बीते कई दशकों से मिडल ईस्ट के देशों में तनातनी जारी है. इसी बीच इजरायल और हमास की जंग नए सिरे से शुरू हो चुकी है. अब इजरायल और ईरान के बीच भी युद्ध शुरू होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं. भारत समेत दुनिया के तमाम देश अपने नागरिकों से अपील कर रहे हैं कि वे इन देशों की यात्रा न करें. वहीं, ईरान लगातार धमकी दे रहा है. अमेरिका ने आशंका जताई है कि जल्द ही एक भीषण युद्ध की शुरुआत हो सकती है. हैरानी की बात यह है कि ईरान और इजरायल पड़ोसी देश भी नहीं हैं और न ही कहीं से इनकी सीमाएं आपस में लगती है. इसके बावजूद दोनों देश एक-दूसरे के सामने खड़े हैं. आइए समझते हैं आखिर इस तनातनी की वजह क्या है?
चर्चाएं हैं कि अगर इस बार यह युद्ध छिड़ता है तो ईरान की ओर से तमाम इस्लामिक देश जंग में कूद सकते हैं. हमास के खिलाफ जंग में अमेरिका जैसे देश पहले से इजरायल के साथ खड़े हैं. ऐसे में यह एक विश्वयुद्ध का रूप भी ले सकता है. इससे न सिर्फ इन दोनों देशों को नुकसान होगा बल्कि पूरी दुनिया में अशांति फैलेगी और सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक मोर्चे पर भी दुनिया के तमाम विकसित और विकासशील देशों को नुकसान उठाना पड़ेगा.
बीते कुछ महीनों में इजरायल ने सीरिया के दमिश्क में स्थित ईरानी दूतावास पर हमला कर दिया था. इस हमले में दो ईरानी अधिकारियों की मौत से ईरान बौखला गया है. इसके अलावा, पहले भी चल रहे तनाव को अब बल मिल गया है. अमेरिकी खूफिया रिपोर्ट के हवाले से कहा जा रहा है कि इजरायल की सीमाओं के अंदर से ही ईरान हमले शुरू कर सकता है और मोर्चे खोल सकता है.
पुराने समय में ईरान और इजरायल अच्छे दोस्त के साथ-साथ कारोबारी सहयोगी भी हुआ करते थे. ईरान से तेल खरीदने के मामले में भी इजरायल सबसे आगे था. बात 1979 की है जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई और पश्चिम को चुनौती देने वाला नेतृत्व सिर उठाने लगा. इसी इस्लामिक क्रांति ने ईरान और इजरायल को दो अलग धड़े में बांट दिया. शिया नेता अयातुल्ला खुमैनी ईरान के चीफ बने और ईरान पूर्णरूप से इस्लामिक देश घोषित कर दिया. इजरायल और अमेरिका की दोस्ती ने इसमें आग में घी का काम किया और ईरान इजरायल से दूर होता गया. ईरान ने अपने यहां उसी बिल्डिंग में फिलीस्तीन का दूतावास खुलवा दिया जिसमें इजरायल का दूतावास हुआ करता था. इसी को लेकर यासर अराफात ईरान गए.
ऐसी कार्रवाई के चलते ईरान को कई आर्थिक प्रतिबंध भी झेलने पड़े. मौजूदा समय में ईरान, अमेरिका उसके मित्र देशों को अपना दुश्मन मानता है. फिलिस्तीन की आजादी भी ईरान के प्रमुख मुद्दे में रहा है. यही कारण है कि साल 1982 में जब इजरायल ने लेबनान पर हमला बहोला तो ईरान ने भी अपने जवानों को मैदान में उतार दिया था. कहा जाता है कि हिजबुल्ला, हमास और अन्य उग्रवादी संगठनों को आगे बढ़ाने में भी ईरान का हाथ रहा है.
इस्लामिक देश बनने के साथ ही ईरान भी 'मुस्लिम ब्रदरहुड' वाली विचारधारा पर चलने लगा. यहीं से ईरान ने आरोप लगाने शुरू किए कि इजरायल ने मुस्लिमों की जमीन पर अवैध कब्जा किया है. यही वजह है कि ईरान कभी भी इजरायल को देश का दर्जा नहीं देता है. इजरायल vs फिलिस्तीन की जंग में भी ईरान ने हमेशा फिलिस्तीन का विरोध किया.
बीते कुछ समय में सऊदी अरब ने आगे बढ़कर इजरायल से अपने अच्छे रिश्तों की शुरुआत की है. हालांकि, पहले इजरायल-हमास संघर्ष और अब यह संभावित जंग इन देशों के रिश्तों के साथ-साथ वैश्विक शांति के लिए भी चुनौती बन सकती हैं. अब देखना यह होगा कि इस समस्या को बातचीत से निपटाया जा सकेगा या फिर रूस और यूक्रेन की तरह दुनिया को एक और युद्ध का दंश झेलना पड़ेगा.