Wikileaks Founder Julian Assange Revelations: 26 जून, 2024 को लंदन की जेल से रिहा हुए जूलियन असांजे एक बार फिर सुर्खियों में हैं. अमेरिका के साथ हुई डील के तहत जासूसी का आरोप स्वीकार करने वाले असांजे को 62 महीने (5 साल 2 महीने) की जेल की सजा सुनाई गई है. हालांकि, ब्रिटेन की जेल में बिताए 5 साल (1901 दिन) की वजह से उनकी सजा पूरी मानी जा सकती है. अब वह अपने देश ऑस्ट्रेलिया लौट सकते हैं.
2006 में विकिलीक्स की स्थापना करने वाले असांजे ने 2010-11 में अमेरिका के खुफिया सैन्य दस्तावेजों का एक बड़ा खुलासा किया था. इन दस्तावेजों में अमेरिका और नाटो पर इराक और अफगानिस्तान में युद्ध अपराधों के आरोप थे. इस खुलासे के बाद अमेरिका ने असांजे को अपना दुश्मन मानते हुए उन्हें मोस्ट वॉन्टेड अपराधी घोषित कर दिया था. 2019 में अमेरिका ने उन्हें 18 मामलों में दोषी ठहराया था, जिसके लिए उन्हें 175 साल तक की जेल हो सकती थी.
विकिलीक्स ने सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं रहकर कई देशों की पोल खोली थी. विकिलीक्स ने 2011 में यूपी की पूर्व सीएम मायावती को भ्रष्ट और तानाशाह बताया था. वेबसाइट ने यह भी दावा किया था कि मायावती को अपने खाने में जहर मिलाने का डर था, इसलिए उन्होंने फूड टेस्टर्स रखे थे. इतना ही नहीं मायावती ने अपने घर से सीएम ऑफिस तक जाने के लिए एक रोड भी बनवाई थी जिसे वो रोज निकलने से पहले धुलवाया भी करती थी. मायावती को जब भी नई सैंडल खरीदने का मन होता था तो वो एक खाली प्लेन मुंबई के लिए रवाना कर देती थी जो वहां से उनके लिए सैंडल खरीद कर लाता था.
विकिलीक्स ने यह भी दावा किया कि यूपी की पूर्व सीएम देश की प्रधानमंत्री बनना चाहती थी. विकिलीक्स ने यह भी खुलासा किया था कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ ने 1976 में परमाणु सौदे से जुड़ी जानकारी अमेरिका को लीक कर दी थी. जैसे ही ये रिपोर्ट लीक हुई थी तो भारत में जमकर बवाल हो सकता है.
इराक युद्ध: विकिलीक्स द्वारा लीक किए गए दस्तावेजों ने इराक युद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अत्याचारों को उजागर किया था. इन खुलासों के बाद अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी आलोचना का सामना करना पड़ा था.
अमेरिकी खुफिया कार्यक्रम: विकिलीक्स ने अमेरिका के प्रिज्म और स्टेल्टहैल्थ जैसे विवादास्पद खुफिया कार्यक्रमों का खुलासा किया था. इन खुलासों के बाद अमेरिका को नागरिक निगरानी के मुद्दे पर बचाव करना पड़ा था.
गौरतलब है कि 2010-11 में विकिलीक्स के खुलासे के बाद असांजे को अमेरिका में मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया गया था. साल 2010 में जूलियन असांजे पहली बार गिरफ्तार हुए थे और 2012 में उन्होंने लंदन में इक्वाडोर दूतावास में शरण ली थी. 2019 में दूतावास से बाहर आने पर लंदन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया जिसके बाद 2020 में अमेरिका ने असांजे पर जासूसी के 18 आरोपों में केस चलाया था. इन आरोपों में दोषी पाए जाने से उन पर 175 साल की सजा हो सकती थी.
जूलियन असांजे एक विवादास्पद व्यक्ति हैं, जिनके समर्थक और विरोधी दोनों ही हैं. उनकी रिहाई ने दुनियाभर में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. यह देखना बाकी है कि उनका भविष्य क्या होगा और उनका काम दुनिया को कैसे प्रभावित करेगा. असांजे के विकिलीक्स द्वारा किए गए खुलासे ने दुनियाभर में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए हालांकि, यह भी सच है कि उनके कुछ खुलासे विवादों में भी घिरे रहे. उदाहरण के लिए, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस की मदद करने के आरोपों का पूरी तरह से निराकरण नहीं हो पाया है.
विकिलीक्स पर 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस की मदद करने का भी आरोप है. विकिलीक्स ने डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के अभियान अध्यक्ष के हजारों ईमेल प्रकाशित कर दिए थे. विकिलीक्स की ओर से लीक किए गए हिलेरी क्लिंटन के ईमेल ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत में योगदान दिया था.
असांजे की रिहाई पत्रकारिता जगत के लिए एक जीत के रूप में भी देखी जा रही है. यह सरकारों को जवाबदेह ठहराने और लोगों को सच्चाई से अवगत कराने के महत्व को रेखांकित करती है. हालांकि, यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि असांजे की रिहाई किसी भी तरह से सरकारों द्वारा किए गए अपराधों को सही नहीं ठहराती है. बल्कि, यह सरकारों को पारदर्शिता लाने और जनता के प्रति जवाबदेह रहने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है.
असांजे के भविष्य की बात करें तो यह अभी तक स्पष्ट नहीं है. ऑस्ट्रेलिया वापसी के बाद वह क्या करेंगे, यह देखना बाकी है. क्या वह फिर से सरकारों की गलतियों को उजागर करने का काम जारी रखेंगे? या फिर वह शांत जीवन व्यतीत करना पसंद करेंगे? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिल पाएंगे.
हालांकि, एक बात निश्चित है कि जूलियन असांजे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने दुनिया का ध्यान सरकारों की जवाबदेही की ओर खींचा है. उनकी रिहाई भले ही विवादों में घिरी हो, यह निश्चित रूप से प्रेस स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार की बहस को फिर से जगाने का काम करेगी.