सब खत्म हो गया, तबाह हो गया... हमास के नरसंहार ने 2185 इजराइली भाई-बहनों को एक-दूसरे से किया अलग
इजराइल में पिछले साल 7 अक्तूबर को हमास की ओर से किए गए नरसंहार को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. दावा किया गया है कि पिछले साल अक्तूबर में हुए हमास के नरसंहार में 2185 इजराइली भाई-बहनों ने एक-दूसरे को खो दिया.
हमास के आतंकियों ने पिछले साल 7 अक्तूबर को इजराइल में जमकर नरसंहार किया था. अब नरसंहार को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें दावा किया गया है कि 2185 इजराइली भाई-बहनों ने एक-दूसरे को खो दिया. ये एक ऐसा 'अनदेखा दुख' है, जो अब तक सामने नहीं आया था.
दरअसल, हिब्रू यूनिवर्सिटी की रिसर्चर मासादा बोक्रिस ने 7 अक्टूबर को अपने भाई-बहनों को खोने वाले 2,185 लोगों पर पहली बार स्टडी की. उन्होंने इजराइली सरकार से आग्रह किया कि पीड़ित भाई-बहनों को भी वही लाभ दिए जाएं जो आतंकवाद के शिकार लोगों की विधवाओं, माता-पिता और बच्चों को मिलते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे भाई-बहनों को पर्याप्त सहायता नहीं मिलती, क्योंकि उन्हें 'सिर्फ' भाई-बहन माना जाता है.
शोधकर्ता मासादा बोक्रिस ने टाइम्स ऑफ इज़राइल को बताया कि समाज उनके दुख को उस तरह से नहीं पहचानता जिस तरह से वे विधवा या अनाथ को पहचानते हैं. इससे उनके दुख की भावना दोगुनी और तिगुनी हो जाती है.
आखिर रिसर्चर मासादा ने क्यों की ये स्टडी?
29 साल की मासादा बोक्रिस ने अपने भाई, 26 साल के चेन बोक्रिस को खो दिया था. चेन बोक्रिस स्पेशल मैगलान कमांडो यूनिट के डिप्टी कमांडर थे. वे 7 अक्टूबर को दक्षिणी इजरायल में आतंकवादियों से लड़ते हुए मारे गए थे. उनकी मौत के बाद मासादा बोक्रिस ने कहा कि उन्होंने भाई-बहन के रूप में अपने दुःख को समझने और उससे निपटने में मदद के लिए मैटेरियल की तलाश की, लेकिन उन्हें इज़राइली मनोवैज्ञानिक साहित्य में कुछ भी नहीं मिला. उन्होंने हिब्रू विश्वविद्यालय में अपनी मास्टर डिग्री के लिए भाई-बहन के दुःख पर शोध करने का फैसला किया.
मासादा की स्टडी 'The Echoes of Mourning: Gender, Birth Order, and Circumstances of Loss in the Events of October 7, 2023' पीड़ित भाई-बहनों के लिए समर्थन की आवश्यकता को दिखाता है. उन्होंने कहा कि पीड़ित भाई-बहनों को अनदेखा किया जाता है.
बोक्रिस ने सरकार से ये भी अपील की कि वे पीड़ित भाई-बहनों को भी वही लाभ और मनोवैज्ञानिक तथा स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करे जो अन्य पीड़ितों (माता-पिता, विधवाओं और बच्चों) को मिलती हैं. इसके अलावा, वे भाई-बहनों के दुख को समझने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और मनोवैज्ञानिकों को ट्रेंड करने का आग्रह करती हैं क्योंकि इस अनदेखे दुख को समझने में सालों लग जाएंगे.
444 एडल्ट्स पर की गई ये स्टडी
ये स्टडी 444 एडल्ट्स पर की गई, जिन्होंने 7 अक्टूबर को अपने भाई-बहन को खो दिया था, जब हजारों हमास आतंकवादियों ने इजरायल पर हमला किया था, लगभग 1,200 लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी और 251 लोगों को बंधक बनाकर गाजा ले गए थे.
तब से लेकर अब तक और भी लोग मारे गए हैं, लेकिन बोक्रिस ने उन लोगों पर फोकस्ड किया जिनके भाई-बहन उस दिन मारे गए थे. सवालों का आंसर देने वालों ने नरसंहार के आठ महीने बाद मई में एक ऑनलाइन सर्वेक्षण का जवाब दिया. सर्वेक्षण में दुःख, सामना करने की रणनीतियों और भावनात्मक तनाव सूची पर सवाल शामिल थे.
रिसर्च से पता चला कि 20 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अपने भाई-बहन को खोने के बाद से काम नहीं किया है. बोक्रिस ने कहा कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में भावनात्मक संकट का स्तर अधिक पाया गया. हालांकि महिलाओं ने आध्यात्मिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक सहायता की अधिक मांग की.
स्टडी में ये भी पाया गया कि जब कोई बड़ा भाई-बहन खो जाता है, तो जीवित बचे भाई-बहन मदद नहीं लेना चाहते, क्योंकि उनका मानना था कि कोई भी उन्हें उस तरह नहीं समझ पाएगा, जैसा वे (आतंक के शिकार) समझता था और वे उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता.
जब से भाई खोया, तब से खुद को बेकार समझते हैं पीड़ित
स्टडी में ये भी सामने आया कि जब से उनके भाई की मृत्यु हुई है, वे खुद को कमज़ोर समझते हैं. उन्हें खुद पर शर्म आती है, वे खुद को बेकार समझते हैं और उन्हें नहीं लगता कि भविष्य में वे बेहतर हो पाएंगे.
उन्होंने कहा कि हमारा समाज पहले आघात से गुजरता है और फिर सोशल मीडिया पर दोबारा उससे गुजरता है, इसलिए यह दोहरा आघात है. बोक्रिस ने बताया कि 7 अक्टूबर, 2023 को सुबह 6:30 बजे अशदोद में सायरन बजने लगे और 6:35 बजे मेरे भाई ने लड़ने का फैसला किया. उसने किसी आदेश का इंतजार नहीं किया.
उसी दिन बाद में किबुत्ज़ नहल ओज़ में उनकी हत्या कर दी गयी. उन्होंने कहा कि इतने सारे लोग मारे गए थे कि उनके शव की पहचान करने में 48 घंटे लग गए.
बोक्रिस गाजा में रिजर्व में काम करती हैं, जहां वह विशेष अभियानों की योजना बनाने की प्रभारी हैं. वे सैनिकों के लिए भावनात्मक प्रोसेसिंग वर्कशॉप का भी नेतृत्व करती हैं. उन्होंने गाजा में रहते हुए और सेना से छुट्टी मिलने पर अपनी स्टडी की. उन्होंने कहा कि व्यस्त रहना उनके लिए अपने नुकसान को स्वीकार करने का एक तरीका रहा है.
बोक्रिस ने कहा कि रिजर्व में होने से मुझे मदद मिलती है क्योंकि मुझे लगता है कि मेरे देश को मेरी ज़रूरत है. नहीं तो, मुझे पता है कि मैं उदास हो जाऊंगी. उन्होंने कहा कि काश लोग मेरा दुख देख पाते. बोक्रिस ने कहा कि वे अपने रिसर्च के माध्यम से मिले अन्य शोक संतप्त भाई-बहनों के संपर्क में रहती हैं.