Israel Hamas War: इजरायल और हमास के बीच भीषण लडाई जारी है. इस लड़ाई में इजरायली कार्रवाई में 23 हजार फिलिस्तीनी लोगों की मौत हो चुकी है. इजरायल ने सात अक्टूबर के हमले के बाद गाजा में व्यापक तबाही मचाई है. इसका असर अब लाल सागर तक देखने को मिल रहा है. हूती विद्रोही लगातार लाल सागर से गुजरने वाले व्यापारिक जहाजों को निशाना बना रहे हैं.
जंग शुरू होने से पहले अरब दुनिया के सबसे बड़े नेता सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंध सामान्य हो रहे थे लेकिन हमास के साथ युद्ध ने इस पर विराम लगा दिया. हाल ही में सऊदी अरब ने फिर से संकेत दिया है कि वह इजरायल के साथ अपने संबंधों को शुरू कर सकता है और उसे मान्यता दे सकता है. हालांकि इससे पहले उसने एक शर्त रखी है.
बीते दिनों अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पिछले हफ्ते खाड़ी देशों की यात्रा की थी. इस दौरान उन्होंने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से भी मुलाकात की थी.
ब्लिंकन ने इस यात्रा के बाद कहा कि सऊदी और इजरायल के बीच संबंधों की सामान्य बहाली को लेकर बातचीत चल रही है. ब्लिंकन ने इस अवसर पर कहा कि हमारी खाड़ी के लगभग हर देश से बातचीत हुई है. वे अपने रिश्तों को सामान्य बनाने को लेकर दिलचस्पी रखते हैं. यह क्षेत्र की शांति के लिए आवश्यक है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब के ब्रिटेन में राजदूत प्रिंस खालिद बिन वंदर ने कहा कि हां बिल्कुल रिश्ते सामान्य बनाने को लेकर हमारी दिलचस्पी है.
यह दिलचस्पी हमारी साल 1982 से है. मध्य-पूर्व मामलों के जानकार बताते हैं कि गाजा युद्ध के बदले सऊदी अरब इजरायल से रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए ज्यादा कीमत वसूल करेगा.
हमास के साथ लड़ाई के बाद सऊदी अरब इजरायल और उसके पारंपरिक रक्षा साझेदार अमेरिका से कहीं ज्यादा रियायत की उम्मीद करेगा. स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी सरकार इजरायल के साथ संबंधों को फिर से शुरू करने को तैयार है लेकिन इससे पहले वह फिलिस्तीनी लोगों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की गारंटी इजरायल और अमेरिका से चाहती है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ठोस कदमों में गाजा की नाकाबंदी हटाना, फिलिस्तीनी प्राधिकरण को अधिकार सौंपना और पश्चिम के कुछ इलाकों से इजरायली सेना का हटाना भी शामिल है.
जानकार कहते हैं कि यह सिर्फ वादे नहीं बल्कि ठोस हकीकत होनी चाहिए. इजरायल अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों की बहाली के बाद अपने पुराने वादों को तोड़ चुका है. इसलिए सऊदी अरब इस मसले पर ठोस कार्रवाई सुनिश्चित करना चाहता है.