NATO ने शांति वार्ताओं में यूक्रेन और यूरोप को शामिल करने पर दिया जोर, जानें क्या है इसका मकसद

ब्रिटेन के रक्षा मंत्री जॉन हिली ने इस संदर्भ में कहा, “यह मत भूलिये कि रूस, यूक्रेन के अलावा और देशों के लिए भी खतरा बना हुआ है.” उनकी इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि नाटो देशों को अभी भी रूस की आक्रामक नीति पर संदेह है और वे किसी भी वार्ता से पहले अपने हितों को सुरक्षित रखना चाहते हैं.

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व्लादिमीर पुतिन के साथ जल्द बातचीत करने के संकेत देने के बाद, उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देशों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी शांति वार्ता से यूक्रेन और यूरोप को अलग नहीं किया जाना चाहिए.

नाटो के कई सदस्य देशों ने बृहस्पतिवार को इस विषय पर अपनी चिंताओं को व्यक्त किया. इन देशों का मानना है कि रूस के साथ किसी भी संभावित समझौते में यूक्रेन और यूरोपीय देशों की भागीदारी आवश्यक होनी चाहिए, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

रूस बना हुआ है बड़ा खतरा

ब्रिटेन के रक्षा मंत्री जॉन हिली ने इस संदर्भ में कहा, “यह मत भूलिये कि रूस, यूक्रेन के अलावा और देशों के लिए भी खतरा बना हुआ है.” उनकी इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि नाटो देशों को अभी भी रूस की आक्रामक नीति पर संदेह है और वे किसी भी वार्ता से पहले अपने हितों को सुरक्षित रखना चाहते हैं.

नाटो की रणनीति पर चर्चा जारी

इस बीच, नाटो के अन्य प्रमुख देश भी इस मुद्दे पर आपसी विचार-विमर्श कर रहे हैं. संगठन की प्राथमिकता है कि किसी भी शांति वार्ता में सभी प्रभावित पक्षों को शामिल किया जाए, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार की असहमति से बचा जा सके.

रूस और अमेरिका के बीच संभावित वार्ता को लेकर नाटो देशों की सतर्कता दर्शाती है कि यूरोप और यूक्रेन की सुरक्षा उनके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. नाटो यह सुनिश्चित करना चाहता है कि किसी भी राजनयिक वार्ता में उनके हितों की अनदेखी न की जाए.