पाकिस्तान ने आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में जापान की जगह ले ली और एशिया-प्रशांत क्षेत्र से दो सीटों में से एक पर अपना स्थान पक्का किया. पाकिस्तान की यह नई सदस्यता दो साल तक चलेगी, जिसमें वह जुलाई में परिषद का अध्यक्ष भी बनेगा. इसके साथ ही, पाकिस्तान अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एजेंडा निर्धारित करने की स्थिति में होगा.
पाकिस्तान की नई जिम्मेदारियां
यह कार्यकाल उस समय में आ रहा है, जब मध्य और पश्चिम एशिया में राजनीतिक और मानवतावादी संकट चल रहे हैं - गाजा युद्ध, लेबनान संकट, इजराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव, सीरिया में शासन परिवर्तन, और अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच संघर्ष इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं. यूरोप भी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है.
कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की नीति
पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद में अपनी भूमिका शुरू करते हुए कश्मीर मुद्दे को फिर से उठाने का संकेत दिया है. पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि मुनिर अक्रम ने कहा है कि "हम कश्मीर मुद्दे को लगातार उठाएंगे और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ठोस कदम उठाने की अपील करेंगे." इस प्रकार, पाकिस्तान का मुख्य एजेंडा कश्मीर पर अपनी पुरानी रट को जारी रखना रहेगा.
हालाँकि, पाकिस्तान के पास सुरक्षा परिषद में वीटो अधिकार नहीं होगा, लेकिन फिर भी वह आतंकवादियों को नामित करने और प्रतिबंध समिति पर प्रभाव डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
सुरक्षा परिषद के सुधारों पर पाकिस्तान का रुख
पाकिस्तान का यह कार्यकाल एक ऐसे समय में है जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की बातें हो रही हैं. भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, स्थायी सदस्यता और वीटो अधिकारों के लिए दबाव बना रहा है. भारत ने लंबे समय से सुरक्षा परिषद में सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया है, जिसमें उसे स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए.
हालांकि, पाकिस्तान ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के विस्तार का विरोध करेगा और केवल गैर-स्थायी सदस्यता का विस्तार करना चाहता है. इस मामले में पाकिस्तान भारत के प्रयासों को कमजोर करने की कोशिश करेगा.
पाकिस्तान की रणनीति: मुस्लिम दुनिया का प्रतिनिधित्व
पाकिस्तान ने अपनी रणनीति के तहत, सुरक्षा परिषद में ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) देशों के पांच गैर-स्थायी सदस्यों में से एक के रूप में अपनी भूमिका को 'मुस्लिम दुनिया की आवाज' के रूप में प्रस्तुत करने की योजना बनाई है. इसके समानांतर, भारत को "वैश्विक दक्षिण की आवाज" के रूप में देखा जाता है. पाकिस्तान का यह कदम मुस्लिम देशों के हितों को सुरक्षा परिषद में अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए हो सकता है.
इस प्रकार, पाकिस्तान की यह नई सदस्यता और उसकी रणनीति वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका को और बढ़ाने का प्रयास हो सकता है, जबकि भारत के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के प्रयासों को चुनौती देने का भी संकेत देता है.