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धरती ही नहीं जल्द ही अंतरिक्ष में घूम रहे सैटेलाइट्स पर भी कहर बनकर टूटेगा जलवायु परिवर्तन: वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

एक नए अध्ययन के अनुसार, कोयले, तेल और गैस के जलने से होने वाला वैश्विक तापमान वृद्धि इस सदी के अंत तक निचली कक्षा में मौजूद सैटेलाइट्स के लिए उपलब्ध स्थान को एक-तिहाई से लेकर 82% तक कम कर सकता है.

जलवायु परिवर्तन अब केवल धरती पर ही मुश्किलें पैदा नहीं कर रहा, बल्कि यह अंतरिक्ष में भी एक बड़ी समस्या बनने जा रहा है. एक नए अध्ययन के अनुसार, कोयले, तेल और गैस के जलने से होने वाला वैश्विक तापमान वृद्धि इस सदी के अंत तक निचली कक्षा में मौजूद सैटेलाइट्स के लिए उपलब्ध स्थान को एक-तिहाई से लेकर 82% तक कम कर सकता है. इसका कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन अंतरिक्ष में प्राकृतिक सफाई की प्रक्रिया को कमजोर कर रहा है, जिससे वहां कचरा बढ़ता जा रहा है.

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रीनहाउस प्रभाव, जो धरती की सतह के पास हवा को गर्म करता है, वायुमंडल के ऊपरी हिस्सों को ठंडा कर रहा है. यह ऊपरी वायुमंडल वह क्षेत्र है जहां से अंतरिक्ष शुरू होता है और सैटेलाइट्स निचली कक्षा में चक्कर लगाते हैं. ठंडा होने से इस क्षेत्र का घनत्व कम हो रहा है, जिसके कारण अंतरिक्ष के कचरे और सैटेलाइट्स पर खिंचाव (ड्रैग) कम हो रहा है. यह खिंचाव अंतरिक्ष के कचरे को धरती की ओर खींचता है, जहां यह जलकर नष्ट हो जाता है. लेकिन कम घनत्व के कारण यह प्राकृतिक सफाई कम हो रही है, और अंतरिक्ष में भीड़ बढ़ रही है. यह निष्कर्ष नेचर सस्टेनेबिलिटी जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

अंतरिक्ष में बढ़ता कचरा
अध्ययन के प्रमुख लेखक विल पार्कर, जो एमआईटी में खगोलीय गतिशीलता के शोधकर्ता हैं, कहते हैं, "हम अंतरिक्ष के कचरे को साफ करने के लिए वायुमंडल पर निर्भर हैं. इसके अलावा कोई दूसरा तरीका नहीं है. यह कचरा है, और इसमें लाखों टुकड़े शामिल हैं." धरती के चारों ओर चक्कर लगा रहे ये कचरे के टुकड़े छोटे-छोटे होते हैं—लगभग 3 मिलीमीटर या दो सिक्कों की मोटाई जितने—लेकिन ये गोली की गति से टकराते हैं. इसके अलावा, बेर के आकार के हजारों टुकड़े भी हैं, जो बस के टक्कर जैसी शक्ति के साथ नुकसान पहुंचा सकते हैं. यह कचरा पुरानी अंतरिक्ष दुर्घटनाओं और रॉकेट के हिस्सों से बना है, जिनमें से ज्यादातर इतने छोटे हैं कि इनका पता लगाना मुश्किल है.

वर्तमान में धरती के चारों ओर 11,905 सैटेलाइट्स चक्कर लगा रहे हैं, जिनमें से 7,356 निचली कक्षा में हैं. ये सैटेलाइट्स संचार, नेविगेशन, मौसम पूर्वानुमान, पर्यावरण निगरानी और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जरूरी हैं.

बदलती सोच और चुनौतियां
पार्कर बताते हैं, "पहले यह धारणा थी कि अंतरिक्ष बहुत बड़ा है, इसलिए हमें इसके पर्यावरण की देखभाल करने की जरूरत नहीं है. लेकिन 2009 में दो सैटेलाइट्स की टक्कर से हजारों टुकड़े पैदा हुए, और नासा के माप से पता चला कि खिंचाव कम हो रहा है. अब हमें एहसास हो रहा है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अंतरिक्ष पर भी पड़ रहा है."

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे की अंतरिक्ष मौसम वैज्ञानिक इंग्रिड नोसेन, जो इस शोध का हिस्सा नहीं थीं, कहती हैं कि 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल का घनत्व हर दशक में करीब 2% कम हो रहा है. जैसे-जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ेगा, यह समस्या और गंभीर होगी. उनके मुताबिक, यह अध्ययन पूरी तरह सही है और हमें अंतरिक्ष में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझकर इसके दीर्घकालिक उपयोग के लिए उपाय करने होंगे.

आगे की राह
जलवायु परिवर्तन का यह नया पहलू न केवल धरती, बल्कि अंतरिक्ष के भविष्य को भी प्रभावित कर रहा है. सैटेलाइट्स पर बढ़ता खतरा मानवता के लिए एक चेतावनी है कि हमें अपने पर्यावरण के प्रति और जिम्मेदार होना होगा- चाहे वह धरती पर हो या अंतरिक्ष में. वैश्विक सहयोग और तकनीकी नवाचार ही इस चुनौती से निपटने का रास्ता हो सकते हैं.