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बिना खून बहाए बदल गया पूरा देश, समझिए क्या है इंग्लैंड की रक्तहीन क्रांति की कहानी

Bloodless Revolution: साल 1688 के आसपास इंग्लैंड में सत्ता और व्यवस्था का एक ऐसा परिवर्तन हुआ था जो आज के इंग्लैंड को दुनिया के सामने लेकर आया

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Edited By: India Daily Live
Bloodless Revolution
Courtesy: Social Media

एक समय पर दुनिया के कई देशों पर राज करने वाले इंग्लैंड को चर्च ने खूब प्रभावित किया है. समय के साथ कैथोलिक धर्म इंग्लैंड और वहां के लोगों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करने लगा था. व्यापार, शादी और तलाक जैसे जीवन के हर एक मामले में चर्च का दखल बढ़ने लगा था. इसका प्रभाव इतना बड़ा था कि इंग्लैंड के राजा भी इससे दूर न रह सके. राजनीति, धर्म और एक बेटी का अपने पति के साथ मिलकर अपने पिता को उसके राजा की गद्दी से बेदखल करने जैसी घटनाओं ने इंग्लैंड में एक क्रांति ला दी. इस क्रांति को विश्व के इतिहास में रक्तहीन क्रांति या गौरवशाली क्रांति के नाम से जाना जाता है. 

1685 में जेम्स द्वितीय इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा. यह वह  समय था जब कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच संबंध तनावपूर्ण थे. राजशाही और ब्रिटिश संसद के बीच भी काफी मनमुटाव था. जेम्स जो कि स्वयं को कैथोलिक समझता था. उसने राजा बनने के बाद इग्लैंड में कैथोलिक धर्म का प्रचार और प्रसार करना शुरू कर दिया था. साल 1885 में फ्रांस में आतंक का माहौल फैल रहा था और फ्रांस से भागे लोग इंग्लैंड में शरण ले रहे थे, जिसके कारण इंग्लैंड मे अंसतोष फैल रहा था.

क्यों शुरू हुआ हंगामा? 

जेम्स द्वितीय सेना और सभी सरकारी नौकरियों में कैथोलिक अपनाने वालों को स्थान दे रहा था. यह वह समय था जब राज्य के लोग एक राजा के रूप में संचालन की शक्ति को अस्वीकार कर रहे थे और इंग्लैंड में शासन करने की संसदीय व्यवस्था की मांग कर रहे थे. 1687 में राजा जेम्स द्वितीय ने कैथोलिकों के खिलाफ चल रहे दंडात्मक कानूनों को रद्द कर दिया. इसके अलावा जेम्स द्वितीय ने चल रही संसद को भंग कर दिया और एक नई संसद बनाने का प्रयास किया जहां कैथोलिकों का बोलबाला रहे. 

जेम्स के इस तरह के मनमाने और अवैध कामों से इंग्लैंड की जनता परेशान होने लगी. जिसका नतीजा यह हुआ कि इंग्लैंड में तेजी से विरोध शुरू हो गया और जेम्स द्वितीय को इंग्लैंड छोड़कर भागना पड़ा. संसद ने जेम्स द्वितीय की बेटी को इंग्लैंड की सरकार चलाने के लिए इंग्लैंड की शासिका बनाया. उस साल की इन घटनाओं और तख्तापलट के दौर को इंग्लैंड में महानक्रांति या इंग्लैंड की रक्तहीन क्रांति कहते हैं. इस क्रांति की खासियत यह थी कि इसमें रक्त की एक बूंद तक नहीं बहा और तख्तापलट हो गई.

राजनीतिक कारण

1688-1689 की रक्त क्रांति एक तरह का राजनीतिक और धार्मिक क्रांति थी. जेम्स द्वितीय एक तरह का निरकुंश और स्वेच्छाचारी शासक था. जनता पर अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए उसने अपनी सेना को बढ़ाया ताकि वहां की जनता पर डर का माहौल बन सके. विरोधी दलों को समाप्त कर दिया था और सब कुछ खुद संभाल रहा था. इसके अलावा जेम्स द्वितीय फ्रांस के राजा कैथोलिक राजा लुई 14वां से सैनिक और आर्थिक सहायता चाहता था ताकि इंग्लैंड में अपना वर्चस्व बना सके. जिसका नतीजा यह हुआ कि इंग्लैंड की जनता जेम्स द्वितीय का विरोध करने लगी. इंग्लैंड की संसद जिसे जनता का समर्थन मिला था. वह अपने विशेष अधिकारों को लागू करना चाहती थी. वहीं राजा संसद के अधिकारों को कम करके सारा नियंत्रण खुद के पास रखना चाहता था. राजा और संसद के बीच संघर्ष शुरू हुआ और अंत में संसद ने राजा का तख्तापलट किया. 

धार्मिक कारण
 
इंग्लैंड का राजा जेम्स द्वितीय कैथोलिक था जबकि वहां की अधिकांश जनता एंग्लिकन मत को मानने वाले थी. जेम्स चाहता था कि इंग्लैंड के वे लोग जो कैथोलिक हैं उनको ज्यादा सुविधा मिले. ऊंचे पदों पर इन्हें तैनात किया जाए. जेम्स ने पोप को इंग्लैंड बुलाकर उनका स्वागत किया. इसके अलावा लंदन में कैथोलिक कलीसिया भी स्थापिक किया. साथ ही जेम्स इंग्लैंड को कैथोलिक देश बनाना चाहता था. इसे बनाने के लिए उसने 1687 और 1688 में दो बार एक नया धार्मिक कानून लाने पर जोर दिया. इससे संसद में भारी असंतोष व्याप्त हो गया और जनता उसकी घोर विरोधी हो गई. 

महत्व और परिणाम

जब राजा के पास शासन की सभी शक्तियां होती हैं तो ऐसी व्यवस्था को राजतंत्र की व्यवस्था कहते हैं. ब्रिटेन के राजा के पास ऐसी ही शक्तियां थीं. रक्तहीन क्रांति जिसे गौरवशाली क्रांति भी कहते हैं, इस क्रांति ने ब्रिटेन मे राजतंत्र से संवैधानिक राजतंत्र में बदलाव लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस घटना के बाद इंग्लैंड में फिर कभी राजशाही मजबूत नहीं हुई. इंग्लैंड में शासकों का परिवर्तन "बिना रक्त की बूंद बहाए" संपन्न हो गया, इसलिए इस क्रांति को महान शानदार क्रांति  कहते हैं. 

इस क्रांति ने राजशाही राजा और संसद के बीच चले आ रहे संघर्ष को खत्म कर दिया और इंग्लैंड  की वास्तविक शक्तियां इंग्लैंड की संसद को मिल गई. क्रांति के समय इंग्लैंड की संसद ने बिल आफ राइट्स पारित किया. इससे संसद की सम्प्रभुता स्वीकार कर ली गई और राजा की राजसत्ता समाप्त कर दी गई तथा जनता को सर्वोपरि माना गया .