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Pakistan Suprem Court: जानिए दशकों पुराना वो किस्सा जिससे शर्मसार हुआ पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट

Pakistan Suprem Court on Zulfikar Ali Bhutto: पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को सजा-ए-मौत और फांसी सिद्धांतों और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकारों का उल्लंघन थी. जानते हैं कि आखिर उस वक्त हुआ क्या था?

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Edited By: India Daily Live
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Pakistan Suprem Court on Zulfikar Ali Bhutto: पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट आज शर्मसार है. 45 साल पहले हुए फैसला पर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस ने जो कहा वो आज पूरी दुनिया में मीडिया की सुर्खियां बन गया है. पाक सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.

इसमें कहा गया है कि साल 1979 में पूर्व प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को सजा-ए-मौत और फांसी देना न्यायिक कार्यवाही ने सिद्धांतों और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन था. इस मामले में ये जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि आखिर उस वक्त हुआ क्या था? तो जानते ही वो पूरा किस्सा...

जुलाई 1977 का पाकिस्तान में तख्तापलट

पाकिस्तान के आर्मी जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक ने जुलाई 1977 में देश में एक सैन्य तख्तापलट किया,जिसमें जुल्फिकार अली भुट्टो की चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका. बाद में भुट्टो पर साल 1974 में एक राजनीतिक सहयोगी की हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया. 

मीडिया रिपोर्ट्स में इसे पूरी तरह से अनुचित माना गया था. पाकिस्तान के न्यायिक इतिहास में जुल्फिकार का मुकदमा किसी ट्रायल कोर्ट के बजाय हाईकोर्ट में चलाया. जो अपनी तरह का एकमात्र मामला है, इसलिए उन्हें अपील करने के अधिकार से भी दूर रखा गया था. 

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों ने किया स्वीकार किया

तख्तापलट के बाद जनरल जिया ने उन न्यायाधीशों को हटाया, जिन्होंने सैन्य कार्रवाई के खिलाफ नई शपथ लेने से इनकार कर दिया था. हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश समेत पूर्व न्यायाधीशों ने जिया-उल-हक के दबाव में मौत की सजा देने की बात भी स्वीकार की है. 

लोगों से छीन लिए थे सारे मौलिक अधिकार 

1977 के सैन्य तख्तापलट ने पाकिस्तान में राजकीय आतंक, व्यापक अधिकारों के उल्लंघन की 11 साल की अवधि शुरू की. जिया-उल-हक ने साल 1977 में पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगाया और साल 1973 के संविधान में दिए गए सभी मौलिक अधिकारों को रद्द कर दिया. राजनीतिक दलों और ट्रेड यूनियनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया.

पाकिस्तान में पूरी तरह से थी तानाशाही

इतना ही नहीं सैन्य शासन से असंतुष्ट लोगों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गए. कई लोगों को मौत के घाट के उतार दिया गया. कुछ अपराधों के लिए कठोर इस्लामी कानून लागू किए गए. सैन्य तानाशाही के दौरान हुए चुनावों ने मतदान के सभी अधिकारों को उलट दिया गया. उस वक्त पाकिस्तान में एक ऐसा सिस्टम लागू किया गया, जिसके तहत गैर-मुसलमानों को एक अलग कैटेगरी में रखा गया, जो केवल गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों को ही वोट देते थे. 

अब पाकिस्तान के चीफ जस्टिस ने कबूल की वो गलती

अब पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश काजी फैजे ईसा ने साल 1979 के मामले पर अपनी राय में लिखा है. उन्होंने कहा कि हमें... आत्म-जवाबदेही की भावना में विनम्रता के साथ अपने पिछले गलत कदमों और गलतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारी प्रतिबद्धता के ऐसे प्रमाण होने चाहिए को लोगों का कानून में अटूट भरोसा पैदा हो. जब तक हम अपनी पिछली गलतियों को स्वीकार नहीं करते तब तक हम खुद को सुधार नहीं सकते.