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इतना दर्द कि मैं सो नहीं सका... पीड़ित अफ्रीकी मरीज ने शेयर किए एमपॉक्स के भयावह लक्षण

Mpox Torture Symptoms: अफ्रीका समेत कई देशों में एमपॉक्स यानी मंकीपॉक्स के कई केस सामने आए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एमपॉक्स को लेकर अलर्ट भी जारी किया है. इस बीच एमपॉक्स से पीड़ित एक मरीज ने बीमारी के भयावह लक्षणों के बारे में अपने अनुभव शेयर किए हैं. मरीज ने कहा कि मेरा एक दोस्त था जिसके शरीर पर छाले थे. मुझे लगता है कि मुझे ये बीमारी उसी से मिली. मुझे नहीं पता था कि ये एमपॉक्स है.

Imran Khan claims
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Mpox Torture Symptoms: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पिछले हफ़्ते दो साल में दूसरी बार Mpox को अंतरराष्ट्रीय चिंता का पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया. ये निर्णय पूरे अफ़्रीका में वायरस के एक नए, बेहद ख़तरनाक वैरिएंट के तेज़ी से फैलने के कारण लिया गया. जुलाई से बुरुंडी, केन्या, रवांडा और युगांडा में एमपॉक्स के प्रकोप की सूचना मिली. स्वीडन में भी नए स्ट्रेन का एक मामला पाया गया. अब तक इस बीमारी से 570 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस बीच, Mpox के नए स्ट्रेन 'क्लेड 1बी' से जूझ रहे एक अफ़्रीकी मरीज ने हाल ही में बीमारी के भयानक लक्षण शेयर किए.

बुरुंडी के मुख्य शहर बुजुम्बुरा के 40 साल के एगीडे इरम्बोना ने बीबीसी को बताया कि इस बीमारी से भयानक दर्द होता है. मेरे गले में लिम्फ नोड्स सूज गए थे. येे इतना दर्दनाक था कि मैं सो नहीं पाया. फिर दर्द कम हो गया और यह मेरे पैरों तक पहुंच गया. अन्य एमपॉक्स वैरिएंट की तुलना में, क्लेड 1बी अधिक संक्रामक है लेकिन कम घातक प्रतीत होता है. ये मुख्य रूप से विषमलैंगिक संचरण (Heterosexual Transmission) के माध्यम से फैलता है.

किंग खालिद यूनिवर्सिटी अस्पताल में एडमिट हैं एगीडे इरम्बोना

एगीडे इरम्बोना पिछले नौ दिनों से किंग खालिद यूनिवर्सिटी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं, जहां उन्हें दो अन्य मरीजों के साथ एक कमरा शेयर करना पड़ रहा है. उन्हें लगता है कि किसी दोस्त ने उन्हें ये संक्रामक वायरस दिया होगा. उन्होंने कहा कि मेरा एक दोस्त था जिसके शरीर पर छाले थे. मुझे लगता है कि मुझे यह उसी से मिला. मुझे नहीं पता था कि यह एमपॉक्स है. शुक्र है कि हमारे सात बच्चों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखे. 

इरम्बोना की पत्नी भी इस बीमारी से संक्रमित हो गई हैं और उनकी देखभाल भी इसी अस्पताल में की जा रही है. उपलब्ध 61 बिस्तरों में से 59 पर संक्रमित मरीज़ हैं, इनमें से एक तिहाई 15 साल से कम उम्र के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, यहां सबसे ज़्यादा बच्चे प्रभावित हैं.

अस्पताल की डॉक्टर ओडेट नसवीमाना ने बताया कि मरीजों की संख्या में प्रतिदिन वृद्धि हो रही है. अब हम बाहर टेंट लगा रहे हैं. वर्तमान में तीन टेंट हैं, एक संदिग्ध मामलों के लिए, दूसरा ट्राइएज के लिए और तीसरा पुष्ट मामलों के लिए जिन्हें वार्ड में भेजे जाने से पहले रखा जाता है.

डॉक्टर बोले- मुश्किल तब होती है, जब बच्चे अस्पताल में आते हैं

डॉक्टर नसविमना ने बीबीसी को बताया कि मुश्किल तब होता है, जब अस्पताल में बच्चे आते हैं. वे अकेले नहीं रह सकते, इसलिए मुझे उनकी मां को भी यहीं रखना पड़ता है. भले ही उनमें कोई लक्षण न हों... ये बहुत कठिन स्थिति है. मैं संख्या को लेकर चिंतित हूं. अगर वे बढ़ते रहे, तो हमारे पास इसे संभालने की क्षमता नहीं है.

चिकित्सा अधिकारी संसाधनों की कमी को लेकर चिंतित हैं. न तो कोई वैक्सीन है, न ही पर्याप्त परीक्षण किट हैं और देश में केवल एक लैब है जो वायरस के लिए ब्लड सैंपल की जांच कर सकती है. शहर में पानी जैसी आवश्यक चीजों की सीमित पहुंच के कारण पूरे बुजुंबुरा में स्वच्छता की स्थिति बनाए रखना भी मुश्किल है.

सेंटर फॉर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑपरेशंस ने भी जताई चिंता

सेंटर फॉर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑपरेशंस की नेशनल डायरेक्टर ने निकट भविष्य के बारे में अपनी गंभीर चिंताएं व्यक्त कीं. लिलियन नेकेंगुरत्से ने कहा कि ये एक वास्तविक चुनौती है. फैक्ट ये है कि इलाज केवल एक ही स्थान पर किया जाता है, जिससे नए मामलों का पता लगाने में देरी होती है. स्वास्थ्य केंद्र प्रयोगशाला को ये कहते हुए कॉल कर रहे हैं कि उनके पास संदिग्ध मामले हैं, लेकिन प्रयोगशाला से टीमों को संदिग्ध मामलों के स्थान पर नमूने लेने के लिए तैनात होने में समय लगता है.

इसके अलावा, वहां रहने वाले बहुत से लोग एमपॉक्स की गंभीरता से अवगत नहीं हैं. लोग सामान्य रूप से जीवन जी रहे हैं. डॉ. एनकेंगुरत्से ने बीबीसी को बताया कि बहुत से लोग इस मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझते हैं. यहां तक ​​कि जहां मामले सामने आए हैं, वहां भी लोग बस एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं.

कई निवासियों ने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि देश में एमपॉक्स फैल रहा है. एक व्यक्ति ने कहा कि मैंने इस बीमारी के बारे में सुना है, लेकिन मैंने कभी किसी को इससे पीड़ित नहीं देखा. मैंने इसे केवल सोशल मीडिया पर देखा है. एक अन्य ने कहा कि मुझे पता है कि यह बच्चों और युवाओं को प्रभावित करता है. मैं इससे डरता हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं घर पर ही बैठा रहूंगा. मुझे काम करना है. मेरे परिवार को खाना भी चाहिए.

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