World Most Painful Death: मौत किसी भी इंसान को पसंद नहीं होता है. कोई भी मरना नहीं चाहता है और अधमरा होना तो सबसे बड़ा अभिशाप माना जाता है. जिसमें इंसान ना मर पाता है और ना हीं पूरी तरह से अपनी जिंदगी को जी पाता है. ऐसी ही एक घटना जापान में देखने को मिली. जिसमें 83 दिनों के लिए एक व्यक्ति अंदर से बाहर तक बुरी तरह जलने के बाद जिंदगी और मौत के बीच लड़ता रहा.
एक ऐसे व्यक्ति के बारे में चौंकाने वाले विवरण सामने आए हैं. जिसकी 83 दिनों बाद अंदर से बाहर तक जलने के कारण मौत हो गई. यह अब तक दर्ज की गई सबसे दर्दनाक मौतों में से एक है. हिसाशी ओची जापान न्यूक्लियर फ्यूल कन्वर्जन कॉरपोरेशन (JCO) प्लांट (स्टॉक) में काम करते थे.
जानकारी के मुताबिक टोक्यो से 70 मील उत्तर-पूर्व में स्थित एक यूरेनियम प्रोसेसिंग सुविधा में काम करते समय 35 वर्षीय जापानी कर्मचारी हिसाशी ओची इसके लपेटे में आ गए. मिली जानकारी के मुताबिक उन्हें और उनके दो अन्य सहयोगियों को परमाणु ईंधन के उपयोग के लिए यूरेनियम तैयार करने का काम सौंपा गया था. हालांकि एक घातक गलती तब हुई जब उनके सहकर्मी मासातो शिनोहारा और पर्यवेक्षक युताका योकोकावा ने एक प्रोसेसर में 16 किलोग्राम यूरेनियम मिलाया.
जो 2.4 किलोग्राम की सुरक्षित सीमा से कहीं ज़्यादा था. जिसके कुछ सेकेंड बाद ही विकिरण अलार्म बजने लगा. इस घटना में ओची को 17,000 मिलीसीवर्ट (mSv) विकिरण के समर्पक में आ गए. जो किसी एक व्यक्ति द्वारा दर्ज की गई अब तक की सबसे अधिक मात्रा है. इस बीच शिनोहारा ने 10,000 mSv अवशोषित किया. वहीं योकोकावा जो डेस्क पर कुछ ही गज की दूरी पर था अनुमानित 3,000 mSv से प्रभावित हुआ. सुरक्षा सीमा 20 mSv माना जाता है, जिसमें 5,000 mSv घातक माना जाता है.
83 दिनों के कष्टदायक अनुभव के दौरान ओची की हालत बिगड़ती गई क्योंकि विकिरण के कारण उसकी त्वचा छिल गई थी.घटना इतना भयावह था कि इसके कारण उसकी पलकें गिर गईं. उसे सांस लेने में गंभीर समस्याएं हुईं. जिसके कारण उसके फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो गया और उसे वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ी. इस घटना में पीड़ित की आंत की कोशिकाएं खत्म हो गई थी. जिसके कारण भोजन और दवा पचाना मुश्किल हो रहा था. इसके कारण पेट में भयंकर दर्द और दस्त की समस्या होने लगी. आंतरिक रक्तस्राव को नियंत्रित करने के लिए ओची को प्रतिदिन 10 बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ी.
पीड़ित की त्वचा जैसे-जैसे पिघलता गया, उसके शरीर से तेल का रिसाव होने लग. स्कीन रिप्लेसमेंट के बाद भी ओची के हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. परेशानी इतनी बढ़ने लगी की आंखों से खून बहने लगा. वहीं दर्द इतना ज्यादा बढ़ने लगी कि डॉक्टरों से उपचार बंद करने की विनती करनी पड़ी. यह घटना सितंबर 1999 की है. इस घटना के कुछ महीने बाद अप्रैल 2000 में इस घटना का दूसरा पीड़ित शिनोहारा की भी 40 वर्ष की आयु में इसी कारण से मृत्यु हो गई. वहीं तीसरा पीड़ित योकोकावा को तीन महीने बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.