Kamala Harris: यह हैरान करने वाली बात है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में कभी भी कोई महिला सरकार का नेतृत्व नहीं कर पाई है. महिला नेताओं को राष्ट्र का सिरमौर बनाने के मामले में दक्षिण एशिया एक गौरवशाली जगह है. साल 1960 में सिरीमावो भंडारनायके ने जब श्रीलंका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो ऐसा करने वाली वह श्रीलंका ही नहीं बल्कि दुनिया की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष थीं. दशकों बाद उनकी बेटी चंद्रिका कुमारतुंगा ने भी उन्हें फॉलो किया और दस सालों तक देश की प्रेसिडेंट रहीं.
भारत में इंदिरा गांधी, पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो, बांग्लादेश में शेख हसीना और खालिदा जिया ने भी सरकारें चलाईं. इसके अलावा दुनिया के अन्य देशों में भी महिला नेताओं ने सरकार का नेतृत्व किया. इजरायल में गोल्डा मेयर, ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर, थेरेसा मे और लिज ट्रस, जर्मनी में एंजेला मार्केल और इटली में जॉर्जिया मेलोनी जैसे अमेरिका के करीबी देशों में भी महिलाएं सत्ता के शिखर पर रही हैं. तो अमेरिका क्यों नहीं?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 13 महिलाएं राज्यपाल के रूप में काम कर रही हैं. साल 2020 में कमला हैरिस ने अमेरिका की पहली महिला (अफ्रीकी भारतीय मूल की) उपराष्ट्रपति बनकर इतिहास रच दिया था. अब वह फिर से एक नए मोड़ पर हैं और इतिहास रचने से बस कुछ कदम की दूरी पर हैं. यदि नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में वह जीत जीत जाती हैं तो यह अमेरिकी राजनीतिक इतिहास में मील का पत्थर होगा. लेकिन अहम सवाल है कि क्या ऐसा होगा? अमेरिका अपनी पहली महिला राष्ट्रपति के लिए तैयार है? क्या कमला हैरिस वह हासिल कर सकती हैं जो हिलेरी क्विंटन नहीं हासिल कर सकीं? कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि राजनीति में 90 दिनों का समय बहुत लंबा होता है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अभी 90 दिन का समय बचा है.
इन सबसे पहले हमें यह समझने की जरूरत है कि आखिर वे कौन सी वजह रहीं जिसके कारण कमला हैरिस का राजनीतिक कद बढ़ा, डेमोक्रेट्स ने उन्हें बाइडन की जगह अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया? जबकि बाइडन के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान वे उनकी सहयोगी और अहम मौकों पर उनके पीछे ही खड़ी दिखाई दी हैं.
27 जून को डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ टेलीविजन बहस में जो बाइडन ने ऐसी गलतियां की जिसकी पार्टी को उम्मीद नहीं थी. इसके बाद नाटो शिखर सम्मेलन में यूक्रेनी राष्ट्रपति को रूसी राष्ट्रपति के नाम से संबोधित करना वैश्विक मंच पर उनकी साख को लगने वाला तगड़ा झटका था. बाइडन अपने स्वास्थ्य और याददाश्त की वजह से अपने पूरे कार्यकाल के दौरान आलोचकों के निशाने पर रहे. इन सब वजहों ने बाइडन को अपना नाम राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से वापस लेने के लिए मजबूर किया. डेमोक्रेट पार्टी के कई नेता बाइडन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर निराश थे, उनकी मांग थी कि पार्टी किसी नए नेता को सामने लाए जो अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रेट्स की जीत की संभावनाओं को प्रबल बना सके.
हालांकि अपनी उम्मीदवारी छोड़ने से पहले तक जो लगातार दावा करते रहे कि वह रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को हरा देंगे, जबकि हकीकत कुछ और थी. इस दौरान जो बाइडन कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और अपने डेलावेयर हाउस में ठीक होने तक आइसोलेशन में रहे. इसी समय उन्होंने अपनी पत्नी जिल बाइडन और परिवार की सलाह पर राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से अपना नाम वापस लेने का फैसला किया. बाइडन ने 21 जुलाई को घोषणा कर दी कि वह अमेरिकी चुनाव में अपनी दावेदारी पेश नहीं करेंगे.
डेमोक्रेट्स पहले से ही बाइडन के नेतृत्व को लेकर आशंकित थे, उनके नाम वापस लेने से पार्टी को हैरिस के पीछे खड़े होने का मौका मिल गया. गौरतलब है कि हैरिस ने अपने चुनावी कैंपेन में सैकड़ों मिलियन डॉलर की राशि को जुटाया है. कमला की अपील के बाद 3,60,000 लोगों ने उनके चुनावी कैंपेन को समर्थन दिया. कमला हैरिस की अपील से लाखों लोगों का जुड़ना उनके राजनीतिक कौशल का अद्भुत प्रमाण है जो उन्हें अमेरिका की प्रथम महिला बनने की उनकी दावेदारी को मजबूत करता है. 27 अगस्त को डेमोक्रेटिक पार्टी के शिकागो सम्मेलन से पहले ही उन्हें आवश्यक प्रतिनिधियों का समर्थन प्राप्त हो चुका है. अब कमला हैरिस की आलोचना करने वालों को भी लगने लगा है कि हैरिस ने पार्टी में जोश भर दिया है. ऐसा लगता है कि पार्टी ट्रंप से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है.
जो बाइडन का राष्ट्रपति पद से उम्मीदवारी वापस लेना रिपब्लिकन्स खेमे के लिए एक सदमे जैसा है. ट्रंप अपने चुनावी कैंपेन में बाइडन को उनकी कमजोर याददाश्त, स्वास्थ्य, उम्र को लेकर घेरा करते थे, अब यह सारे मुद्दे गायब हो गए हैं. ट्रंप के सामने विडंबना यह हो गई है कि जिन मुद्दों पर वह बाइडन या डेमोक्रेट्स को घेरा करते थे अब वह खुद ही उसमें फंस गए हैं. कमला हैरिस उनसे 19 साल छोटी हैं. वह उनसे ज्यादा फिट और मानसिक रूप से तेज हैं. पूर्व में वकालत कर चुकीं हैरिस अपनी बातों को ट्रंप की तुलना में बेहतर तरीके से लोगों के सामने रख रही हैं.
हैरिस के उम्मीदवार बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनावी कैंपेन में उनके खिलाफ अशोभनीय भाषा का सहारा ले रहे हैं. ट्रंप उनकी जातीयता पर सवाल उठा रहे हैं. ट्रंप ने अपने चुनावी अभियानों में कमला हैरिस की मां की साड़ी वाली तस्वीर जारी की और यह दावा किया कि वह हाल ही में अश्वेत बनी हैं. वह हमेशा अपने भारतीय वंश का दिखावा करती रहीं. वह उनके राष्ट्रपति बनने पर अमेरिकियों के मन में डर भर रहे हैं. ट्रंप अपने चुनावी कैंपेन में कह रहे हैं कि हैरिस के प्रेसिडेंट बन जाने पर अप्रवासियों का बेरोकटोक प्रवेश होगा, नौकरियों में कमी होगी, महंगाई रोकने के लिए उनके पास कोई ठोस नीति नहीं है, वामपंथी रवैये के कारण वह करों में वृद्धि करेंगी. इसके अलावा ट्रंप ने उन पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके पास चीन का मुकाबला करने के लिए भी कोई ठोस योजना नहीं है. ट्रंप ने ईसाई और यहूदी वोटर्स से सवाल भी पूछा है कि वह क्या इतना नीचे गिर गए हैं कि वह हैरिस को वोट देंगे?
हैरिस ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, गर्भपात के अधिकार और यूनियनों के समर्थन का वादा किया है. यह वादे उन्हें लाखों अमेरिकी लोगों का फेवरेट केंडिडेट बनाता है. अपने अश्वेत होने के कारण वह ब्लैक और हिस्पैनिक कम्युनिटी के बीच काफी लोकप्रिय हैं. हैरिस ने ट्रंप के नस्लीय अपमान, उनकी जातीयता और उनके रिकॉर्ड पर हमलों का जवाब गरिमा और रोचक अंदाज में दिया है. हैरिस की प्रतिक्रियाओं का अमेरिका के एक बड़े तबके ने सम्मान किया है. हैरिस ने अपने कैंपेन में ट्रंप से सवाल पूछा क्या वह देश को पीछे ले जाना चाहते हैं? अब जमीन बदल रही है ट्रंप इसे महसूस कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कोई आश्चर्य की बात नहीं कि ट्रंप उनके साथ खुली बहस से इंकार कर दें.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव लोकप्रियता की प्रतियोगिता नहीं है. यहां एक निर्वाचन मंडल के प्रतिनिधि होते हैं जो उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करते हैं. अफसोस की बात है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज एक बहुत बड़ा विभाजित समाज है. यहां का बड़ा दक्षिणपंथी वर्ग एक महिला को राष्ट्रपति पद के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. हैरिस अमेरिका की बहुसंख्यक श्वेत आबादी की पसंद नही हैं. जानकारों के मुताबिक, हैरिस को चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ब्लू वॉल राज्यों जैसे विस्कॉन्सिन, मिशिगन और पेंसिल्वेनिया में जीत हासिल करनी होगी. इसके अलावा सन बेल्ट राज्यों जैसे- एरिजोना, जॉर्जिया और उत्तरी कैरोलिना में भी अपनी छाप छोड़नी होगी.