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India Daily

तालिबानियों की मार से चौकी छोड़कर भागे पाकिस्तानी, सोशल मीडिया पर वीडियो हो रहा वायरल

दावा किया जा रहा है कि यह वीडियो टीटीपी ने खुद जारी किया है. हालांकि, पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस वीडियो पर सफाई दी है. उनका कहना है कि यह सैन्य चौकी हमले से पहले ही खाली कर दी गई थी और सैनिकों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कर दिया गया था.

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Edited By: Kamal Kumar Mishra
Pakistan
Courtesy: x

Pakistan: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लड़ाके अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के पास एक पाकिस्तानी सैन्य चौकी पर कब्जा करते हुए नजर आ रहे हैं. इस वीडियो में तालिबानी लड़ाके पाकिस्तान का झंडा उखाड़कर टीटीपी का झंडा लहरा रहे हैं.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, खासकर डूरंड लाइन पर संघर्ष के बाद अफगान तालिबान के लड़ाके पाकिस्तान की चौकियों पर हमले कर रहे हैं. पाकिस्तानी सैनिकों की स्थिति कमजोर हो रही है. पाकिस्तानी सेना का कहना है कि यह केवल बाजौर क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान में भी ऐसी ही स्थिति थी, जहां सैनिकों को चौकियों से हटा लिया गया था.

पाकिस्तान की एयर स्ट्राइक के बाद हमला

इस बीच, अफगान तालिबान और पाकिस्तान के बीच संघर्ष तब बढ़ा, जब टीटीपी ने हाल ही में वजीरिस्तान के मकीन क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना के 30 जवानों को मार डाला. इसके जवाब में पाकिस्तान ने एयरस्ट्राइक की थी, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि वह अपने सैनिकों की हत्या को बर्दाश्त नहीं करेगा.

तालिबानी लड़ाके छिपने में माहिर

तालिबान की ताकत इस समय बहुत बढ़ चुकी है। उनके पास अत्याधुनिक हथियारों का भंडार है, जिसमें एके-47, मोर्टार, और रॉकेट लॉन्चर जैसी चीजें शामिल हैं. इसके अलावा, तालिबान के लड़ाके दुर्गम पहाड़ी इलाकों में छिपने की क्षमता रखते हैं, जहां पाकिस्तानी सेना को उनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. 

पाकिस्तानी सरकार पहले ही आर्थिक संकट, सीपैक परियोजना में देरी और बलूचिस्तान में अलगाववाद जैसी समस्याओं से जूझ रही है. इन चुनौतियों ने सरकार और सेना को कमजोर कर दिया है. अब तालिबान के साथ संघर्ष इस संकट को और बढ़ा रहा है. 

तालिबान को मिल रहा सपोर्ट

तालिबान के पास अब 1.5 लाख सक्रिय लड़ाके हैं और उनका समर्थन करने वाली ताकतें, जैसे कबीली इलाके, मदरसे, और पाकिस्तानी सेना की कुछ सीक्रेट मदद, तालिबान के लिए मददगार साबित हो रही हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के छह महीने के भीतर तालिबान का प्रभुत्व स्थापित हो सकता था.