अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने हाल ही में एक ऐसा खुलासा किया है जिसने दुनियाभर के ईसाइयों को चौंका दिया है. नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने यीशु मसीह की मृत्यु की सही तारीख की पुष्टि कर दी है. यह तारीख 3 अप्रैल 33वीं इस्वी थी.
इस तारीख को लेकर सबसे दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन एक चंद्रग्रहण हुआ था. नासा के अनुसार, यह वही घटना हो सकती है जिसे बाइबल में “चंद्रमा का खून से रंग जाना” कहा गया है. ग्रहण के दौरान चंद्रमा पर लाल रंग की परछाईं पड़ती है, जिसे आम भाषा में ब्लड मून कहा जाता है. यह लालिमा उस शाम को यरूशलेम (Jerusalem) से साफ दिखाई दी थी.
बाइबल में दर्ज है यह खगोलीय घटना
ईसाई धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि यीशु को जब सूली पर चढ़ाया गया, तब चारों ओर अंधेरा छा गया और चंद्रमा खून जैसा लाल हो गया. यह घटनाएं उस दिन के खगोलीय परिवर्तनों से मेल खाती हैं.
प्रेरित पतरस (Peter the Apostle) ने कहा था – “सूरज अंधकार में बदल जाएगा और चंद्रमा खून बन जाएगा, प्रभु के महान और अद्भुत दिन से पहले.” हालांकि यह बात उन्होंने यीशु की मृत्यु के लगभग 50 दिन बाद कही थी.
कुछ विद्वानों का मानना है कि पतरस भविष्यवाणी कर रहे थे, जबकि अन्य का कहना है कि उनकी बात का सही अर्थ समय के साथ बदल गया या अनुवाद में गड़बड़ी हुई.
जोएल की भविष्यवाणी से मेल खाता है वर्णन
बाइबल के एक अन्य हिस्से जोएल 2:28-31 में लिखा है, “सूरज अंधकार में बदल जाएगा और चंद्रमा खून बन जाएगा, प्रभु के महान और भयानक दिन से पहले.”
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के बाइबल विशेषज्ञ कोलिन हम्फ्रीज और डब्ल्यू. ग्राहम वेडिंगटन ने भी नासा की इस थ्योरी का समर्थन किया है. उनके अनुसार, बाइबल में जिस अंधकार और लाल चंद्रमा की बात की गई है, वह 3 अप्रैल, 33 ईस्वी को हुए चंद्रग्रहण से मेल खाती है.
नासा की खोज – भविष्य की ओर भी इशारा?
अगर बाइबल में लिखी बातें सच हैं और पतरस की कही बात भविष्य के संकेत थीं, तो कुछ लोग मानते हैं कि अगली बार जब ऐसा चंद्रग्रहण होगा, तब शायद यीशु की वापसी हो सकती है.