North Korea on Trump: गाजा पर डोनाल्ड ट्रंप के प्लान को लेकर भड़का उत्तर कोरिया! ट्रंप के 'गाजा प्लान' को किया खारिज

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा के लोगों दूसरे देशों में भेजने की योजना का नार्थ कोरिया ने कड़ा विरोध किया है. इधर, नार्थ कोरिया का कहना है कि ऐसी उत्तेजक बयानबाजी से दुनिया स्तब्ध है.

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उत्तर कोरिया ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा पट्टी पर "कब्ज़ा करने" और वहां के फिलिस्तीनियों को दूसरे देशों में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. इसे "गाजा के लोगों को जबरन बाहर निकालने का कृत्य" करार देते हुए आलोचना की. इस दौरान सरकारी समाचार एजेंसी कोरियन सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी (KCNA) ने कहा कि राष्ट्रीय संप्रभुता को वाशिंगटन के साथ बातचीत का विषय नहीं बनाया जा सकता है.

गाजा में हो रहे अत्याचारों पर नाराजगी

समाचार एजेंसी कोरियन सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी ने कहा, "जब गाजा पट्टी में रक्त और आंसू बह रहे हैं और दुनिया भर में वहां की स्थिति को लेकर चिंता बढ़ रही है, तब फिलिस्तीनियों के शांतिपूर्ण जीवन और स्थिरता की उम्मीदों को कुचलने वाली ऐसी उत्तेजक बयानबाजी से दुनिया स्तब्ध है.

यह प्रस्ताव केवल गाजा की स्थिति के लिए नहीं, बल्कि यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन भी है. उत्तर कोरिया ने इसे "दो-राज्य समाधान के लिए एक प्रमुख बाधा" और "पूरी तरह से अस्वीकार्य लापरवाह कृत्य" बताया.

ट्रंप के प्रस्ताव की आलोचना

उत्तर कोरिया ने ट्रंप के इस प्रस्ताव का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति की निंदा करते हुए कहा कि यह कदम गाजा में शांति की उम्मीदों के खिलाफ है. इसने यह भी आरोप लगाया कि अमेरिका इसरायल की "मानवता विरोधी क्रूरताओं" का समर्थन कर रहा है, इसे "आत्म-रक्षात्मक अधिकार" के रूप में पेश करके और उच्च तकनीकी हत्या उपकरणों की आपूर्ति करना शामिल है.

ट्रंप का गाजा पर कब्ज़े का बयान

बता दें कि, बीते 4 फरवरी को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की थी कि अमेरिका गाजा पट्टी पर कब्ज़ा करने का इरादा रखता है और फिलिस्तीनियों को वहां से स्थानांतरित कर दूसरे देशों जैसे मिस्र और जॉर्डन में भेजेगा.

वैश्विक विरोध और इज़रायल का समर्थन

इस प्रस्ताव का फिलिस्तीनियों, अरब देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यापक रूप से विरोध किया गया है, हालांकि इज़राइल में इसे राजनीतिक समर्थन प्राप्त हुआ है.