दुनिया को प्रलय के खतरे से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक प्रतीकात्मक घड़ी तैयार की थी, जिसे "डूम्सडे क्लॉक" या प्रलय घड़ी कहा जाता है. यह घड़ी यह दिखाती है कि मानवता ग्लोबल आपदा के कितने करीब है. हाल ही में, इस घड़ी का समय 89 सेकंड पहले आधी रात को सेट किया गया, जो अब तक का सबसे कम समय है. इस परिवर्तन का कारण जलवायु परिवर्तन, परमाणु युद्ध और स्वास्थ्य संकटों के बढ़ते खतरों को बताया गया है. खास बात यह है कि यह बदलाव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद आया है.
डूम्सडे क्लॉक 1947 में शुरू किया गया था, और इसका मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियारों के खतरों को लेकर जागरूकता बढ़ाना था. समय जितना कम होता गया, यह घड़ी उतनी ही खतरनाक स्थिति का संकेत देती है. शुरुआत में इसे सात मिनट पहले आधी रात पर सेट किया गया था. बाद में 2007 में, जलवायु परिवर्तन के खतरे को ध्यान में रखते हुए, इसे और भी समायोजित किया गया. इस घड़ी का समय अब तक सबसे करीब आधी रात तक पहुंच गया है—89 सेकंड, जो वैश्विक संकट की ओर इशारा कर रहा है.
डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ वैश्विक तनाव में इजाफा हुआ है. ट्रम्प ने रूस और चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों को नया मोड़ देने का वादा किया है, जिससे परमाणु युद्ध की संभावना कुछ कम हो सकती है. लेकिन साथ ही, अमेरिका का पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलना और विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होना वैश्विक संकटों को और बढ़ा सकता है. इन फैसलों से न केवल अमेरिका, बल्कि दुनिया भर के देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरों में वृद्धि हो सकती है.
दुनिया के कई हिस्सों में लगातार बढ़ती गर्मी, तूफान और बर्फबारी जैसी प्राकृतिक आपदाएं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और स्पष्ट कर रही हैं. पूर्व कोलंबियाई राष्ट्रपति और 'द एल्डर्स' समूह के प्रमुख, जुआन मैनुएल सैंटोस ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका जैसे प्रमुख देशों द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं की जाती, तो दूसरे देश भी इसे नजरअंदाज कर सकते हैं. इससे वैश्विक तापमान में और वृद्धि हो सकती है, जो पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर भी कई वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है. एआई की तकनीक तेजी से विकसित हो रही है, लेकिन इसके साथ-साथ इसके खतरों में भी वृद्धि हो रही है. खासकर, यह जैविक हथियारों के निर्माण में सहायक हो सकता है. इसके अलावा, एआई के जरिए फैलने वाली गलत सूचनाएं और कंस्पिरेसी थ्योरीज़ समाज में भ्रम पैदा कर सकती हैं. इसके चलते वैश्विक संचार तंत्र कमजोर हो सकता है और सत्य और असत्य के बीच की रेखा धुंधली हो सकती है.