व्हाइट हाउस ने हाल ही में एक बयान जारी करते हुए आरोप लगाया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्णयों पर आपत्ति जताने वाले कुछ जुडिशरी कोंस्टीटूशनल संकट उत्पन्न कर रहे हैं. व्हाइट हाउस का कहना है कि न्यायपालिका द्वारा ट्रंप के फैसलों पर बार-बार सवाल उठाने से संविधान की स्थिति पर संकट मंडरा रहा है, और यह निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है.
‘व्हाइट हाउस’ (अमेरिकी राष्ट्रपति का आधिकारिक आवास और कार्यालय) की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने ट्रंप के फैसलों की आलोचना करने वालों पर निशाना साधते हुए यह टिप्पणी की.
व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि जुडिशरी द्वारा ट्रंप के निर्णयों को पलटना या उन्हें रोकना संवैधानिक संकट को जन्म दे सकता है. उनका कहना है कि इस तरह के कदम से न्यायपालिका के अधिकारों और कार्यक्षेत्र पर सवाल खड़ा होता है और इससे शासन व्यवस्था में अनिश्चितता पैदा हो सकती है. यह भी आरोप लगाया गया कि कुछ न्यायाधीश राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित होकर फैसले ले रहे हैं, जो लोकतंत्र की मजबूती को कमजोर कर सकते हैं.
अमेरिकी जुडिशरी ने कई मौकों पर ट्रंप प्रशासन के निर्णयों पर आपत्ति जताई थी. इनमें यात्रा प्रतिबंधों, आप्रवासी नीतियों और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर न्यायालयों द्वारा निर्णय दिए गए थे. इन फैसलों को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप का यह आरोप है कि न्यायपालिका अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही है और राजनीतिक हस्तक्षेप कर रही है.
कोंस्टीटूशनल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह के विवादों से संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती पर असर पड़ सकता है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह सरकार के फैसलों की समीक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि वे संविधान के अनुरूप हों. इस स्थिति में दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है ताकि कोई भी संस्था अपनी सीमा से बाहर न जाए.
व्हाइट हाउस का यह बयान दर्शाता है कि ट्रंप प्रशासन न्यायपालिका द्वारा उठाए गए कदमों को एक चुनौती के रूप में देखता है. इससे यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रपति ट्रंप और न्यायपालिका के बीच संघर्ष जारी है, जो अमेरिकी राजनीति और संविधानिक व्यवस्था में नए सवाल खड़े कर रहा है.