ईरान के चाबहार पोर्ट पर भारत की धाक, 10 साल की लीज डील, अमेरिका-चीन को क्यों लगी मिर्ची?
दुनिया के अगर सबसे जलनखोर देशों का जिक्र हो तो अमेरिका और चीन का नंबर पहले पर होगा. दोनों देशों को किसी की वैश्विक धाक बर्दाश्त नहीं होती है. भारत एक फैसले से इनकी आंखों की एक बार फिर किरकिरी बन गया है.
भारत ने ईरान के रणनीतिक रूप से बेहद अहम बंदरगाह चाबहार को 10 साल तक के लिए लीज पर ले लिया है. भारत और ईरान के बीच हुई इस डील पर सिग्नेचर होने के बाद से ही अमेरिका बुरी तरह तिलमिला गया है. अमेरिका ने भारत को ईरान के साथ डील पर प्रतिबंध की वॉर्निंग दे डाली है. धमकी भी ऐसी-वैसी नहीं, अमेरिका ने साफ कह दिया है कि जो भी ईरान के साथ व्यापारिक समझौते कर रहे हैं, उन्हें प्रतिबंधों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.
इजराइल पर ईरान के ड्रोन हमले के बाद अमेरिका का यह बयान भारत के लिए एक धमकी की तरह है. अमेरिका के गृह विभाग के डिप्टी प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा, 'हमें पता है कि ईरान और भारत ने चाबहार पोर्ट को लेकर एक डील कर रहे हैं. हम भारत के द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन हम इतना जरूर कहेंगे कि जहां तक अमेरिका के साथ की बात है तो ईरान पर प्रतिबंध जारी रहेंगे, हम हमेशा उसे लागू करते रहेंगे.'
प्रतिबंधों के लिए तैयार रहे हिंदुस्तान!
जब अमेरिकी प्रवक्ता से सवाल किया गया कि क्या भारत पर भी अमेरिका एक्शन लेगा, तब इसके जवाब में अमेरिका ने कहा कि हमारी नीतियों को दुनिया जानती है. जो भी ईरान के साथ डील करेगा, उसे प्रतिबंधों के लिए तैयार रहना चाहिए.
भारत के लिए क्यों अहम है चाबहार डील?
भारत को अब 10 साल तक चाबहार पोर्ट के संचालन का अधिकार मिला है. यह अनुबंध 10 साल बाद भी बढ़ जाएगा. ओमान की खाड़ी के पास सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह को भारत विककसित करेगा. अब भविष्य में भारत पाकिस्तान को बायपास करके मध्य एशिया तक पहुंच जाएगा. चीन जो ग्वादर में बंदरगाह तैयार कर रहा है, उसके विकल्प में ये भारत का सियासी पैंतरा है.
चाबहार पोर्ट और ग्वादर के बीच समुद्री दूरी महज 100 किलोमीटर रहेगी. योजना है कि इसे इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) से जोड़ दिया जाएगा. यह कॉरिडोर अगर बन गया तो भारत ईरान, अजरबैजान के रास्ते रूस के पीटर्सबर्ग तक एक हो जाएगा.
भारत का यह कदम किसी को रास नहीं आया है. इस पोर्ट को IPGL तैयार करेगी. इसके लिए 120 मिलियन डॉलर का निवेश किया जाएगा. चीन को मध्य एशिया में बढ़ती भारत की ताकत रास नहीं आई है, इसलिए उसकी तरफ से भी नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं.