तुर्की के झटके से कैसे उबरेगा EU? एर्दोगान के प्लान से NATO हैरान
Turkey Suspends Key Treaty With EU: तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने कोल्ड वॉर के दौरान साइन की गई एक महत्वपूर्ण डील से खुद को अलग कर लिया है.
Turkey Suspends Key Treaty With EU: तुर्की ने रूस और इजरायल जंग के बीच यूरोपीय यूनियन को बीच भंवर में छोड़ दिया है. अंकारा ने एक अहम समझौते से खुद को अलग कर लिया है. तुर्की ने एक प्रमुख यूरोपीय हथियार नियंत्रण संधि (CFE) में अपनी भागीदारी को निलंबित कर दिया है. इस संधि का उद्देश्य कोल्ड वॉर की समाप्ति के बाद महाद्वीप पर नए संघर्षों को पैदा होने से रोकना था.
राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन द्वारा साइन की गई डिक्री को शुक्रवार को प्रसारित किया गया था. इस डिक्री के तहत तुर्की 8 अप्रैल से यूरोप में पारंपरिक सशस्त्र बलों पर संधि (CFE) पर काम करना बंद कर देगा. तुर्की के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओन्कू केसेली ने कहा कि नवंबर में रूस के समझौते से हटने के बाद इस संधि के सार्थक कार्यान्वयन को जारी रखने की कोई संभावना नहीं नजर आ रही थी इसलिए हमने यह फैसला किया है.
मूल सीएफई संधि साल 1990 में नाटो और सोवियत संघ द्वारा साइन की गई थी. इस संधि का मुख्य लक्ष्य अटलांटिक तट और यूराल पर्वत के बीच दोनों ओर से तैनात किए जाने वाले टैंकों, बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों, तोपखाने और विमानों की संख्या को सीमित करना था. सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो देशों के विस्तार को देखते हुए इस समझौते में संशोधन किया गया.
NATO देशों ने इस संधि के संशोधित संस्करण को मान्यता देने से इंकार कर दिया जिस कारण साल 2007 में रूस ने इस संधि को निलंबित कर दिया. रूस ने इसके पीछे अमेरिका द्वारा यूरोप में एंटी एयर मिसाइलों की तैनाती योजना का भी हवाला दिया था.
रूस ने पिछले साल नवंबर 2023 में CFE से पूरी तरह से अलग होने का फैसला किया था. मॉस्को ने संधि को पश्चिम की शुत्रुतापूर्ण नीतियों और यूक्रेन को सैन्य समर्थन देने के कारण डील को निरर्थक करार दिया. रूस की वापसी के बाद अमेरिका ने भी इस समझौते से खुद की भागीदारी निलंबित कर दी थी था.
सीएफई एकमात्र हथियार नियंत्रण संधि नहीं है जो रूस और नाटो के बीच मौजूदा तनाव के कारण समाप्त हो गई है. इससे पहले साल 2019 में, अमेरिका 1987 की आईएनएफ संधि से भी पीछे हट गया था. इस संधि के प्रावधानों के तहत अमेरिकी और रूसी जमीन से लॉन्च की जाने वाली मध्यम दूरी की परमाणु मिसाइलों की संख्या को सीमित करने का वादा किया गया था. रूस ने पिछले साल इस समझौते से दूरी बना ली थी. दोनों देशों ने संधि टूटने के लिए एक-दूसरे पर सीक्रेट मिशन के जरिए इसका उल्लंघन करने का आरोप लगाया था.