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India Daily

2050 में सूखे की चपेट में आई 75 फीसदी आबादी, गर्मी, भुखमरी और बीमारियों से मचेगा हाहाकार

यूएनसीसीडी और अन्य वैश्विक संस्थाओं द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट साफ करती है कि सूखा सिर्फ एक प्राकृतिक घटना नहीं है, बल्कि यह मानवीय गतिविधियों का परिणाम भी हो सकता है. सूखे से निपटने के लिए तात्कालिक कार्रवाई, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और स्मार्ट कृषि प्रबंधन की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित वातावरण मिल सके.

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Edited By: Mayank Tiwari
सूखे के कारण लोगों को छोड़ना पड़ सकता है अपना घर
Courtesy: Social Media

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका जताई है. इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2050 तक लगभग 75 प्रतिशत आबादी सूखे से प्रभावित होगी. दरअसल, दुनिया में तेजी से बढ़ रहे रेगिस्तान को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कंबैट डेजर्टिफिकेशन और यूरोपीय कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर ने एक रिपोर्ट जारी की है. जहां 2 दिसंबर, 2024 को जारी वर्ल्ड डेजर्ट एटलस में यह चेतावनी दी गई है कि साल 2050 तक लगभग 75 प्रतिशत दुनिया की आबादी सूखे से प्रभावित हो सकती है.

यह रिपोर्ट तब सामने आई है, जब यूएनसीसीडी के सदस्य देश सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अपनी 16वीं बैठक में जुटे हैं, ताकि आने वाले समय में बढ़ते सूखे को रोकने के उपायों पर चर्चा की जा सके. इस एटलस में सूखे के कारण ऊर्जा, व्यापार और कृषि पर पड़ने वाले असर का विस्तार से विश्लेषण किया गया है.

सूखे के कारण और प्रभाव

इस बीच यूरोपीय आयोग के जॉइंट रिसर्च सेंटर के कार्यकारी महानिदेशक बर्नार्ड मगेन्हान ने कहा, "सूखा केवल जलवायु संकट नहीं है, यह भूमि और जल के उपयोग से संबंधित मानवीय कारणों से भी बढ़ सकता है. चूंकि, जल के अत्यधिक इस्तेमाल, विभिन्न क्षेत्रों के बीच जल प्रतिस्पर्धा और खराब भूमि प्रबंधन जैसे मानवीय कारण सूखे को और बढ़ा सकते हैं.

भारत में सूखा और कृषि पर असर

यूएनसीसीडी ने भारत में सूखे के कारण हो रहे खासकर सोयाबीन उत्पादन में हुए भारी नुकसान को लेकर कृषि संकट की गंभीरता पर जोर दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कृषि क्षेत्र में 25 करोड़ से अधिक लोग काम करते हैं, और सूखा उनके लिए एक बड़ा संकट बन सकता है. एटलस में 2019 में चेन्नई में हुए 'डे जीरो' जल संकट का भी जिक्र किया गया है, जिसमें जल प्रबंधन की विफलता और अनियोजित शहरीकरण के कारण स्थिति बिगड़ी. रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि इससे यह पता चलता है कि सूखा हमेशा एक प्राकृतिक घटना नहीं होती है.

वैश्विक सहयोग और तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता

यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थियाव ने कहा, "समय बहुत कम है. मैं सभी देशों से अपील करता हूं कि वे इस एटलस के परिणामों को गंभीरता से लेकर एक स्थिर और सुरक्षित भविष्य के लिए तत्काल कदम उठाएं. उन्होंने यह भी कहा कि सूखे को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए समुदायों और देशों को सक्रिय और पूर्वानुमान नजरिए अपनानें होंगे.

फसलों पर सूखे का प्रभाव और समाधान

इंटरनेशनल ड्राउट रेजिलियंस अलायंस (आईडीआरए) के अनुसार, सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उपयुक्त मिट्टी और कृषि प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना एक प्रभावी उपाय हो सकता है. आईडीआरए, जो 2022 में स्थापित हुआ था, उसने इस एटलस के विकास में सहयोग किया है और सूखा प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीतियों को बढ़ावा देने का काम कर रहा है.