खालिस्तानियों के आगे झुका हार्वर्ड विश्वविद्यालय, खालिस्तानी आतंकवाद पर लिखे आर्टिकल को हटाया, अब हो रही है खूब किरकिरी
Harvard University removed article written on Khalistani terrorism: खालिस्तानी समर्थकों के दबाव में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने खालिस्तानी आतंकवाद और इसके भारत-कनाडा संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव पर आधारित एक आर्टिकल को हटा दिया.
खालिस्तानी आतंकवाद पर लेख लिखकर हार्वर्ड विश्वविद्यालय को अब पछताना पड़ रहा है. विश्वविद्यालय को मजबूर खालिस्तानी आतंकवाद पर एक लेख को हटाना पड़ा. इसके बाद उसे कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. 'हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू' में खालिस्तान आतंकवाद पर एक आर्टिकल पब्लिश किया गया था. इस लेख में खालिस्तानी आतंकवाद और भारत- कनाडा संबंधों पर चर्चा की गई थी. लेकिन अब इसे हटा लिया गया है. लेख के हटाए जाने के बाद विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने विरोध व्यक्त किया है. इतना ही नहीं विरोध करते हुए लोगों ने यह भी कहा कि यह एक तरह से विचारों की स्वतंत्रता पर हमला है.
आखिर क्या है पूरा मामला?
हार्वर्ड स्टूडेंट जर्नल ने 'A Thorn in the Maple: How the Khalistan Question is Reshaping India-Canada Relations' के नाम से 15 फरवरी को आर्टिकल प्रकाशित किया था. इस आर्टिकल में खालिस्तानी आतंकवाद के इतिहास और उसके कनाडा में फैलने की स्थिति के बारे में बताया गया था. इसके अलावा, यह बताया गया था कि खालिस्तानी आतंकवाद के कारण भारत और कनाडा के संबंधों में किस तरह की दरारे आ रही हैं.
लेख प्रकाशित होने के एक हफ्ते बाद यानी 22 फरवरी को इसके हटाए जाने की भी खबर सामने आई. इस आर्टिकल को लिखने वाली लेखिका जायना ढिल्लो ने कहा कि विश्वविद्यालय ने दबाव के कारण लेख को हटाया. ढिल्लो के अनुसार, यह निर्णय विचारों की स्वतंत्रता के खिलाफ था और यह खालिस्तानी तत्वों के दबाव में लिया गया निर्णय है.
हार्वर्ड विश्वविद्यालय को करना पड़ा आलोचना का सामान
A Thorn in the Maple: How the Khalistan Question is Reshaping India-Canada Relations लेख को हटाए जाने के बाद हार्वर्ड विश्वविद्यालय को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. सोशल मीडिया पर लोगों ने इस लेख के आर्काइव लिंक शेयर करके विश्वविद्यालय के इस कदम को गलत बताया है. हिंदू अमेरिकन संस्था 'कोएलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका' ने भी इस कदम को बहुत ही "शर्मनाक" बताया है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर यह आरोप भी लगाया गया है कि उसने अपने स्वतंत्र विचारों के समर्थन से समझौता किया है.
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