बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी द्वारा जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक करने की घटना ने एक बार फिर इस क्षेत्र के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को दुनिया के सामने उजागर कर दिया है. यह घटना केवल एक आतंकी हमला नहीं बल्कि बलूचों की स्वतंत्रता की मांग और उनके ऐतिहासिक संघर्ष का प्रतीक है. बलूचिस्तान का पाकिस्तान के साथ विवाद 1947 में देश की स्थापना के समय से ही चला आ रहा है. बलूच नेताओं का दावा है कि उन्हें जबरन पाकिस्तान में शामिल किया गया, जबकि वे स्वतंत्र रहना चाहते थे. इस जबरन विलय के खिलाफ बलूच राष्ट्रवादियों ने समय-समय पर विद्रोह किए, जिन्हें पाकिस्तान सरकार ने कठोर दमन के जरिए दबाने की कोशिश की.
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यह सबसे पिछड़ा हुआ भी है. यहां की प्राकृतिक संपदाएं गैस, खनिज और अन्य संसाधन देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को इसका लाभ नहीं मिलता. बलूच समुदाय लंबे समय से विकास की अनदेखी और उनके अधिकारों के हनन की शिकायत करता रहा है.
बलूच लिबरेशन आर्मी का उदय
बीएलए, जो बलूच स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख चेहरा बन चुकी है, पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कर रही है. उनका कहना है कि बलूच जनता को स्वतंत्रता दी जाए और उनके संसाधनों का उचित उपयोग उन्हीं के विकास के लिए किया जाए.
सरकारी दमन और जबरन गुमशुदगी
पाकिस्तान सरकार और सेना पर आरोप है कि वे बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं. सैकड़ों बलूच कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी कथित रूप से गायब हो चुके हैं, जिनमें से कई की लाशें बाद में संदिग्ध परिस्थितियों में मिलीं. यह दमनकारी रवैया बलूच युवाओं को उग्रवाद की ओर धकेल रहा है. किस्तानी शासन के दमन के जवाब में पिछले कुछ वर्षों में कई बलूच अलगाववादी समूह उभरे हैं, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ राजनीतिक हिंसा को अंजाम दे रहे हैं.