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Syria Civil War: सुन्नी मुस्लिमों के देश सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे के बाद बढ़ेगी भारत की टेंशन! कश्मीर पर असद क्यों करते थे सपोर्ट

सीरिया में असद शासन का पतन न केवल भारत और सीरिया के द्विपक्षीय संबंधों पर असर डालेगा, बल्कि यह भारत की मध्य पूर्व में अपनी भूमिका और रणनीति को फिर से परिभाषित कर सकता है. भारत के लिए यह समय है कि वह सीरिया के भविष्य के शासन के साथ अपने संबंधों को समझदारी से फिर से आकार दे.

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Edited By: Mayank Tiwari
सीरिया में असद शासन का पतन
Courtesy: X@TRTWorldNow

Syria Civil War: लगभग 4,000 किलोमीटर दूर, दिल्ली और दमिश्क दो अलग-अलग दुनिया जैसी लग सकती हैं. मगर, सीरिया में बशर अल-असद के शासन का पतन, जो भारत का एक पुराना मित्र है, उसने केवल मध्य पूर्व में बल्कि भारत के लिए भी अप्रत्याशित तरीके से असर डाल सकता है. भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक और सभ्यता आधारित रिश्ते लंबे समय से सौहार्दपूर्ण रहे हैं, लेकिन अब यह स्थिति बदल सकती है.

भारत के लिए सीरिया में असद शासन का पतन सिर्फ एक क्षेत्रीय घटना नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीतिक बदलाव की शुरुआत हो सकती है, जिसका असर भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण पर भी पड़ सकता है. अब सवाल यह है कि सीरिया का कश्मीर पर रुख क्या रहेगा और भारत का गोलान हाइट्स पर क्या नजरिया होगा? इन पहलुओं को नए सिरे से परखा जा सकता है.

जानिए सीरिया के विद्रोह पर क्या बोला भारतीय विदेश मंत्रालय?

इस बीच, भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने सोमवार (9 दिसंबर) को कहा कि वह सीरिया की स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए है और सभी पक्षों से आग्रह किया है कि वे सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की दिशा में काम करें. ऐसे में हम एक शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई-नेतृत्व वाले राजनीतिक प्रक्रिया का समर्थन करते हैं, जो सीरिया समाज के सभी हिस्सों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करती हो.

क्या असद सीरिया में भारत के मित्र थे?

बशर अल-असद के नेतृत्व में सीरिया ने भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे. 2011 में शुरू हुए सीरिया के गृहयुद्ध के बावजूद भारत ने असद शासन के साथ संवाद बनाए रखा, विशेष रूप से तब जब यूएई, बहरीन और सऊदी अरब जैसे प्रमुख क्षेत्रीय देशों ने सीरिया के साथ अपने संबंध फिर से स्थापित किए.

भारत और सीरिया के नेताओं के बीच द्विपक्षीय यात्राओं की शुरुआत बहुत पहले हो गई थी, जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1957 में सीरिया का दौरा किया था. उसी वर्ष, सीरिया के राष्ट्रपति शुक्री अल-क्वातली ने दिल्ली यात्रा की थी. सीरिया, नेहरू द्वारा प्रचारित गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का एक महत्वपूर्ण सदस्य रहा है. अब, असद के पतन के साथ, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या अगले शासन में भारत और सीरिया के बीच यह रिश्ता बरकरार रहता है.

कश्मीर पर सीरिया का रुख क्या था?

सीरिया, जो एक मुस्लिम बहुल देश है, उसने हमेशा भारत के कश्मीर मुद्दे पर उसके रुख का समर्थन किया है. यह रुख कई अन्य ओआईसी देशों से अलग था, जो अक्सर पाकिस्तान के पक्ष में रहते हुए भारत विरोधी बयान देते हैं. असद शासन के तहत सीरिया ने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि कश्मीर विवाद भारत का आंतरिक मामला है और भारत को इसे अपने तरीके से सुलझाने का अधिकार है.  2016 में, सीरिया ने फिर से यह स्पष्ट किया कि भारत को कश्मीर मुद्दे को " बिना किसी बाहरी मदद के किसी भी तरीके से" हल करने का अधिकार है.

यदि सीरिया में नया शासन, जो गैर-राज्य अभिनेताओं से बना हो सकता है, अपनी स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं करता, तो कश्मीर पर उसका रुख वैसा ही रहने की संभावना है.