकिन इस नई रिसर्च ने उस दावे को नकारते हुए बताया है कि विवाहित लोगों में डिमेंशिया के लक्षण अधिक देखने को मिल रहे हैं.
शादी क्यों नहीं देती मानसिक सुरक्षा?
विशेषज्ञों का कहना है कि शादी अपने आप में मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा नहीं देती. ग्लेनेग्ल्स बीजीएस अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अविनाश कुलकर्णी के अनुसार, "हर रिश्ता अलग होता है और उसका प्रभाव भी अलग होता है. सिर्फ शादीशुदा होना किसी को मानसिक रोगों से नहीं बचाता."
भारत में क्यों अलग हैं हालात?
डॉ. कुलकर्णी का यह भी कहना है कि भारतीय समाज में स्थिति थोड़ी अलग है. यहां कई महिलाएं शादी के बाद घरेलू भूमिकाओं तक सीमित रह जाती हैं, जिससे उनके आत्म-संतोष और मानसिक विकास में कमी आ सकती है. यह भावनात्मक असंतोष डिमेंशिया जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है.
क्या यह डेटा सभी पर लागू होता है?
हालांकि यह स्टडी अमेरिका में हुई है, और वहां के सामाजिक ढांचे को देखते हुए इसके नतीजों को भारत में सीधे लागू नहीं किया जा सकता. इसके अलावा स्टडी में शामिल लोगों में अधिकतर विवाहित थे, जिससे नतीजों की व्यापकता पर भी सवाल उठते हैं.