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क्या है UK Blood Scandal? जिसके लिए ब्रिटेन के PM ऋषि सुनक ने मांगी माफी

UK Blood Scandal: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने 'यूके ब्लड स्कैंडल' को लेकर माफी मांगी है. उन्होंने कहा कि मुझे वास्तव में खेद है. सुनक ने हाउस ऑफ कॉमन्स को बताया कि लंबे समय से प्रतीक्षित रिपोर्ट के निष्कर्षों को ब्रिटेन के लिए शर्मनाक करार दिया. आइए, जानते हैं कि आखिर यूके ब्लड स्कैंडल क्या है और ऋषि सुनक ने इसके लिए माफी क्यों मांगी?

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Edited By: India Daily Live
what is uk blood scandal why UK PM Rishi Sunak Apologises More than 30000 infected

UK Blood Scandal: मुझे सचमुच खेद है... ये कहते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने 'Infected Blood Scam' को छुपाने के लिए माफी मांगी. मामला करीब 3 से 4 दशक पुराना है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने सोमवार को दशकों पुराने घोटाले में इन्फेक्टेड ब्लड से संक्रमित हजारों लोगों से माफ़ी मांगी, जिसके निष्कर्ष के अनुसार खतरनाक रिपोर्ट को छुपाया गया था और इससे काफी हद तक बचा जा सकता था.

दरअसल, हाल ही में इन्फेक्टेड ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट सामने आई है. निष्कर्षों में कहा गया है कि 1970 और 1990 के दशक के बीच ब्रिटेन में इन्फेक्टेड ब्लड डोनेट किए जाने के बाद 30,000 से अधिक लोग एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसे वायरस से संक्रमित हो गए थे. पीड़ितों में वे लोग शामिल थे जिन्हें दुर्घटनाओं और सर्जरी के लिए ब्लड की जरूरत थी. इनमें ऐसे भी जरूरतमंद लोग थे, जो हीमोफिलिया जैसे ब्लड डिजीज से पीड़ित थे, जिनका इलाज दान किए गए ब्लड प्लाज्मा से किया गया था. 

ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के 8 दशक के इतिहास में इस घटना को सबसे बड़ी आपदा बताया गया. घटना में लगभग 3,000 लोग मारे गए. मामले को लेकर ऋषि सुनक ने कहा कि समय-समय पर सत्ता और विश्वास के पदों पर बैठे लोगों के पास इंफेक्शन को रोकने का मौका था, लेकिन वे ऐसा करने में सफल नहीं हो पाए. सुनक ने कहा कि पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े, चुकाई जाएगी. अनुमान के मुताबिक, मुआवजे का आंकड़ा आज जारी की जाएगी. मुआवजे के आंकड़े के 10 बिलियन पाउंड (12 बिलियन डॉलर) से ऊपर होने की उम्मीद है.

2500 पेज की है रिपोर्ट

2500 से अधिक पेज की रिपोर्ट में कई बातें कही गई हैं. ये भी कहा गया है कि ब्लीडिंग डिसॉर्डर से जूझ रहे बच्चों को रिसर्च के ऑब्जेक्ट के रूप में देखा गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक स्कूल में 1970 और 1987 के बीच हीमोफीलिया से पीड़ित 122 स्टूडेंट्स को इन्फेक्टेड ब्लड दिए गए. इनमें से अब केवल 30 स्टूडेंट ही जिंदा बचे हैं. रिपोर्ट को लिखने वाले जज ब्रायन लैंगस्टाफ ने निष्कर्ष निकाला कि इसे काफी हद तक लेकिन पूरी तरह से टाला नहीं जा सकता था.

जज ब्रायन लैंगस्टाफ की टीम ने पाया कि 1980 के दशक की शुरुआत में ये स्पष्ट हो जाने के बावजूद कि एड्स संक्रमित ब्लड से फैल सकता है, उस वक्त की सरकारें और हेल्थ प्रोफेशनल्स ऐसे जोखिमों को कम करने में विफल रहे. ब्लड डोनेट करने वालों की जांच पड़ताल नहीं की गई और अमेरिका समेत अन्य देशों से मंगवाए गए ब्लड की भी जांच नहीं की गई. दावा किया गया कि अमेरिका समेत अन्य जगहों से लिया गया ब्लड ऐसे लोगों ने दिया था, जो नियमित रूप से नशीली दवाओं का यूज करते थे. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब जरूरत नहीं थी तब भी बहुत अधिक ब्लड मरीजों को चढ़ाया गया. यहां तक ​​कि इस घोटाले को छुपाने की भी कोशिश की गई और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने 1993 में डॉक्यूमेंट्स को नष्ट कर दिया. 

मरने वाले लोगों को जिंदा रहने तक कई परेशानियों का करना पड़ा सामना

रिपोर्ट में कहा गया है कि मरने वाले 3000 मरीजों में से जब तक वे जिंदा था, उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. लैंगस्टाफ ने कहा कि जो कुछ हुआ उसका पैमाना भयावह है. बार-बार आरोपों से इनकार करने और झूठे आश्वासनों से लोगों की पीड़ा बढ़ गई है. लैंगस्टाफ ने संवाददाताओं से कहा ये कोई आपदा या कोई दुर्घटना नहीं थी. लोगों ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए डॉक्टरों और सरकार पर भरोसा किया था और उस भरोसे के साथ धोखा हुआ है.