गर्मी का मौसम जैसे-जैसे चढ़ रहा है आमों की आवक बढ़ रही है. बढ़ती गर्मी के साथ-साथ आम की अलग-अलग किस्में बाजार में आ जाएंगी और बारिश की शुरुआत तक पूरे देश में जमकर आम खाए जाएंगे. दुनियाभर में आम भेजने वाले भारत में फलों के इस राजा की सैकड़ों किस्में पाई जाती हैं. कोई रंग के लिए मशहूर है, कोई आकार के लिए तो कोई स्वाद के लिए. आम की एक ऐसी किस्म भी है जो अपनी उत्पत्ति के लिए ही बेहद मशहूर जाता है. इसको लेकर कई तरह की कहानियां भी बताई जाती हैं जो इसके स्वाद और इसके रंग को भी अच्छे से परिभाषित करती हैं.
कहा जाता है कि भारत में इस आम की प्रजाति पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर की शाह फैसल मस्जिद से लाई गई थी. किसी दूसरे रूप में आई इस किस्म को लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन लाए और पटना के दीघा में इसे लगवाया गया. पुराने लोग बताते हैं कि नवाब साहब के पास खूब गाय थीं और वह इस आम की सिंचाई गाय के दूध से किया करते थे.
सिंचाई के बाद जब पेड़ बड़ा और इस पर फल आए तो इसका रंग दूधिया दिखा और फल से दूध जैसा पदार्थ भी निकलने लगा. इसी के चलते इस किस्म का नाम ही 'दूधिया मालदा' रख दिया गया. मौजूदा समय में इस आम को देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत तमाम नेताओं और दुनिया के 33 देशों को भेा जाता है. विदेश में इस आम के इतने दीवाने हैं कि इसकी अडवांस बुकिंग करवाई जाती है.
देखने में दूधिया रंग का दिखने वाला यह आम अपने पतले छिलके, पतली गुठली और ज्यादा गूद की वजह से जाना जाता है. हालांकि, अब इस आम के पेड़ कम होते जा रहे हैं. पहले पटना में एक हजार एकड़ में फैले दूधिया मालदा के बाग अब कम होकर एक एकड़ तक पहुंच गए हैं. अब बहुत कम लोगों के बागों या घरों पर ही इसके पेड़ मौजूद हैं. समय के साथ देशभर में इसके पेड़ों की संख्या तेजी से कम हुई है.
इसके बावजूद दुनिया के तमाम देशों में इस आम की मांग कम नहीं हो रही है. बिहार में सरकार भी इन आमों के लिए विशेष प्रयास करती है. आमों को विदेश भेजने के लिए सरकार की ओर से इंतजाम भी किया जाता है और किसानों की मदद भी की जाती है.