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India Daily

चीन में तबाही का कारण बन सकता है ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाना, 7.1 तीव्रता के भूकंप ने दिए संकेत

भूकंप के स्थान की जांच करने पर पता चलता है कि इसका मुख्य झटका ल्हासा टेरन में उत्पन्न हो सकता था. 'टेरन' भूगर्भीय संरचना को कहते हैं जो पृथ्वी की क्रस्ट का एक विशेष खंड होता है. ल्हासा टेरन चीन के उस क्षेत्र को शामिल करता है, जहां दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत डेम बनाने की योजना है, जिसे हाल ही में चीनी सरकार ने मंजूरी दी थी.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Why the location of the 7.1 magnitude earthquake in China important

हाल ही में चीन और नेपाल में 7.1 तीव्रता का भूकंप आया, जिसका केंद्र तिब्बत में स्थित था. भूकंप दोनों देशों में व्यापक नुकसान और मौत का कारण बना. चीनी मीडिया के अनुसार, 7 बजे तक 95 लोग मारे गए, 130 घायल हुए और सैकड़ों घर नष्ट हो गए. नेपाल और अन्य स्थानों पर नुकसान के बारे में अभी भी अपडेट्स प्राप्त हो रहे हैं. इस भूकंप के झटके काठमांडू, थिंपू और कोलकाता तक महसूस किए गए थे.

भूकंप का स्थान

भूकंप का केंद्र तिब्बत के शिगात्से क्षेत्र के टिंगरी काउंटी में था, जो समुद्र तल से 4-5 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित है. इस क्षेत्र में लगभग आठ लाख लोग रहते हैं, जबकि टिंगरी काउंटी की जनसंख्या करीब 7,000 है. इस क्षेत्र का आधिकारिक नाम 'पंचेन लामा' के धार्मिक केंद्र के रूप में भी महत्वपूर्ण है. इस भूकंप ने तिब्बत बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक महत्व वाले इस क्षेत्र को भी प्रभावित किया. दलाई लामा ने भूकंप पीड़ितों के लिए प्रार्थना की और घायल व्यक्तियों की शीघ्र स्वस्थता की कामना की.

टिंगरी काउंटी का ऐतिहासिक महत्व होने के साथ ही यह माउंट एवरेस्ट के पास एक प्रवेश द्वार भी है, जो पर्यटकों के लिए एक प्रमुख स्थल है. हालांकि, सर्दियों में पर्यटकों की संख्या कम होती है, और स्थानीय अधिकारियों ने भूकंप के बाद इस क्षेत्र में पर्यटकों के प्रवेश को बंद कर दिया है.

भूकंप के स्थान का महत्व
भूकंप के स्थान की जांच करने पर पता चलता है कि इसका मुख्य झटका ल्हासा टेरन में उत्पन्न हो सकता था. 'टेरन' भूगर्भीय संरचना को कहते हैं जो पृथ्वी की क्रस्ट का एक विशेष खंड होता है. ल्हासा टेरन चीन के उस क्षेत्र को शामिल करता है, जहां दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत डेम बनाने की योजना है, जिसे हाल ही में चीनी सरकार ने मंजूरी दी थी. यह परियोजना यारलुंग त्संगपो नदी पर आधारित है, जो असम और अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी का रूप लेती है.

इस जलविद्युत परियोजना ने भारत में चिंता का कारण बना है, क्योंकि इससे ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह पर असर पड़ सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस डेम के निर्माण से नदी की स्थिरता पर असर हो सकता है, जो बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका और पानी की आपूर्ति पर निर्भर करती है.

हिमालयी क्षेत्र का जलवायु और भूगर्भीय महत्व
हिमालय क्षेत्र को पृथ्वी का "तीसरा ध्रुव" कहा जाता है, क्योंकि यहां पर ढेर सारी नदियां, ग्लेशियर और झीलें हैं, जिनका जल चक्र लाखों लोगों के जीवन पर असर डालता है. भूकंपों के कारण नदियों का मार्ग बदल सकता है, और ग्लेशियर व झीलों के अस्थिर होने से बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है. इसके अलावा, इस भूकंप के कारण हुए भूगर्भीय परिवर्तन से उस क्षेत्र में बर्फबारी और जल स्रोतों पर असर पड़ सकता है, जिससे लोगों की पानी की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है.

भूकंप का कारण और इतिहास
हिमालय पर्वतों का निर्माण लगभग 50 मिलियन साल पहले हुआ, जब भारतीय प्लेट ने यूरेशियन प्लेट से टकराई और इस टकराव के कारण चट्टानों का फोल्ड होना शुरू हुआ. आज भी भारतीय प्लेट हर साल लगभग 60 मिमी की दर से यूरोएशियाई प्लेट में धक्का देती है, जिससे भूगर्भीय तनाव बना रहता है. यह तनाव भूकंपों के रूप में अचानक बाहर निकलता है, जो बड़े भूकंपों के रूप में महसूस होते हैं. 1950 के बाद से ल्हासा टेरन में 21 से ज्यादा भूकंपों का रिकॉर्ड पाया गया है, जिनमें से सबसे शक्तिशाली भूकंप 2017 में आया था, जिसका माप 6.9 था. इस क्षेत्र में भूगर्भीय तनाव और प्लेटों के टकराने की प्रक्रिया के कारण भविष्य में और भी शक्तिशाली भूकंपों की संभावना जताई जाती है.