भारत से लगभग 11 हजार किलोमीटर दूर एक जगह है जिसका नाम है अंटार्कटिका. अंटार्कटिका में मौजूद भारत के रिसर्च स्टेशनों पर भारत के पोस्ट ऑफिस भी मौजूद हैं. एक साल में इस जगह पर 10 हजार से ज्यादा चिट्ठियां और पार्सल भी आते हैं. रोचक बात यह है कि इसके लिए भारत के पिनकोड का भी इस्तेमाल किया जाता है. यह जगह गोवा पोस्टल डिवीजन के अंदर आती है और यहां का पिनकोड MH-1718 भी गोवा से मिलता जुलता ही है.
अंटार्कटिका में भारत के दो रिसर्च बेस हैं. ये रिसर्च बेस- मैत्री और भारती एक-दूसरे से 3 हजार किलोमीटर दूर हैं. इसके बावजूद दोनों गोवा के पोस्टल डिवीजन से आते हैं. दरअसल, 1984 में अंटार्कटिका में भारत का पहला मिशन शुरू होने के साथ ही दक्षिण गंगोत्री में वहां पहला पोस्ट ऑफिस खोला गया था. हालांकि, साल 1988-89 तक दक्षिण गंगोत्री के डूब जाने के चलते इसे डिकमीशन कर दिया गया था.
क्या है मैत्री?
साल 1990 के जनवरी महीने में भारत ने मैत्री नाम से अपना एक नया रिसर्च स्टेशन अंटार्कटिका में शुरू किया. इसी के साथ एक बार फिर से सुदूर स्थित यह क्षेत्र भारत के पोस्टल नेटवर्क पर आ गया. बीते 35 सालों से चिट्ठियों का आदान-प्रदान लगातार जारी है और हर साल हजारों चिट्ठियां यहां भेजी जा रही हैं. यहां चिट्ठियां भेजने के लिए जो पिनकोड MH-1718 इस्तेमाल किया जाता है वह गोवा पोस्टल डिवीजन के तहत आता है.
दरअसल, नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओसन रिसर्च (NCPOR) गोवा में ही स्थित है. अंटार्कटिका में जारी रिसर्च का संचालन यहीं से होता है. यहां के लिए भेजे जाने वाले लेटर्स को कैंसल कर दिया जाता है. इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि इसमें कई अहम जानकारी होती हैं. बता दें कि अंटार्कटिका का संचान अंटार्कटिक ट्रीटी के तहत होता है. इस समझौते के तहत कोई भी देश इस पर अपना कब्जा नहीं जमा सकता और न ही यहां कोई सैन्य गतिविधि की जा सकती है. इस जगह का इस्तेमाल सिर्फ रिसर्च में किया जाता है.