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भारतीय राजाओं के नाम पर स्कूल और पार्क, पढ़ाई जाती है संस्कृत, जहां PM गए उस पोलैंड के बारे में जानिए अनोखी बातें

Poland India Relations: भारत और पोलैंड के रिश्ते सैकड़ों साल पुराने हैं. पीएम मोदी अब पोलैंड के दौरे पर हैं और महाराजाओं से पोलैंड के कनेक्शन को याद किया जा रहा है. इन दोनों देशों के संबंध लंबे समय से चले आ रहे हैं और भारत के महाराजाओं को वहां आज भी सम्मान की नजर से देखा जाता है.

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Edited By: India Daily Live
Maharaja With People of Poland
Courtesy: Social Media

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड की यात्रा पर हैं. यूरोप के एक छोटे से देश का भारत से जबरदस्त कनेक्शन है. इसे खुद पीएम मोदी भी बार-बार याद दिला रहे हैं. 45 साल बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने पोलैंड का दिया है. क्या आप जानते हैं कि पोलैंड का कनेक्शन भारत के राजाओं से, भारत के लोगों से और द्वितीय विश्व युद्ध से भी है. वहां सैकड़ों साल से संस्कृत पढ़ाई जा रही है और आज भी दोनों देशों के संबंध काफी हद तक बेहतर बने हुए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने पोलैंड पहुंचते ही भारतीय राजाओं के स्मारक पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की.

गुजरात का जामनगर तब नवानगर के नाम से जाना जाता था. इसी नवानगर ने पोलैंड के लोगों की ऐसी मदद की जिसे आज तक सम्मान की नजर से देखा जाता है और महाराजा को उनके अच्छे काम के लिए याद किया जाता है. बता दें कि पोलैंड की जगियेलोनियन यूनिवर्सिटी में 1860-61 से ही संस्कृत की पढ़ाई हो रही है. इसके अलावा, कारोबार के मामले में भी भारत और पोलैंड के रिश्ते काफी मजबूत हैं. हर साल में इसमें तगड़ी बढ़ोतरी भी हो रही है.

द्वितीय विश्व युद्ध से क्या है कनेक्शन?

साल 1939 से 1945 के बीच लड़े गए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के जवान भी ब्रिटिश सेना की ओर से युद्ध में शामिल हुए थे. इसी युद्ध के दौरान जामनगर के महाराजा और कोल्हापुर के छत्रपति ने पोलैंड के हजारों शरणार्थियों क शरण दी थी. यही वजह है कि आज भी वहां उन्हें बेहद सम्मान के साथ देखा जाता है और उन्हें याद किया जाता है. बताया जाता है कि नवानगर के महाराज जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जडेजा ने साल 1941 में पोलैंड के हजारों बच्चों को बचाया था. कोल्हापुर के छत्रपति ने भी इन बच्चों के लिए एक कैंप लगाया था.

दरअसल, जब सोवियत संघ और जर्मनी ने 1939 में पोलैंड पर हमला किया और इस देश को बांट दिया तो जनरल सिकोरस्की की अगुवाई वाली सरकार लंदन में निर्वासन में चली गई और वहीं से काम कर लिया. बच्चे, महिलाओं और विकलागों पर भी खूब अत्याचार हुए. उस समय जनरल सिकोरस्की ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से मदद मांगी. चर्चिल ने भारत से मदद मांगी. तब महाराजा जाम साहब के राज्य में एक शरणार्थी कैंप लगाया गया. इन बच्चों के लिए हॉस्टल, खाना, कपड़ा, मेडिकल सर्विस और शिक्षा का इंतजाम किया गया. इसी के चलते पोलैंड में उन्हें 'गुड महाराजा' के नाम से जाना गया. वहीं पर एक 'स्क्वायर ऑफ द गुड महाराजा' भी है.

इतना ही नहीं, वहां पर उन्हीं के नाम से स्कूल भी है. 1989 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद पोलैंड ने महाराजा के नाम पर एक चौक का नाम रखा. हालांकि, तब तक उनका निधन हो चुका था. 2012 में वॉरसॉ के एक पार्क का नाम महाराजा दिग्विजय सिंह के नाम पर रखा गया.