Dalveer Bhandari Voted Against Israel: हिंदुस्तानी जज दलवीर भंडारी ने वर्ल्ड कोर्ट में इजराइल के खिलाफ वोट किया है. वर्ल्ड कोर्ट ने एक मामले में इजराइल के खिलाफ आदेश पारित किया, जिसका समर्थन करते हुए भारतीय जज ने इजराइल के खिलाफ वोट डाला. इंटरनेशनल कोर्ट में इजराइल के खिलाफ वोट के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत और इजराइल के रिश्ते बदलने लगे हैं. हालांकि, भारत के इस कदम पर फिलहाल इजराइल का कोई जवाब नहीं आया है.
दलवीर भंडारी फेमस ज्यूरिस्ट रहे हैं. वे 2012 से इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के मेंबर हैं. इंटरनेशनल कोर्ट ने शुक्रवार को इजरायल को राफा में अपने सैन्य अभियान तुरंत रोकने का आदेश दिया. इस फैसले का समर्थन करने वाले जजों में से एक हिंदुस्तानी जज दलवीर भंडारी भी थे. 1947 में राजस्थान के जोधपुर में जन्मे दलवीर भंडारी को 2014 में पद्म भूषण समेत कई अन्य सम्मान मिल चुके हैं.
दलवीर भंडारी, सुप्रीम कोर्ट में कई महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी की है. वे 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज के पद पर प्रमोट हुए थे. उन्होंने जनहित याचिका, संवैधानिक कानून, आपराधिक कानून, सिविल प्रक्रिया, प्रशासनिक कानून, मध्यस्थता, पारिवारिक कानून, श्रम और औद्योगिक कानून तथा कॉर्पोरेट कानून समेत कई क्षेत्रों में कई फैसले सुनाए.
2012 से दलवीर भंडारी इंटरनेशनल कोर्ट की ओर से तय किए गए सभी मामलों से जुड़े रहे हैं. उन्होंने समुद्री विवाद, अंटार्कटिका में व्हेल शिकार, नरसंहार, महाद्वीपीय शेल्फ परिसीमन, परमाणु निरस्त्रीकरण, आतंकवाद के वित्तपोषण और संप्रभु अधिकारों के उल्लंघन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों में योगदान दिया है.
सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति से पहले, वे बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे. तलाक के एक मामले में उनके फैसले ने स्थापित किया कि शादी का अपूरणीय विघटन तलाक का आधार हो सकता है, जिससे केंद्र को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में संशोधन करने पर गंभीरता से विचार करने के लिए प्रेरित किया गया. विवाह का अपूरणीय विघटन यानी कपल की शादी इतनी बुरी तरह टूट चुकी है कि दोनों पति-पत्नी के रूप में एक साथ नहीं रह सकते. कपल में से दोनों को कोर्ट में साबित करना होता है कि उनके दोबारा साथ आने की कोई उचित संभावना नहीं है.
दलवीर भंडारी को शिकागो में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ के 150 साल के इतिहास में 15 सबसे सम्मानित और एक्स स्टूडेंट्स में से एक के रूप में सम्मानित किया गया है, जहां उन्होंने 1971 में लॉ में पोस्ट ग्रेजुएट की उपाधि प्राप्त की थी.
इंटरनेशनल कोर्ट के पीठासीन न्यायाधीश (Presiding Judge) नवाफ सलाम की ओर से इजराइल के खिलाफ आदेश पारित किया गया. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका ने एक याचिका दायर कर इजरायल पर नरसंहार के बराबर की कार्रवाई करने का आरोप लगाया गया है. इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि इजरायल को ऐसी कोई भी कार्रवाई बंद करनी चाहिए जिससे राफा में फिलिस्तीनी नागरिकों का विनाश हो सकता है.
कोर्ट के निर्णय को 13-2 मतों से समर्थन मिला, जिसमें केवल युगांडा की जज जूलिया सेबुटिंडे और पूर्व इजरायली हाई कोर्ट के अध्यक्ष जज अहरोन बराक ने असहमति जताई. इस निर्णय में इस बात पर भी जोर दिया गया कि इजरायल को बिना किसी बाधा के मानवीय सहायता प्रदान करनी चाहिए और नरसंहार के आरोपों की जांच करने वाले संयुक्त राष्ट्र निकायों तक पहुंच प्रदान करनी चाहिए.
इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले के बावजूद, इजरायल ने उसके आदेश को दृढ़ता से खारिज कर दिया है. इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तजाची हनेगबी ने विदेश मंत्रालय के साथ कहा कि राफा में इजरायल के सैन्य अभियान अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार हैं और उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है कि वे ऐसी परिस्थितियां पैदा करें जिससे फिलिस्तीनी आबादी का विनाश हो. इजरायल के युद्ध कैबिनेट मंत्री बेनी गैंट्ज़ ने भी इस भावना को दोहराया और कहा कि जहां भी आवश्यक समझा जाएगा, सैन्य अभियान जारी रहेंगे.
संयुक्त राष्ट्र में फ़िलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने फ़ैसले की प्रशंसा करते हुए इसे तत्काल लागू करने का आग्रह किया. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आईसीजे के प्रस्तावों का पालन करना अनिवार्य है, जो नरसंहार सम्मेलन के एक पक्ष के रूप में इज़राइल के दायित्व को उजागर करता है.