नई दिल्ली: मौजूदा समय में ट्रैकिंग भाग-दौड़ भरी जिंदगी से बाहर निकल कर आराम के कुछ पल निकालने का बड़ा जरिया बन चुकी है. महानगरों में मशीनी जिंदगी बिताने वाले लोग इसके जरिए राहत के कुछ पल तलाशते नजर आते हैं. ऐसे में किसी भी ट्रैकर से जब आप हरिश्चंद्रगड किल्ला का नाम लेंगे तो वो आसानी से इसे पहचान लेगा. यह किल्ला महाराष्ट्र के अहमदनगर के मालशेज घाट में 1,422 मीटर की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है.
हजारों साल पुरानी है हरिश्चंद्रेश्वर किले की पृष्ठभूमि
यह पहाड़ी किला अपने नायाब प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ अपनी पौराणिक धरोहर के लिए भी लोकप्रिय है. यह राजसी चोटी आसपास की सुंदरता में चार चांद लगा देती है. हरिश्चंद्रगड किल्ला ठाणे, पुणे और नगर की सीमा पर मालशेज़ घाट के बाईं ओर अजास्त्र पर्वत है. हरिश्चंद्रगड एक सुंदर उदाहरण है कि कोई व्यक्ति किसी स्थान या किले का इतने अलग-अलग तरीकों से अध्ययन कैसे कर सकता है.
इस किले का इतिहास पेचीदा है और भूगोल अद्भुत है. पुराण अक्सर अपने धर्मग्रंथों में इस किले का उल्लेख करते हैं. भारत के सभी किले कोई न कोई राजा के नाम से जुड़ा है लेकिन हरिश्चंद्रगढ़ की पौराणिक पृष्ठभूमि कई हजार साल पहले की है. प्राचीन अग्नि पुराण और मत्स्य पुराण में भी हरिश्चंद्र का उल्लेख है जो साढ़े तीन हजार वर्ष से अधिक पुराना है. हरीशचंद्रगढ़ में तीन मुख्य चोटियां रोहिदास, हरीशचंद्र और तारामती हैं. तीनो में तारामती चोटी सबसे ऊंची है. और ट्रैकर्स के बीच ये जगह बहुत लोकप्रिय है. तारामती चोटी से कोंकण क्षेत्र का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है.
कोबरा के फन की तरह लटकी है कोकन कड़ा चट्टान
कोकन कड़ा चट्टान हरिश्चंद्रगड का प्रमुख आकर्षण है. यह चट्टान न केवल खड़ी है, बल्कि कोबरा के फन की तरह लटकी हुई भी है. यह प्रकृति वास्तुकला वर्णन से परे है. और आप कैंपिंग के दौरान रात में सर्द मौसम और ठंडी हवा का अनुभव कर सकते हैं. ठंड के मौसम में कैंप फायर के अलावा कैंपिंग में बैठने और प्रकृति की शांति का आनंद लेने में हमेशा मजा आता है.
कोकन कड़ा चट्टान की ऊंचाई 4665 फीट है जो महाराष्ट्र राज्य की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है. इस चोटी पर खड़े होकर पर्यटक एक शानदार सूर्योदय की सुनहरी छतरी का आनंद लेते हैं और साथ ही नजदीकी पर्वत श्रृंखलाओं का अद्भुत दृश्य भी दिखाई देता है. यहां पर किले की खूबसूरती के साथ-साथ दूसरी कई खूबसूरती छिपी है क्योंकि यह किले के आस पास करवंड, कर्वी जाली, ध्याति, उक्शी, मैडवेल, कुड़ा, पंगली, हेक्कल, पनफुति, गरवेल आदि पौधे देखने को मिलते है. उसके साथ-साथ यह विस्तार में आपको लोमड़ी, तारा, रणदुक्कर, भैंस, बिब्ते, खरगोश, भिकर, जुगाली करने वाले आदि वन्यजीव भी देखने को मिलते है.
पहाड़ी को काटकर बनाया गया है हरिश्चंद्रगढ़ मंदिर
पर्यटक स्थल की बात करे तो नानेघाट, जीवनधन, रतनगढ़, कटराबाई खंड, अजोबचा डोंगर, कसुबाई, अलंग, मदन, कुलंग, भैरवगढ़, हदसर और चावंद सभी गढ़ के उच्चतम तारामती से दिखाई देते हैं. हरिश्चंद्रगढ़ मंदिर एक पहाड़ी को काटकर बनाया गया है. यह मंदिर बेहद सुंदर है और इसकी वास्तुकला श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है. हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर में चारों दिशाओं से पर्यटक प्रवेश कर सकता है.उसके
प्रमुख दरवाजे को चेहरे की मूर्ति से सजाया गया है.
ऐसा कहा जाता है कि ये चेहरा मंदिर के रक्षक का है. मंदिर की शिल्पकला दक्षिण भारत के मंदिरों से मिलती जुलती दिखाई देती है. हरिश्चंद्रगढ़ किले का इतिहास काफी प्राचीन है. किला मूल रूप से कलचुरी राजवंश के शासन के समय में यानि छठी शताब्दी का है. महान ऋषि चांगदेव ने अपना समय मंदिर में गहन साधना में बिताया और 14वीं शताब्दी में प्रसिद्ध पांडुलिपि ‘ततवासर’ भी लिखी.
12वीं शताब्दी के मंदिर में स्थापित है 5 फीट लंबा शिवलिंग
किले पर 16 वीं शताब्दी में मुगलों का नियंत्रण था, उसके बाद मराठों ने 18 वीं शताब्दी में कब्जा कर लिया. अन्य किलों में पाए जाने वाले प्राचीर यहाँ दिखाई नहीं देते हैं. किले में प्राचीन गुफाएं हैं और 12 वीं शताब्दी में एक शिव मंदिर है. यह सह्याद्री में सबसे दुर्गम किले के रूप में जाना जाता है. मंदिर के करीब तीन गुफाएं हैं. सबसे रहस्यमय है केदारेश्वर गुफा जो मंदिर के दाईं ओर स्थित है. इस खूबसूरत गुफा में 5 फीट लंबा शिव लिंग है जो बर्फ के ठंडे पानी के बीच में है.
चौथा स्तंभ टूटते ही खत्म हो जाएगी दुनिया
पानी कमर के ऊपर होता है और पानी की ठंडी प्रकृति के कारण शिव लिंग तक पहुँचना काफी मुश्किल होता है. गुफा में खुदी हुई सुंदर मूर्तियां हैं. एक और दिलचस्प बात यह है कि चार दीवारों के माध्यम से इस मंदिर में हर रोज पानी रिसता है और यह गुफा तक जाना मानसून में काफी दुर्गम हो जाता हैं क्योंकि रास्ते में एक विशाल जलधारा बहती है.
शिव लिंग के ऊपर एक विशाल चट्टान है और इसके चारों ओर चार खंभे हैं. ये चार स्तंभ सत, त्रेता, द्वापर और काली के चार युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लोगों के मान्यता के अनुसार प्रत्येक युग के अंत में एक स्तंभ अपने आप टूट जाता है. चार स्तंभ में से तीन स्तंभ टूट चूके हैं यानि तीन युगों का अंत हो चुका हैं और चौथे स्तंभ के टूटने पर दुनिया खत्म हो जाएगी.
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