CAR-T cell therapy commercial use: भारत में कैंसर से जूझ रहे रोगियों के लिए एक अच्छी खबर है. भारत के दवा नियामक यानी ड्रग रेगूलेटर की ओर से सीएआर-टी सेल थेरेपी (CAR-T Cell Therapy) को कॉमर्शियल यूज के लिए मंजूरी दिए जाने के कुछ महीनों बाद ये थेरेपी मरीजों पर कारगर साबित हुई है. दिल्ली के रहने वाले गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट 64 साल के डॉक्टर (कर्नल) वीके गुप्ता ने 42 लाख रुपये खर्च कर इस थेरेपी के जरिए कैंसर से मुक्ति पा ली है. इस थेरेपी के जरिए कैंसर से मुक्ति पाने वाले डॉक्टर गुप्ता पहले मरीज हैं.
आम तौर पर विदेशों में कैंसर से इलाज में 3 से 4 करोड़ रुपये खर्च हो जाते हैं. लेकिन डॉक्टर गुप्ता के इलाज में 42 लाख रुपये खर्च हुए. वे इळाज के लिए टाटा मेमोरियल अस्पताल में एडमिट थे. अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि डॉक्टर गुप्ता कैंसर से पूरी तरह मुक्त हैं. डॉक्टर गुप्ता का थेरेपी के जरिए इलाज करने वाले डॉक्टर हसमुख जैन ने कहा कि हालांकि ये कहना जल्दबाजी होगी कि इलाज पूरे जीवन कारगर साबित होगा और डॉक्टर गुप्ता फिर से कैंसर के पेशेंट नहीं बनेंगे, लेकिन फिलहाल वे इससे मुक्त हैं.
डॉक्टर हसमुख जैन एडवांस्ड सेंटर फॉर ट्रीटमेंट, रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर (ACTREC) के हेमाटो-ऑन्कोलॉजिस्ट और एसोसिएट प्रोफेसर हैं. थेरेपी की सफलता दर के बारे में पूछे जाने पर डॉक्टर हसमुख जैन ने कहा कि प्रारंभिक निष्कर्ष में बेहतर परिणाम मिले हैं. उन्होंने कहा कि थेरेपी की सफलता की दर को तय करने के लिए करीब दो साल की जरूरत होगी. अब तक, हमारे अस्पताल में इस थेरेपी को लेने वाले सभी मरीजों को कैंसर से मुक्ति मिल चुकी है. क्लीनिकल ट्रायल के जरिए कैंसर के किसी भी लक्षण का पता नहीं लगाया जा सका है. डॉक्टर हसमुख जैन ने कहा कि इस थेरेपी से कैंसर से होने वाली मृत्यु दर को कम करने, कैंसर के इलाज में क्रांति लाने और सैंकड़ों लोगों की जान बचने की उम्मीद है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्वदेशी रूप से विकसित सीएआर-टी सेल थेरेपी से बी-सेल कैंसर जैसे ल्यूकेमिया और लिम्फोमा का इलाज किया जाता है. इसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में स्थापित कंपनी इम्यूनोएसीटी की ओर से संयुक्त रूप से तैयार किया गया है. इस थेरेपी के कॉमर्शियल यूज की मंजूरी अक्टूबर 2023 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की ओर से दी गई थी. वर्तमान में NexCAR19 भारत के 10 से अधिक शहरों में 30 से अधिक अस्पतालों में उपलब्ध है. 15 साल से अधिक उम्र के मरीज जो बी-सेल कैंसर से पीड़ित हैं, वे इन सेंटर्स पर जाकर थेरेपी ले सकते हैं.
कैंसर पर विजय पाने वाले मरीज 64 साल के डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि अगर मुझसे 2022 में किसी ने कहा होता कि मैं फिर से काम पर वापस जा सकूंगा और मैं कैंसर पर विजय प्राप्त कर लूंगा तो ये मजाक लगता. उन्होंने कहा कि मैंने 28 साल तक सेना में डॉक्टर के रूप में काम किया. मैं लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया से पीड़ित था, जो तेजी से बढ़ने वाला कैंसर है. जब मेरा बोन मैरो ट्रांसप्लांट असफल हो गया, तब मुझे लगा कि मेरे पास कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन सीएआर-टी सेल थेरेपी ने मुझे बचा लिया. मैं अब एक सैनिक की तरह महसूस करता हूं, थका हुआ, लेकिन हार मानने को तैयार नहीं.
IIT बॉम्बे में बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और इम्यूनोएसीटी के संस्थापक CEO डॉ. राहुल पुरवार ने कहा कि हमारी थेरेपी बी-सेल लिंफोमा वाले रोगियों के लिए तैयार की गई है. ये थेरेपी खासकर उन मरीजों के लिए है, जिनका कीमोथेरेपी फेल हो गया है या इलाज के बाद दोबारा इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं.
उन्होंने बताया कि डॉक्टर गुप्ता की भी ऐसी ही स्थिति थी. 2021 में उन्हें कैंसर का पता चला और उन्हें चार सप्ताह की कीमोथेरेपी से गुजरना पड़ा. डॉक्टर गुप्ता के एक मित्र ने हेमेटोलॉजिस्ट से मुलाकात की और स्पेशल ट्रीटमेंट की प्लानिंग तैयार की. इलाज के दौरान डॉक्टर गुप्ता के स्वास्थ्य में सुधार आया. लेकिन जनवरी 2022 में उनका बैन मैरो ट्रांसप्लान असफल हो गया और फिर से उन्हें कैंसर ने जकड़ लिया.
इसके बाद, उनके दोस्तों ने CAR-T सेल थेरेपी की सिफारिश की. हालांकि, सिंगापुर, यूके और इजराइल में पूछताछ से पता चला कि इनकी कीमत 3 करोड़ रुपये से ज्यादा है. लगभग उसी समय, डॉक्टर गुप्ता ने भारत में सीएआर-टी सेल थेरेपी की शुरुआत हुई. इसके बाद डॉक्टर गुप्ता नवंबर 2023 में टाटा मेमोरियल अस्पताल में एडमिट हो गए.
काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) T-सेल थेरेपी के जरिए मरीज के टी-लिम्फोसाइट्स या टी-सेल्स को मशीनों के जरिए कैंसर से इलाज के लिए तैयार किया जाता है. साथ ही इलाज के दौरान मरीज के ब्लड से व्हाइट सेल या टी सेल्स लेकर इलाज किया जाता है. अमेरिका में साल 2017 में इस थेरेपी को मंजूरी दी गई थी. ये प्रॉसेस सिर्फ एक बार ही की जाती है. इस नई थेरेपी से देश में हर साल कैंसर से पीड़ित होने वाले मरीजों की संख्या में कमी आ सकती है. देश में साइंटिस्ट्स ने 2018 में इस थेरेपी पर काम शुरू किया था. टाटा और पीजीआई चंडीगढ़ इस थेरेपी को मरीजों पर अप्लाई किया गया था. निष्कर्ष में पाया गया कि ये थेरेपी कैंसर के मरीजों पर करीब 90 फीसदी तक कारगर है.