13 फरवरी को मिले जख्म को कभी नहीं भूलेगा इराक, अमेरिकी ने आसमान से बरसाए थे बम
इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की आलोचना हुई. मानवाधिकार संगठनों और कई देशों ने इसे युद्ध के नैतिक नियमों का उल्लंघन करार दिया. हालांकि, अमेरिका ने इसे सैन्य कार्रवाई बताते हुए अपने कदम को सही ठहराने की कोशिश की.
इतिहास इस बात का गवाह है कि युद्धों ने हमेशा बर्बादी ही लाई है. चाहे कोई भी विजयी रहे, उसकी जीत भारी कीमत पर ही मिलती है. युद्ध के भी अपने नियम होते हैं, जिनका पालन किया जाना चाहिए, खासकर यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि हमले केवल सैन्य ठिकानों तक सीमित रहें और आम नागरिक इससे प्रभावित न हों.
हालांकि, कई बार इन नियमों का उल्लंघन होता रहा है और 13 फरवरी 1991 को इराक में हुआ हमला इसका एक दुखद उदाहरण है.
अमेरिकी हमले में सैकड़ों नागरिक हताहत
1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान, 13 फरवरी को अमेरिका के बमवर्षक विमानों ने इराक की राजधानी बगदाद पर बमबारी की. अमेरिका ने दावा किया कि उसका निशाना एक सैन्य बंकर था, लेकिन इराक ने इस दावे को नकारते हुए आरोप लगाया कि हमला सीधे रिहायशी इलाके पर किया गया. इस बमबारी में सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल थे.
दुनिया भर में विरोध और निंदा
इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की आलोचना हुई. मानवाधिकार संगठनों और कई देशों ने इसे युद्ध के नैतिक नियमों का उल्लंघन करार दिया. हालांकि, अमेरिका ने इसे सैन्य कार्रवाई बताते हुए अपने कदम को सही ठहराने की कोशिश की.
युद्ध के दुष्प्रभावों की भयावह याद
यह हमला आज भी युद्ध की त्रासदियों की भयावहता को दर्शाता है। यह केवल इराक-अमेरिका संघर्ष का हिस्सा नहीं था, बल्कि इसने वैश्विक स्तर पर यह प्रश्न उठाया कि क्या युद्ध के दौरान निर्दोष नागरिकों की रक्षा के लिए पर्याप्त प्रयास किए जाते हैं?
दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता
ईराक, जिसे प्राचीन मेसोपोटामिया के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक का केंद्र रहा है. टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियों के बीच स्थित यह क्षेत्र सुमेर, बाबुल और असीरियन सभ्यताओं का गवाह रहा है. ऐतिहासिक रूप से, ईराक ने विज्ञान, गणित और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
आधुनिक इतिहास और राजनीतिक परिदृश्य
20वीं शताब्दी में ईराक ने कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे. 2003 में अमेरिकी आक्रमण और सद्दाम हुसैन की सत्ता से बेदखली के बाद देश में अस्थिरता का दौर शुरू हुआ. इसके बाद इस्लामिक स्टेट (ISIS) का उदय और आतंकवादी गतिविधियों ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावित किया. हालांकि, हाल के वर्षों में ईराक ने पुनर्निर्माण और स्थिरता की ओर कदम बढ़ाए हैं.