वैज्ञानिकों ने हाल ही में पृथ्वी से 1,65,000 किलोमीटर दूर एक रहस्यमय आवाज का पता लगाया है, जो सुनने में पक्षियों के चहचहाने जैसी प्रतीत होती है. इसे "कोरस वेव्स" या "व्हिस्लर-मोड कोरस वेव्स" कहा जाता है, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र (मैग्नेटोस्फीयर) में होने वाले कंपन से उत्पन्न होती हैं. इन लहरों को पहली बार वर्ल्ड वॉर के दौरान रेडियो ऑपरेटर्स ने सुना था जब वे दुश्मन के सिग्नल पकड़ने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि, तब यह माना जाता था कि ये वेव्स पृथ्वी के नजदीक होती हैं, लेकिन हालिया शोध से पता चला है कि ये लहरें पृथ्वी से कहीं ज्यादा दूर, लगभग 1,65,000 किलोमीटर की दूरी तक फैल चुकी हैं, जो कि पहले के अनुमानों से तीन गुना ज्यादा है.
कोरस वेव्स का निर्माण तब होता है जब सूर्य से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन्स पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में घूमते हैं. सामान्यत: ये इलेक्ट्रॉन्स एक स्पाइरल मूवमेंट में रहते हैं, लेकिन जब चुंबकीय क्षेत्र में कोई गड़बड़ी होती है तो ये तेज़ रफ्तार से इलेक्ट्रॉन्स को लेकर कोरस वेव्स उत्पन्न करते हैं. ये वेव्स विद्युत कणों को इतनी तेज़ रफ्तार से गतिशील कर सकती हैं कि यह एस्ट्रोनॉट्स और स्पेसक्राफ्ट के लिए खतरे का कारण बन सकती हैं.
इन जगहों पर मिल चुकी हैं ऐसी लहर
अब तक, इन लहरों का पता पृथ्वी, बुध, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून जैसे ग्रहों के चारों ओर भी पाया जा चुका है, जहां शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र मौजूद हैं. हालांकि, मंगल और शुक्र जैसे ग्रहों में जहां चुंबकीय क्षेत्र नहीं है, वहां भी इन वेव्स का पता चला है. इससे यह स्पष्ट होता है कि ये वेव्स ग्रहों के चुंबकीय क्षेत्रों की अस्थिरता के कारण उत्पन्न होती हैं, न कि केवल चुंबकीय क्षेत्र के कर्व्स से.
माना जा रहा अहम खोज
नासा के मैग्नेटोस्फेरिक मल्टीस्केल (MMS) उपग्रहों ने इन लहरों को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के सपाट हिस्से में पाया, जो एक नई और अहम खोज है. यह तथ्य इस बात की ओर इशारा करता है कि कोरस वेव्स केवल चुंबकीय क्षेत्र के कर्व्स से नहीं उत्पन्न होतीं, जैसा कि पहले माना जाता था, बल्कि इन्हें सपाट हिस्सों में भी देखा जा सकता है.
इन लहरों से एस्ट्रोनॉट्स को खतरा
इस खोज ने वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद की है कि अंतरिक्ष में यह नई लहरें इलेक्ट्रॉन्स को इतनी तेज़ गति से चलाने में सक्षम हैं कि वे किसी भी स्पेसक्राफ्ट के उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकती हैं और एस्ट्रोनॉट्स की सेहत पर भी बुरा असर डाल सकती हैं. यह अंतरिक्ष यात्रा के लिए एक नया खतरा उत्पन्न कर सकता है, जिसे भविष्य में समझने और नियंत्रित करने की आवश्यकता होगी.