Pope Francis: पोप फ्रांसिस अब इस दुनिया में नहीं रहें. 88 वर्ष की उम्र में उन्होंने सोमवार की सुबह इस पृथ्वी पर अंतिम सांस ली. उनके निधन के बाद विश्व भर के बड़े नेता उनको क्षद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. उनका असली नाम जोर्ज मारियो था. वह एक ऐसे धर्मगुरु थे जिन्होंने अपने कार्यकाल में चर्च को एक नई दिशा दी. उनका जीवन सादगी, करुणा और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के लिए समर्पण का प्रतीक रहा. वे ना केवल अपनी विनम्रता के लिए याद किए जाएंगे, बल्कि अपने साहसिक और कभी-कभी विवादास्पद फैसलों के लिए भी जाने जाएंगे. पोप फ्रांसिस ने अपने कार्यकाल में LGBTQ+ समुदाय को लेकर चर्च की पारंपरिक सोच में बदलाव की पहल की. 2013 में, जब उनसे समलैंगिक पादरियों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा – “मैं कौन होता हूं न्याय करने वाला?” यह बयान इतिहास में चर्च के रवैये में एक बड़ी बदलाव की शुरुआत माना गया.
समलैंगिकता कोई अपराध नहीं
समय के साथ पोप फ्रांसिस LGBTQ+ लोगों के हक में और भी स्पष्ट बातें करते रहे. उन्होंने यह साफ किया कि समलैंगिक होना कोई अपराध नहीं है. बल्कि यह मानव स्वभाव का एक हिस्सा है. उनके इस बयान ने दुनिया भर के लाखों LGBTQ+ लोगों को हौसला और सम्मान दिया.
समलैंगिक जोड़ियों के लिए आशीर्वाद की मंजूरी
पोप फ्रांसिस ने यह भी अनुमति दी कि चर्च समलैंगिक जोड़ियों को आशीर्वाद दे सकता है, बशर्ते यह विवाह संस्कार से अलग हो. यह फैसला उनके समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें हर इंसान को प्रेम और सम्मान देने की बात कही गई है.
समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के समर्थक
पोप फ्रांसिस ने हमेशा उन लोगों की पैरवी की जिन्हें समाज ने नजरअंदाज किया. प्रवासी हों, शरणार्थी हों या LGBTQ+ समुदाय, उन्होंने सभी के अधिकारों की बात की. उनका मानना था कि चर्च को प्रेम और करुणा का प्रतीक होना चाहिए, न कि भेदभाव का.