Japan Moon Mission: भारत ने पिछले साल ऐतिहासिक चंद्र मिशन चंद्रयान-3 को लॉन्च किया था. इसकी कामयाबी का लोहा पूरी दुनिया ने माना था. इसकी देखादेखी में कई देशों ने अपने चंद्र अभियानों को रवाना किया कुछ के सफल रहे तो कुछ को सफलता मिली तो कुछ अपना मिशन पूरा करने में नाकाम रहे. जापान ने भी अपना मून मिशन लॉन्च किया था. हालांकि जापान के चंद्र मिशन की लैंडिग तयशुदा स्थान पर न हो पाने के कारण माना जा रहा था कि यह ज्यादा समय तक काम नहीं कर सकेगा लेकिन उसने तो पूरे अंतरिक्ष जगत को ही हैरत में डाल दिया. वह सभी आंकड़ो और वैज्ञानिक गणनाओं को चकमा देते हुए तीसरी बार जाग गया. जापान की अंतरिक्ष एजेंसी JAXA ने बताया कि उसका स्नाइपर लैंडर चांद की सतह पर तीसरी बार जाग गया. स्नाइपर ने चांद की सतह की तस्वीरें भी भेजी हैं.
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, मून स्नाइपर ने तीसरी बार चांद की सतह पर बाधाओं को दूर करने में सफलता पाई है. उसे ऐसी कठिन परिस्थितियों के लिए नहीं बनाया गया था. इसके बाद भी वह चंद्रमा के ठंडे तापमान में जीवित रह गया जो सच में हैरान करने वाला है. चांद की सतह पर 14 दिनों तक अंधेरा रहता है और तापमान काफी ज्यादा कम हो जाने की वजह से मून मिशन्स को ज्यादा लंबे समय तक चलने के लिए डिजाइन नहीं किया जाता. नासा के मुताबिक, चांद की सतह पर जब रात होती है तो वहां का तापमान शून्य से 133 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक जा पहुंचता है.
We successfully communicated with #SLIM on 04/23, confirming that SLIM survived its 3rd night! This is the lunar surface taken by the navigation camera on 04/23. Because this was captured during the earliest Moon phase yet, the Moon is bright and shadows are short. #GoodAfterMoon pic.twitter.com/ppqanYWGvH
— 小型月着陸実証機SLIM (@SLIM_JAXA) April 25, 2024
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जापान के मून स्नाइपर रोबोटिक वाहन को एक चंद्र रात सहन करने की भी क्षमता नहीं थी. जापान के इस स्नाइपर को SLIM या चांद की जांच के लिए स्मार्ट लैंडर के रूप में भी जाना जाता है. यह स्नाइप चांद की सतह 19 जनवरी को पहली बार उतरा था. चांद की सतह पर उतरने वाला जापान दुनिया का पांचवां देश बना था. स्नाइपर चांद के शियोली क्रेटर के पास लैंडिंग की थी. लैंडिंग के दौरान उसके यान में गड़बड़ी हो जाने के बाद वह बिजली नहीं बना पा रहा था. यान के सोलर पैनल सीधे होने के बजाए पश्चिम की ओर हो गए थे. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे थे कि जब सूरज की रोशनी फिर से उसके पैनलों तक पहुंचेगी तब यह स्नाइपर जाग सकता है.