India China Ties: पीएम मोदी का पुराना मास्टरस्ट्रोक अब दिखा रहा है असर, पतली होने लगी है ड्रैगन की हालत
India China Ties: भारत और चीन के बीच मुश्किल भरे रिश्तों के बारे में कौन नहीं जानता जिसको लेकर पीएम मोदी ने देश को आत्म निर्भर बनने का नारा अपने पहले कार्यकाल से देना जारी रखा है. इस बीच हम पीएम मोदी के उस मास्टरस्ट्रोक की बात कर रहे हैं जिसका असर अब ड्रैगन पर दिखना शुरू हो गया है.
India China Ties: अपने दो सफल कार्यकाल का समापन कर तीसरी बार सत्ता में आने को देख रहे पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल मे कई क्रांतिकारी परियोजनाओं का आगाज किया जिसके चलते मौजूदा समय में बड़ा बदलाव भी देखने को मिलता है. स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया इसी पहल का हिस्सा है. जहां स्वच्छ भारत अभियान ने देश की सुंदरता में चार चांद लगाने का काम किया है तो वहीं पीएम मोदी की मेक इन इंडिया पहल ने चीन के साथ भारत के व्यापारिक हालात को बदल कर रख दिया है.
पीएम मोदी की इस पहल ने न सिर्फ घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर इंपोर्ट डिपेंडेंसी को कम करने का काम किया बल्कि व्यापार घाटे में भी कमी आई है. हालांकि पीएम मोदी के इस मास्टरस्ट्रोक का वो असर अभी तक सामने नहीं आ सका है जिसकी इससे उम्मीद थी. आइए समझते हैं कि कैसे इस एक पहल ने ड्रैगन की चाल पर लगाम लगाने का काम किया है तो वहीं इसके चलते कुछ गंभीर चुनौतियां भी सामने आई है.
इम्पोर्ट में गिरावट पर एक्सपोर्ट में आ रही धीमी
मेक इन इंडिया पहल ने सबसे ज्यादा असर चीन से होने वाले इंपोर्ट प्रोडक्ट्स पर दिखाया है, जैसे कि मोबाइल फोन के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों ने चीनी इंपोर्ट में कमी देखी है. इलेक्ट्रॉनिक्स और कुछ अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह के रुझान देखे गए हैं. हालांकि इसमें कमी जरूर देखी गई है लेकिन कच्चे माल और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में इंपोर्ट डिपेंडेंसी बने होने के चलते इसका व्यापक असर नहीं देखा जा सका है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर भारत को इंपोर्ट रिप्लेसमेंट की रणनीति को पूरा करना है तो उसेअभी भी एक लंबा सफर तय करना है.
एक्सपोर्ट के मोर्चे पर भी भारत की तस्वीर में हल्का-फुल्का सुधार है. भारत में बनी कुछ निर्मित वस्तुओं, जैसे ऑटोमोबाइल पार्ट्स और फार्मास्युटिकल्स में मामूली तेजी देखी गई है. लेकिन, यह तेजी ट्रेड डिफिसिएट (व्यापार घाटा) को खत्म करने के लिए नाकाफी है. 2022 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा $73.31 बिलियन रहा जो कि साफ करता है कि भारत को एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता है.
मेक इन इंडिया को लागू करने में आने वाली मुश्किलें
- मेक इन इंडिया पहल के चलते भारत की मौजूदा मिक्स्ड हालत के पीछे कई चुनौतियां है.सबसे बड़ी चुनौती भारत की एक मजबूत मैन्युफैक्चरिंग इकॉलजी का निर्माण करना है. स्किल्ड लेबर, वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर और सही टेक्नॉलजी ट्रांसफर की कमी भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा बनने और चीन जैसे बड़े देशों से बराबरी का मुकाबला करने से रोकती है.
- दूसरी बड़ी चुनौती भारत और चीन के बीच होने वाले सीधे कॉम्पिटीशन से आती है. चीन अपने बड़े पैमाने पर लो कॉस्ट प्रोडक्शन स्ट्रक्चर के कारण ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में हावी है. भारत को न केवल क्वालिटी और एफिसिएंसी में सुधार करना है, बल्कि इनोवेशन पर भी ध्यान देना होगा ताकि अपने प्रोडक्ट्स को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अलग पहचान दिला सके.
- इसके साथ ही भारत और चीन के बीच लगातार रहने वाले जियो पॉलिटिकल टेंशन भी व्यापार को बाधित करते हैं. भारत और चीन के बीच हाल के टकरावों ने बाइलैट्रल ट्रेड पर उल्टा असर डाला है, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास कम हुआ है और व्यापार में मुश्किलें बढ़ी हैं.
भविष्य में मेक इन इंडिया का क्या होगा असर
मेक इन इंडिया पहल की लंबी सफलता उन बातों पर निर्भर करती है कि वो अपने सामने आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे करता है. ये कुछ अहम कदम हैं जिनका इस्तेमाल निपटारे के लिए किया जा सकता है.
- मैन्युफैक्चरिंग इकॉलजी को मजबूत बनाना: स्किल डवलेपमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाकर, साथ ही फॉरेन टेक्नॉलजी ट्रांसफऱ को सुविधाजनक बनाकर भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को बढ़ा सकता है.
- क्वालिटी और इनोवेशन पर ध्यान देना: ग्लोबल मार्केट में कॉम्पिटीटिव बने रहने के लिए भारत को क्वालिटी प्रोडक्टस का निर्माण करना होगा और साथ ही साथ इनोवेशन को प्राथमिकता देनी होगी.
- ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार: सरकार को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की तरफ कदम बढ़ाते हुए मुश्किल प्रोसेस को आसान बनाने की पहल करनी होगी, न सिर्फ प्रोसेस को आसान करना होगा बल्कि कागजी कार्रवाई को भी कम करना होगा. जैसे ही बिजनेस करने का मॉडल आसान होगा वैसे ही ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बढ़ने की संभावना भी अधिक हो जाएगी.