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India Daily

धुर दक्षिणपंथी जमाएंगे यूरोप की सबसे बड़ी संसद पर कब्जा, जानें जनता ने किन मुद्दों पर किया वोट

European Union Election: यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनावों में दक्षिणपंथी पार्टियों को बड़ी सफलता हासिल हुई है. यूरोप के तमाम देशों में राइट विंग पार्टी और फार राइट विंग पार्टी की ओर लोगों का रुझान काफी तेजी से बढ़ा है.

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Edited By: Shubhank Agnihotri
EU Election 2024
Courtesy: Social Media

European Union Election: रविवार को यूरोपीय संसद के चुनाव के बाद एक बात निश्चित हो गई है कि इसके चुनावी नतीजों से हर किसी को जश्न मनाने का मौका नहीं मिलेगा. यूरोप की सबसे बड़ी संसद में बैठने के लिए हुए चुनावों में धुर दक्षिणपंथी पार्टियों ने बड़ी सफलता हासिल की है. इससे आहत होकर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां ने देश के अंदर शीघ्र ही नेशनल असेंबली इलेक्शन कराने का भी ऐलान कर दिया. 720 सीटों वाली यूरोपीय संघ की संसद में सेंटर, लिबरल और सोशलिस्ट पार्टी सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टियां बनकर उभरी हैं.

यूरोपीय संसद के इन चुनावों में जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कॉल्ज की पार्टी सोशल डेमोक्रेट्स और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां के नेतृत्व वाली रेनेंसा को इस चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. मैक्रां फ्रांस की कट्टर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन की जीत से बेहद घबरा गए. इस घबराहट की वजह से उन्होंने फ्रांसीसी संसद को भंग कर दिया और नए चुनावों की समय से पहले घोषणा कर दी. मरीन की पार्टी नेशनल रैली ने इस चुनाव में बड़ी बढ़त हासिल की है. 

कहां शिफ्ट हो गया यूरोप का वोटर? 

यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की पार्टी EPP इस चुनाव में फिर से सबसे बड़ी पार्टी रही है. यूरोपीय संघ का दोबारा अध्यक्ष बनने के लिए उन्हें संसद में केवल 361 वोटों की आवश्यकता है. लेयेन को फिर से यूरोपीय संसद का अध्यक्ष बनने के लिए लिबरल, सोशलिस्ट पार्टियों का भी समर्थन हासिल करना होगा. इस चुनाव में यूरोपीय जनता कई मुद्दों को लेकर पुरानी पार्टियों के रवैये से नाराज थी. यूरोप में वामपंथियों से छिटककर बड़ा वोटर दक्षिणपंथियों की ओर गया है. आइए जानते हैं कि यूरोपीय जनता ने किन अहम मसलों पर वोट किया है.

किसे मिला सबसे ज्यादा फायदा? 

समाचार एजेंसी रॉयटर्स द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक, यूरोपीय संघ के चुनाव में मतदाताओं के सामने कई चिंताएं थीं. यूरोपीय लोग अर्थव्यवस्था, प्रवासन, और रूस यूक्रेन जंग को लेकर काफी चिंतित थे. मतदाताओं ने इन मुद्दों के आधार पर उन्हीं पार्टियों को वोट करने का निश्चय किया जिनके एजेंडे में ये मसले शामिल थे.दक्षिणपंथी पार्टियां यहीं मैदान मार गईं. दक्षिणपंथी पार्टियों ने प्रवासन पर अंकुश लगाने, नागरिकों की आर्थिक समस्याओं और हरित समाधान की बात अपने इलेक्शन कैंपेन के दौरान बार-बार दोहराई थी.  

यूरोपीय जनता क्यों है परेशान

पोलिंग प्लेटफॉर्म फोकल डाटा द्वारा यूरोपीय मतदाताओं से सवाल किया गया कि उनके वोट को सबसे ज्यादा प्रभाव किस बात पर पड़ता है? अधिकांश लोगों का जवाब था वे अर्थव्यवस्था में सुधार चाहते हैं और महंगाई में कमी देखना चाहते हैं. यूरोपीय संघ के पांच सबसे बड़े देशों फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, पोलैंड और स्वीडन में किए गए सर्वे में सबसे बड़ी चिंता प्रवासियों और शरण चाहने वाले लोगों की थी.  इसके अलावा यूरोपीय लोग अंतरराष्ट्रीय संघर्ष और जंग से भी काफी ज्यादा परेशान हैं. यह सर्वे 6 जून को हुए इलेक्शन से पहले का है. 

ग्रीन पार्टी के वर्चस्व का पहुंची ठेस 

सर्वे में यूरोपीय लोगों ने क्लाइमेट चेंज पर किसी एक्शन को पांचवें स्थान पर रखा. वहीं आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयास को चौथा स्थान दिया. जलवायु परिवर्तन पर विशेष काम के लिए जाने जानी वाली ग्रीन पार्टी को इस चुनाव में मुंह की खानी पड़ी है. अब तक आए नतीजों में पता चला है कि वे इस बार कम से कम 18 सीटों का नुकसान उठाएंगे. यूरोपीय संसद में अभी उनके पास कुल 52 सीटें हैं.